270 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
–
मेरो जीवन ढांगू -डबरालस्यूं पट्टियों म द्वी मनिख अतिप्रसिद्ध ह्वेन। एक छा विद्वान तिमली डबराल स्यूं का स्वर्गीय वाणी विलास डबराल अर ठंठोली क भग्यान भवानन्द कंडवाल जौंक कथा ऊंको जीवन म ही लोकथा बण गे छे अर भौत सा लोक अपर मन से बि यूंक विषय म काल्पनिक कथगा रच दींदा चा अर सुणांदा छा। भवानन्द जी पारिवारिक रूप से कर्मकांडी बामण , वैद्य छा जो ऊंको पारिवारिक व्यवसाय बि छौ। मल्ला ढांगू म पूर्वी मल्ला ढांगू छोड़ि लगभग प्रत्येक गाँव म जजमानी छे। बुलण म धीरे धीरे जो ठंठोली क प्रकृति क विरुद्ध छौ किन्तु बात खुल कौरी बोल दीण (फड़कीलो ) म पुरो ठंठोलो जन हि।
भग्यान भवानन्द जी अपर युवा दिनों म ब्रिटिश काल म हिंवल नदी तट ‘कठघर ‘ म कंट्री डिस्टिलरी म शराब छणदा छा। या देसी ठेका ब्रिटिश सरकार तै प्रतिवर्ष कर बि दींद छौ। स्वतन्त्रता काल म यिन ठेका बंद कर दिए गे छा।
ब्रिटिश काल म हि या स्वतंत्रता उपरान्त रणेथ म दूकान खोल दे। रणेथ मल्ला ढांगू , बिछला ढांगू तैं डबरालस्यूं व उदयपुर तै जुड़न वळ स्थान छौ जखम एक पुळ ब्रिटिश काल म निर्मित ह्वे छौ।
दूकान म रासन आदि सब कुछ अर प्रत्येक समय चाय गरम मिल्दी छे। दस बीस गाँव वळ चीज वस्तर खरीदी लि जांद छा। दूर वळ उधार का वास्ता आंद छा। पर भवानन्द जी सबसे अधिक प्रसिद्द ‘ कच्ची शराब ‘ निर्माण हेतु प्रसिद्ध छा। हमन तो इन सूण कि बगल म पट्टी क पटवारी भि भवानन्द जी क भट्टी म लखड़ सरकांदा छा। झूठी या सच पर सरा क्षेत्र म ये बात बुले जांद छे। दुसर प्रसिद्ध छ विशेष घुंघराळा मूंछों हेतु।
वास्तव म भवानन्द जीक सुभाव म क्रोध कतै नि छौ तो लोगुं ये भवानन्द जी रुचिकर मनिख लगदा छा। जब आवश्यकता हो पंचांग निकळी मुहूर्त , कुमुहर्त , ब्यौ क समय आदि बि बतांद छा। अर तुमन दुकानदार भवानन्द कंडवाल ना कंडवाल वैद्य समजिक अपर सरैलो व्यथा बतायी तो तुम्हारी नाड़ी देखिक पुड़िया व पथ्य परेज बि बता दींदा छा।
भौत सा पेट की पीड़ा बोलिक भवानन्द जी से कच्ची दारु मंगदा छा तो बोलि दींदा छ , ” ह्यां दारु चयेणी तो सीधा दारु मांग पर बिचारि पेट पीड़ा तैं दोष किलै ?”
जब दूकान भल चलणी हो , दारु क भट्टी पर प्रतिदिन आग जळणी हो तो अपर बिरण पर जलन हूण सामान्य सि बात च। तो अपर बिरण बौणी मथि लैंसडाउन म कानूनगो तक शिकायत कर दींदा छा। तो शिकैत क जांच हेतु अधिकारी आंद छा। अधिकारी रात शिवानंद जीक इख ही विश्राम करदा छा। तैं रात या तो रणेथ या पासक गाँव बाड्यों म एक मुर्गा की न्यायिक हत्या ह्वे जांदी छे। दुसर दिन हिन्दू संस्कार अनुसार पौण पर लाल पिठै अर चौंळुं पिठै लगदी छे। अधिकारी लैंसडाउन म रिपोर्ट करदु छौ कि लोगुंन जलन म अभियोग लगाई अन्यथा भवानन्द जी तो सरल साधारण पंडित व वैद्य छन। मथ्याक अधिकारी रिपोर्ट बाँचीक केवल इ पुछद छौ, ” कति बोतळ फुटिन अर कति मुर्गों क बलि चढ़ ” अर्थात भवानन्द जी लैंसडाउन म बि प्रसिद्ध छा कि वो सरकारी अधिकार्युं अति सेवा करदन।
एक दैं एक कैड़ो जिकुड़ि क अधिकारी ऐ गे। वैन बल सौगंध खै छे कि “मैं कुछ नहीं खाऊंगा और भवानन्द को यहां तहसील में पकड़ कर लाऊंगा “.
रात बल वो सिलोगी राई अर सुबेर नौ बजी रणेथ पौंछ गे। द्वी बोतल दारु पकड़े गेन। वै कड़क अधिकारी पर भवानन्द जीक मधुर वाणी व रात कुखुड़ भोज्य को कुछ प्रभाव नि पोड़। वो भवानन्द जी तै पकड़िक ली गे। पहाड़ी अधिकारी व पहाड़ी अभियुक्त तो हथकड़ी उथकड़ी क आवश्यकता नि पोड़। मार्ग म दुफरा से जरा पैल सौड़ गाँव क तौळ आयी। तखम द्वी मार्ग छा एक पीडब्ल्यूडी क मार्ग गाँव से भैर ही भैर जसपुर क पाणी म लिजान्द छौ अर एक जो सौड़ गाँव म लिजांद छौ।
भांड जीन दुसर मार्ग चुन अर सौड़ गां पोंछि गेन। सौड़ शत प्रतिशत नेगियों क गाँव। तख भांड जी अधिकारी तैं लेक अगमसींग लाला जी क इख चल गेन , फटाफट चौक म खटला ऐ गे , चाय पाणी ऐ गे। एक दुयूं न पूछ , “पंडित जी आज ?,” अधिकतर भवानन्द जी श्राद्ध को समय ही सौड़ आंद छ। “ना कुछ बड़ी बात नी। यु अधिकारी मि तै पकड़िक लैंसडाउन लिजाणु च ” अर इन उत्तर दे कि तीन चार युवा लाठ लेक ऐ गेन। भवानन्द जीन शांत रौणो ब्वाल अर ब्वाल , ” चिंता नि कारो सिलोगी से अधिकारी जी अकेला ही जाला “
थोड़ा देर म बिठलरों भीड़ ह्वे गे। क्वी जन्मपत्री दिखाणु तो क्वी अपर या अपर बच्चों क नाड़ी दिखाणु छौ। एक घंटा म भवा नंद जीक आय वृद्धि ही ह्वे।
पुनः बड़ेथ गाँव आयी तो भवानन्द जीन गाँव क मार्ग चुन अर लाला रतन सिंग जीक इखम रुक गेन। तखम बि वा ही आव भगत ह्वे। लोग ऐका जन्म पत्री अर नाड़ी दिखाण लग गेन। भवानन्द जी क आय वृद्धि ह्वे। भवा नंद जीन बतायी कि द्वी गाँव म ऊंका बूड दादा क बूड ददा से जजमानी चलदी अब तो आठ दस भाईयों म बंट गे जजमानी पर लोक एकी भाई मणदन सब ठंठो लो का कण्डवालों तैं।
भोजन रत्न सिंग जीक इख रु टि अर भुज्जी व घी की कटोरी।
सिलोगी आंद आंद अँधेरा हूण लग गे। भवा नंद जी खिमसिंग लाला जी क इख टिकेन। अर रात देर तक तख बि टिपड़ा दिखाण वळ अर नाड़ी दिखाण वळ आंदा रैन। सब्युं तै भवानन्द जीन अधिकारी बारा म ब्वाल , बिचारा सरकारी सेवक छन तो सेवा करण तौंक धरम च। “
सुबेर अधिकारी भवानन्द जीक खुट म पोड़ अर बुलण लग गे , ” मि थपलियाल छौं किन्तु मीन कै बि थपलियाल की इन अर्चना नि देखि जन आपक। तो ये दारु निर्माण छोड़ किलै नि दींदा ?”
भवानन्द जीक उत्तर छौ , ” द्याखौ थपलियाल जी ! नाड़ी दिखण अर जमन पटरी दिखण यु हमर पारिवारिक व्यवसाय च। किन्तु मीन दारु निर्माण अर पीण अपर आजीविका अर्थोपाजन म सीख अर द्वी अब मेकुण ढब छन। तो ढब छुड़न मेरो बस की बात नी। “
सुबेर थपलियाल अधिकारी भवा नंद जी तै अग्यारा रुपया डेक लैंसडाउन जिना चल गे।