(भीष्म कुकरेती की वार्ता)
(अधिकतर समीक्षक किसी नाटककार के नाटकों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ समीक्षक नाटककार को जानते हैं तो नाटककार को विषय दे देते हैं। एक समीक्षक स्वय नाटककार भी होता है। तो यह भी आवश्यक है कि नाटककार अपने विषय में स्वयं भी बताये। इस श्रृंखला में मैं गढवाली के प्रसिद्ध नाटककारों के बारे में उन्हीं की जुबानी जानने का प्रयास करुंगा– भीष्म कुकरेती)
भीष्म कुकरेती– जी नमस्कार, अपने बारे में संक्षिप्त में जानकारी दीजिए।
गजेंद्र – जी मेरी जन्म तिथि-06 अप्रैल 1964 अर जन्मपत्री में आषाढ की मासांत यानी 15 जुलाई 1963,
जन्म स्थान-ग्राम सेमल्थ, पट्टी नैलचामी, जिला टिहरी गढवाल ।आधारिक शिक्षा-पांचवीं तक प्राथमिक विद्यालय ढाबसौड़। आठवीं तक राउमा घंडियालधार, 12वीं राइका घुमेटीधार। उच्च शिक्षा-रुपरेल कालेज आफ कामर्स एण्ड आर्ट बम्बई महाराष्ट्र।
भीष्म कुकरेती– ब्यवसाय व आजीविका के साधन क्या हैं
गजेंद्र–आजकल मैं नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी जी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन में राज्य समंवयक उत्तराखंण्ड काम कर रहा हूं , बच्चों की सुरक्षा के कानूनों और योजनाओं के क्रियान्वयन पर सरकार को सहयोग करते हैं।
भीष्म कुकरेती– बचपन में पहला नाटक कब खेला था।
गजेंद्र – हं वो जब मैं 8 वर्ष का था तो बाल राम का पाठ खेला था। 1979 में माधोसिंग नाटक लिखा उसमें अभिनय और निर्देशन भी मैने किया।
भीष्म कुकरेती– आपने बद्दी-बादींण के लोक नाटक देखे हैं क्या
गजेद्र–हां अगर इसका मतलब बेडा-बेडींण से है तो ‘‘लांग रड़ने’’ वाला खेल(नाटक) अपने गांव में, बरातों में बादिबादींण के लोक गाथा आधारित नृत्य जो वे सर्दियों के महिनों में गांव-गांव घूमकर करते थे। अगर आपका मतलब औजी-औज्यांण से हैं तों उनको भी चैत के पूरे महिने और पंण्डवार्त के 9 दिनों में स्वांग खेल करते देखा-सुना है।
भीष्म कुकरेती– कौन-कौन से नाटक शिक्षा लेते हुए देखे-
गजेंद्र – बचपन में शिक्षा लेते समय माधोसिंग भंण्डारी, पंण्डवार्त के 20 तरह के स्वांग शैली के ‘‘लोक नुत्य नाटक’’ देखे और बेडा बेडींण के नाटक जो मैने पहले भी बताया। कालेज टाइम पर बम्बई में, दिल्ली में कई नाटक देखे। बम्बई में एम एस सथ्यू निर्देशित ‘‘ बाटम अप’’, बब्बन खान लिखित-निर्देशित ‘‘अदरक के पंजे’’ और चंद्रकुमार गडगिल लिखित और मिलिंद शिंत्रे निर्देशित मराठी नाटक ‘‘ शापिथ गंदर्भ’’ नाटक मुझे खूब पसंद थे। पृथ्वी थियेटर में लगभग हर नाटक देखता था। दिल्ली में भी , चंडीगढ़ में भी।
भीष्म कुकरेती– किस नाटक कार ने आपको सबसे ज्यादा प्रेरित किया-
गजेंद्र– सभी नाटककारों की अपनी-अपनी शैली है। मुद्राराक्षस(सुभाष चंद्र)के लोकनाट्य शैलियों को आधुनिक रंगमंच से जोड़ना प्रभावित करता था।
भीष्म कुकरेती– आपने अब तक कितने नाटक लिखे-
गजेंद्र– अभी तक 53 नाटक लिखे हैं। जिनमें मंचीय नाटक, रेडियो नाटक, जन जागरुकता अभियानों के लिए नुक्कड़, कठपूतली और मुखौटा नाटक शामिल हैं।। कितने नाटक प्रकाशित हुए- 25 नाटक तो मैंने स्वयं प्रकाशित करवाए सन 2000 में ‘‘जन जागरुकता के 11 नाटक’’,सन 2005 में 10 नाटकों का संग्रह ‘‘नौऽ नवांण’’ और सन 2022 में 4 नाटकों का मंचीय नाटक संग्रह‘‘तिमुंण्ड्या’’ नाटक संग्रह प्रकाशित हैं और बाकी 11 नाटक पत्र पत्रिकांओं, शोध ग्रंथों, स्मारिकाओं आदि में छपे हैं कई समूह इनका मंचन कर रहे हैं।
भीष्म कुकरेती– कौन-कौन नाटकों का मंचन हुआ-
गजेंद्र– दो 5 मंचीय नाटक, 37 नुक्कड़, मुखौटा, कठपुतली नाटकों और 9 रेडियो नाटक का मंचन-प्रर्दशन हुआ है।
भीष्म कुकरेती– कौन कौन नाटकों का यूट्यबीकरण हुआ-
गजेंद्र– जी कुछ संस्थांओं ने डिजीटल प्रसारण अपनी वेबसाइट में किए हैं। मैंने फिलहाल अपनी 6कहानियों का नाटकीय अंदाज में यूट्यूबीकरण किया है। मेरी पुस्तक ‘‘चार रेखड़ा’’ में प्रकाशित सभी 11 कहानियों को बना रहा हूं।
भीष्म कुकरेती– आपके नाटक किस किस वर्ग में आते हैं-
गजेंद्र–नुक्कड़ नाटक में जन जागरुकता के विषय हैं। पानी, पर्यावरण, बाल अधिकार, स्वास्थ्य, जंगल, भूकंप और आजीविका से जुड़े विषय हैं। राजनैतिक-सामजिक ताने बाने जो लोक जीवन को प्रभावित करते हैं वे नाटक हैं। छुआछूत पर मेरा ‘‘अपछांण’’ जैसे नाटक हैं। महिलाओं के मुद्दों पर मंचीय नाटक‘‘वीं कु सर्ग’’ नुक्कड़ नाटक ‘‘अर्धनारीश्वर’’ जिसे कठपुतली में भी किया गया। नाटक में 16 विद्याओं-कलाओं का समावेश होता है तो उसमें मनोरंजन भी है, ब्यंग भी है तो जीवन के हर रस-रंग शामिल हैं तब आप नुक्कड़ नाटक लिखें या रेडियो या मंचीय नाटक। नाटकों का विवरण कुछ यू है- 1.नुक्कड़ और कठपुतली नाटक से जन-जागरुकता1996 मं भगीरथ ज्योति सम्पूर्ण साक्षरता अभियान में विकासखंण्ड देवप्रयाग और टिहरी के 77 गांवों में गढ़वाली भाषा में नुक्कड़ नाटक‘‘ग्वांणु’’ और कठपुतली नाटक‘‘अंधोविश्वास’’। 2-नये पंचायती राज एक्ट पर-‘‘अर्धनारीश्वर’’ और पंच परमेष्वर गढ़वाली भाषा में नुक्कड़ नाटक जनपद टिहरी, पौड़ी के 157 गांवों में प्रदर्शन। अर्ध नारीश्वर पारम्परिक वाद्य ढोल-दमौं के संगीत संग रचा गया नाटक है। नाटक का चम्बा विकासखंड का 18 गांवों मं भी प्रदर्शन किए गए। 3-1995.96 में सिप्सा(सुरक्षित मातृत्व) कार्यक्रम उत्तरप्रदेश के लिए एड्स जागरुकता अभियान के तहत जनपद टिहरी, उत्तरकाशी और पौड़ी में कठपुतली नाटक‘‘घुंघ्याट’’ का 117 गांवों में प्रदर्शन।
प्रदेश सरकार के ‘सुरक्षित मातृत्व’ जागरुकता अभियान के तहत 1997 में 4 गैर सरकारी संस्थाओ को नाटक प्रशिक्षण में कठपुतली नाटक‘‘अज्यांण’’ और नुक्कड़ नाटक‘‘सौंणु’’ लिखे जिनको 4 टीमों द्वारा जनपद टिहरी के 667 गांवों में प्रदर्शन किया गया। बाल पंचायतों की 6 नाटक कार्यशालाओं में जनपद टिहरी, उतरकाशी और चमोली के 75बच्चों को प्रशिक्षण दिया और गढवाली भाषा में लिखे मुखौटा नाटक‘‘आदमी’’