
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
गुरु कृपाचार्य सात चरणजीवियों मदे एक अम्र ऋषि छन।
गुरु कृपाचार्य क जन्म स्थान क बारा म क्वी विशेष सुचना नि मिलदी। वन म जन्म ह्वे अर द्रोणाचार्य क जेठू छा कृपाचार्य से लगद कि कृपाचार्य क जन्म हरिद्वार जनपद म कखि ह्वे होलु।
गौतम ऋषि क एक पुत्र छौ शरद्वान जैक जन्म वाणों मध्य ह्वे। शारद्वान तैं वेदाध्ययन से बिंडी धनुर्विद्या से रूचि छे। शारद्वान धनुर्विद्या म इथगा धुरंधर ह्वे गे छा कि देवराज इंद्र तैं भय सत्ताण विसे गे कि शारद्वान कखि देव लोक नि जीत जा। इंद्र न जनपदी नामै अप्सरा बुलाई अर तैं अप्सरा तैं ऋषि शारद्वान को ब्रह्मचर्य तोड़ दे।
शारद्वान वन म धनुर्विद्या अभ्यास म अति ध्यान म जयां छा अर एक नयो प्रयोग म संलग्न छा। तभि जनपदी अप्सरा कामुक अर्धनग्न अवस्था, सुगंध युक्त सुगन्धि क साथ म ऋषि शारद्वान क निकट गे। कुछ समय कुण ब्रह्मचर्य धारी शारद्वान को ध्यान टूट अर कामुक अप्सरा देखि ऋषि कामपीड़ित ह्वे गेन अर तौंक वीर्य स्खलित ह्वेक डी सरकंडा म पोड़ गे। सरकंडा क द्वी भाग ह्वे गेन एक भाग से पुत्र अर्थात कृपा अर दुसर भाग से पुत्री कृपी को जन्म ह्वे। दुयुं क ज्योति इन छे कि शिकार खिलणों अयां सम्राट शांतुन आकर्षित ह्वेका उना ऐन द्वी जौंळ्या भै बैणी तैं महल म लैन अर महल म ही तौंक पालन पोषण ह्वे।
कृपा धनुर्विद्या म अपर बुबा जी जन ही छा अर धनुर्विद्या क विशेषज्ञ बण गेन। धनुर्विद कृपा एक प्रषिषक रूप म बि विकसित हूणा छा। तौंकि यु गुण देखि भीहम न कृपाचार्य तेन कौरव अर पांडवों धनुर्विद्या क गुरु घोषित कर दे। अब कृपा कृपाचार्य को पद पर छा।
गुरु कृपाचार्य तैं पांडव भल अवश्य लगद छा किंतु कृपाचार्य की भक्ति हस्तिनापुर शासन की ओर अर्थात दुर्योधन की ओर छौ। कृपाचार्य न दुर्योधन की ओर से करुक्षेत्र युद्ध लौड़ अर द्रोणाचार्य जो कॉपी क पति छा व ड्रोन पुत्र अश्वथामा न बि कुरुक्षेत्र म दुर्योधन को ही साथ दे।
कृपाचार्य न दुर्योधन क साथ दींद कुरुक्षेत्र म कति युद्ध जीतेन।
जब कुरुक्षेत्र महाभारत समाप्त ह्वे तो भी कृपाचार्य हस्तिनापुर राज्य का धनुर्विद प्रषिषक रैन अर तौन अर्जुन पौत्र परीक्षित तैं धनुर्विद्या सिखाई।
कृपाचार्य ज्ञान भंडार व योग्य प्रशिक्षक छा। कृपाचार्य तैं सदा अमरता को वरदान च। गुरु परुशराम न कृपाचार्य तैं अमर रौणै वरदान दे छौ।