सरोज शर्मा
पाश्चात्य काव्य शास्त्र (वेस्टन पोएटिक्स) क उद्भव का साक्ष्य ईसा से आठ शताब्दी से भि पैल मिलदिन।होमर और हेसिओड जन महाकवियों क काव्य मा पाश्चात्य काव्य शास्त्रीय चिंतन क प्रारम्भिक बिन्दु मौजूद छन। ईसापूर्व यूनान मा वत्तृत्वशास्त्रियों क काफी महत्व छाई। समीक्षा कि दृष्टि से वे टैम कि फ्राग्स और क्लाउड जनि कुछ नाट्य कृतियाॅ काफी महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय छन। फ्रागस म कविता थै लेकि प्रश्न किए ग्या कि वा उत्कृष्ट किलै मने जंदिन? काव्य समाज खुण उपयोगी प्रेरणा और मनोरंजन क कारण महत्वपूर्ण छन या आनंद प्रदान कनक मनोरंजन कु कारण?ऐ तरा से काव्य
शास्त्रीय चिंतन-सूत्र यूनानी समाज मा भौत पैल से मौजूद रै और विधिवत काव्य-समीक्षा कि शुरुआत प्लेटो से ह्वै।
प्लेटो न काव्य कि सामाजिक उपादेयता कु सिद्धांत प्रतिपादित करि। वैका अनुसार काव्य थैं उद्दात मानव मूल्यों क प्रसार कन चैंद। द्यबतो और वीरों कि स्तुति और प्रशंसा काव्य क मुख्य विषय हूण चैंद।काव्य चरित्र इन हूण चैंद जैक अनुसरण कैरिक आदर्श नागरिकता प्राप्त किए जा सक।प्लेटो न जब अपणा टैम तक कि उपल्बध काव्य कि समीक्षा करि त वूंथै घोर निराशा ह्वै कि कविता कल्पना पर आधारित च।वा नागरिको थैं प्रेरणा और विचार दीणक बजाय दुर्बल बणांद। प्लेटो क विचार से सुव्यवस्थित राज्य मा कल्पना वला कवियो थैं रखण ठीक नी च। किलैकि ऐ से कलाकार झूठी भावनात्मकता उभारि क व्यक्ति कि तर्क-शक्ति थैं कुंठित कैर दींद। जै से भल बुरा कु विवेक खत्म ह्वै जांद।
प्लेटो न कवियो और कलाकारों थैं राज्य से भैर रखण कि सिफारिश करि। वैक मनण छा कि काव्य हमरि वासनाओं थैं पोषित और भड़काणकु काम करद इलै निंदनीय और त्याज्य च।धार्मिक और उच्च कोटि क नैतिक साहित्य ऐकु अपवाद च ,पर ज्यादातर साहित्य ऐ आदर्श श्रेणी म नि आंदु।प्लेटो कि कला और काव्य संबंधी विवेचन से सौंदर्यशास्त्रीय और काव्य शास्त्रीय चिंतन म अनुकृति-सिधांत कु समावेश च।वैका अनुसार काव्य, साहित्य और कला जीवन का कै ना कै रूप मा अनुकरण च। काव्य थैं कला कु ही एक रूप मनण वल प्लेटो क अनुसार कवि और कलाकार अनुकरण कैरिक मूल वस्तु या चरित्रों क छाया या दृश्यो कि प्रतिमूर्ति उपस्थित करदन। वु वीं वस्तु कि वास्तविक ज्ञान नि रखदिन।
कलाओं और कविताओ थैं निम्न कोटि क मनणवल प्लूटो अनुकरण का द्वी पक्ष मनदिन-पैल जैकु अनुकरण किए जा और दुसर अनुकरण क स्वरूप। अगर अनुकरण क तत्व मंगलकारी च और उत्तम च त वु स्वागत योग्य च। पर ज्यादातर अनुकृत्य वस्तु अमंगल कारी हूंद और कभि कभि मंगलकारी वस्तु क अनुकरण अधूरू और अपूर्ण हूंद ।इन दशा मा कला सत्य से परे और अमंगलकारी हूंद।अरस्तूअगनै चलिक प्लेटो क शिष्य अरस्तू न कलाओं थैं अनुकरणात्मक मानिक भि वूंका महत्व थैं स्वीकार करि। ई प्लेटो क विचार से अलग दृष्टि छै, प्लेटो क विचार जख नैतिक और सामाजिक छन वखि अरस्तू कि दृष्टि सौंदर्यवादी च।
वूंन विरेचन सिद्धांत प्रस्तुत करि। ऐ सिद्धांत क अनुसार गम्भीर कामों कि सफल और प्रभावकारी अनुकृति वर्णन क रूप मा नि ह्वैकि कार्यो क रूप मा हूंद च जैमा करूणा और भय उत्पन्न कनवलि घटना हुंदिन जु यूं भावों क विरेचन से एक राहत और आनंद प्रदान करद। अरस्तू क विचार से भय और करुणा का द्विया भाव हमर भितर पैदा हूणा रंदिन। ऐ जनि त्रासदी देखण पर कुशल अभिनय से ई भाव संतुलित और समंजित ह्वै जंदिन और ऐ से हमर मन थैं राहत और आनंद की अनुभूति हूंद। कविता या नाटक का पात्रों क बीच यूं उत्तेजित वासनाओं और वैका दुष्परिणामों क हमर जीवन और शरीर म सीधू संबंध नि हूणक कारण ई वासनाएं परिष्कृत संवेदनाओं कु रूप ले लिंदिन।
ई भावों क विरेचन च और कविता क ई वास्तविक प्रभाव और काम च।अरस्तू न ब्वाल कि काव्य कल्पना पर आधारित हूंद। वू वास्तविकता क चित्रण नि हूंद वैक (काव्य) आधार सम्भावना च। काव्य सचमा अलंकरण च पर ई वैकि विशिष्टता च। पर कवि वस्तुओ कि पुनर्रचना करद, नकल नि। अनुकरण क कारण हि काव्य आनंददायक हूंद, वैसे शिक्षा प्राप्त ह्वै सकद पर वैक उदेश्य शिक्षा प्रदान करण नि, ऐ प्रकार से अरस्तू न प्लेटो क काव्य संबंधित विचारों और आरोपों क निराकरण करि।
औदात्य सिद्धांतप्लेटो और अरस्तू क बाद यूनानी काव्य-समीक्षा क क्षेत्र म एक प्रतिनिधि काव्य शास्त्रीय लोंजाइनस क नौ भि प्रमुखता से आंद। वूंन औदात्य -सिद्धांत कु प्रतिपादन करि। लोंजाइनस कि ये सिद्धांत कि अवधारणा न साहित्येतर इत्हास ,दर्शन और धर्म जना विषयों थैं भि अपण अंतर्गत समावेशित करि। वूंक अनुसार औदात्य वाणि क उत्कर्ष, कांति और वैशिष्ट्य च,जै कारण महान कवियों, इतिहासकारों, दार्शनिको थैं प्रतिष्ठा, सम्मान और ख्याति मिल।ऐ से हि वूंकि कृतियां गरिमामय बणी, और वूंक प्रभाव युग युगांतर तक प्रतिष्ठित ह्वै।
वूंन उदात्त थैं काव्य कु प्रमुख तत्व मान, वूंक अनुसार विचारों कि उद्दता,भावों कि उद्दता,अंलकारो कि उद्दता,शब्द विन्यास कि उद्दता कै भि काव्य थैं श्रेष्ठ बणांद। एक श्रेष्ठ कविता लोगों थैं आनंद प्रदान करद और दिव्य लोक मा पौंछांद। ऐ सिद्धांत थैं पाश्चात्य जगत थैं भौत प्रभावित करि।धीरे धीरे समय क साथ यूनानी समीक्षा कमजोर पव्ड़ण लगि और रोमन समीक्षा कु प्रभाव बड़। रोम कला साहित्य और संस्कृति संबंधि विचार-विमर्श क केन्द्र बण।
वखका सिसरो तथा वर्जिल जना समीक्षको न पाश्चात्य काव्य शास्त्र मा उल्लेखनीय योगदान करि। होरेस न बोलि कि-काव्य मा सामंजस्य और औचित्य क हूण जरूरी च। काव्य म श्रेष्ठ विचारों क सामंजस्य क दगड़ हि पुरातन और नै कु समन्वय हूण चैंद। काव्य का भावपक्ष और कलापक्ष द्वियो कि उत्कृष्टता क प्रति कवि थैं सजग और प्रयत्नशील रैंण चैंद।
मध्ययुगीन समीक्षा
पांचवी से लेकि पंद्रहवीं शताब्दि क समय मा पाश्चात्य काव्य शास्त्र कि दृष्टि म अंधु युग मने ग्या। ऐ दौरान चर्च और पादरियों क प्रभाव क कारण काव्य और समीक्षा बुरी तरा प्रभावित ह्वै। काव्य मा उपदेशात्मकता थैं ज्यादा महत्व दिए ग्या। ऐ काल क काव्यशास्त्रियों मा दांते प्रमुख छन।वूंक समय 1265 से 1391 क बीच कु मने ग्या। वूंन गरिमामंडित स्तरीय जन-भाषा थैं काव्य खुण सबसे उपयुक्त मान। काव्य मा जन-भाषा का आग्रही दांते न बोलि कि प्रतिभा क दगड़ कवि खुण परिश्रम और अभ्यास भि जरूरी च।वूंका मुताबिक उच्च विचार, राष्ट्र प्रेम, मानव प्रेम और सौन्दर्य प्रेम काव्य थैं महत्व प्रदान करदिन।
पुनर्जागरण काल
मध्ययुगीन समीक्षा चर्च और पादरियों क प्रभाव मा उपदेशात्मक ह्वै गै छै, रिनेसाॅ या पुनर्जागरण काल मा सिडनी और बेन जाॅनसन न मुक्त करै। सिडनी न बोलि कि आदिकाल से अब तक कविता ही ज्ञान विज्ञान क प्रसार क माध्यम रै और ऐकि उपयोगिता हरेक परिस्थित मा भि बणी रैलि। काव्य क उदेश्य सदाचरण कि शिक्षा दीण क अलावा आनंद प्रदान भि करद। प्रकृति क अनुकरण क अर्थ नकल नी बल्कि वैक भव्यतम रूप प्रस्तुत कैरिक प्रकृति क प्रति अनुराग उत्पन्न कन भि च।वैक वास्तविक अर्थ सृजनशीलता च।ऐ काल का हि दुसर प्रसिद्ध समीक्षक बेन जाॅनसन न भौतिकता क निर्वाह पर जोर द्या और क्लासिक साहित्य क अनुकरण और अनुशीलन थैं रेखांकित करि।नव्यशास्त्रवाद
सत्रहवीं और अठारहवी शताब्दि क बीच क समय थैं नव्य शास्त्रवादी समीक्षा क नौ से जंणै जांद। ऐका अनुसार साहित्य मा उन्नत विचारों कु गांभीर्य हूण चैंद। साहित्य मा उपदेशात्मकता, अपेक्षित साहित्य रचणा खुण अभ्यास और अध्यन क महत्व हूंद। हृदय पक्ष कि तुलना मा बुद्धि और तर्क कु महत्व ज्यादा हूंद। ऐ समीक्षा क अंतर्गत उत्कृष्ट प्राचीन साहित्य क अध्यन कि अभिरूचि, पुरातन साहित्य क मानदंडों क पालन, साहित्य क बाह्य पक्ष कि उत्कृष्टता और कलात्मक सौष्ठव पर बल दिए ग्या।
स्वछंदतावाद
अठारहवीं सदी क उत्तरार्ध और उन्नीसवीं सदी क शुरूआत मा स्वछंदतावाद न जोर पकड़ि और वर्डसवर्थ,काॅलरिज, शेली और कीटस जन कवियों न स्वछंदतावादी काव्य से स्वछंदतावाद नियामक समीक्षा सिद्धांत कि प्रस्थापना द्या। ऐका तहत काव्य मा कवि- कल्पना थैं महत्व दिए ग्या। आत्मानुभूति कि अभिव्यक्ति मा अधिक बल और काव्य क भाव पक्ष थैं केंद्र मा रखे ग्या। काव्य कु उद्देश्य स्वांत सुखाय और आनंद मानिक स्वछंदतावादी काव्य मा प्रेरणा, प्रतिभा और कल्पना थैं प्रमुखता मिल।
यथार्थवाद
ऐ समीक्षा सिद्धांत मा वस्तुस्थिति और तथ्यपरकता कु आग्रह छा। साहित्य कि नवीनता, प्राचीन साहित्यिक मानदंडो, परम्पराओं और रूढ़ियों थै नकारणकि प्रवृति और शिल्पगत नवीनता आदि क कारण यथार्थवाद क काफी विकास ह्वै और अगने चलिक ऐका हि गर्भ बटिक प्रगतिवाद, समाजवादि, यथार्थवाद और मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद कु विकास ह्वै।
कलावाद
ऐका अनुसार कला कला खुण ही च। रचना कै सिद्धि खुण नि हूंदि। नैतिकता, उपदेश या मनोरंजन काव्य क उदेश्य नी च,अपितु वा स्वांत :सुखाय च।ऐमा अनुभूति कि मौलिकता और नवीनता पर जोर दिये ग्या।
अभिव्यंजन वाद
ऐ सिद्धांत क प्रतिपादन करद दा बेनेदितो क्रोचे न बोलि कि काव्य -वस्तु नी बल्कि काव्यशैली महत्वपूर्ण च।और काव्य कि सुंदरता विषय मा नि बल्कि शैली पर निर्भर करद।अभिव्यंजना हि काव्य क काव्य तत्व च।
प्रतीकवाद
उन्नीसवी शताब्दि क उत्तरार्ध मा बादलेयर, मेलार्मे,बर्लेन,और वैलरी आदि न प्रतीकवाद थैं बल प्रदान करि ।
1886 मा कवि ज्याॅ मोरेआस न फिगारो नौ क पत्र मा प्रतीकवाद कि घोषणापत्र प्रकाशित करि। ऐ समीक्षा सम्प्रदाय न काव्य म शब्द कु महत्व सर्वोपरि बतै और बोलि कविता शब्दों न लिखे जांद, विचारों से ना ।काव्य सर्वसाधारण खुण नि हूंद बल्कि वै समझ सकणों वलों खुण हूंद। कवि कै और क ना बल्कि अपणि आत्मा क प्रति प्रतिबद्ध हूंद। शब्द अनुभूति और विचारों का प्रतीक हुंदिन।
बीसवीं शताब्दि आंद आंद समीक्षा कि कै प्रणाली विकसित ह्वी ।आधुनिक युग मा प्रमुख रूप से टी.एस.इलियट और आई.ए.एलियट न परम्परा और वैयक्तिक प्रतिभा क समन्वय, निर्वैयकतिक्ता कु सिद्धांत, वस्तुनिष्ठ समीकरण क सिद्धांत और अतीत कि वर्तमानता क सिद्धांत क प्रतिपादन कैरिक तुलनात्मकता क माध्यम से वस्तुनिष्ठ समीक्षा कु तानाबाना खड़ करि। आई.ए.रिचर्डस न आधुनिक ज्ञान क आलोक मा मूल्य -सिद्धांत कि नै व्याख्या कैरिक व्यवहारिक समीक्षा क सिद्धांत प्रस्तुत करि ।
ऐ हि शताब्दि मा न्यू किर्टिसिज्म और शिकागो क समीक्षा क प्रभाव द्यखे ग्या। काव्य क प्रमुख तत्व क रूप मा स्ट्रक्चर व टेक्स्चर क माध्यम न वस्तुनिष्ठ समीक्षा असरदार बणि। शैली वैज्ञानिक समीक्षा-प्रणाली बि ऐ दौर कि हि देन च