एकतरफा प्रेम कहानी
संस्मरण-सरोज शर्मा
बचपन भि कन हूंद हैं, कतगा भि तकलीफ देह ह्वा पर फिर भि मस्त ही च, सुबेर सुबेर बस्ता तैयार कैरिक स्कूल जांणकु अपणु हि आनंद छाई, हमलोगों कि मां हमर पास नि छै वा और छवटि भुली गौं मा, मि और म्यांर द्वि भै एक छवट भुला मी से तीन साल छवट और एक बढ़ भै मी से लगभग छै सात साल बड़ ,बड़ भैजी नैनीताल पढ़दा छा, हम तीनों न बड़ परेशानि म वु टैम बितै दुसरों क भरस्व, पर हमरी किस्मत!मि भौत दुबलि पतलि गंदमी रंग कि छोरी छाई, स्कूल क रस्ता मा हमरी ही रोड मा वैक घौर पव्ड़द छा, वु रस्ता रोकिक हमेशा पूछद छा ऐ चूहे खाणी कतगा चूहा खैन आज, मी भौत गुस्सा आंद छा और रूणु भि, पर वैन त रोज क हि नियम बणै द्या, पतना क्या मजा आंद छा वै, मी से वु तीन चार साल बड़ रै ह्वाल, लम्बू पतलु गोरू और देखैण मा भि स्वाणु,तब त वु छवटि समझिक छेड़दु छा, नियम से,धीरे समय न करवट बदलि।
मि भि आठ पास कैरिक नौ मा ऐ ग्यों, वैक मि छ्यडण बदस्तूर जारी छा, रोज स्कूल जांद दा वैन अपण घौर क भैर ईमलि क डाला क ताल खड़ ह्वै जांण मेरी बाट देखुण रैंद छा,अर अब वैक बचपन कि छेड़खानी शैतानि म बदल ग्या, मी भारि डैर लगदु छा खुटा कौंपण लग जांद छा वै देखिक,पतना कन कैरिक वु रस्ता पार करदु छाई, अब सोचदु किलै डरदु रै ह्वलु मि ,रोज क जरूरी काम छा वैकु सुबेर स्कूल जांद दा और स्कूल कि छुट्टी हूंद दा, द्विया टैम, इंतजार कनकु, इन भि नि छा कि वैकि क्वी और गर्लफ्रेंड बव्लदिन आजकल जौंकु नि रै होलि, पर पता न किलै म्यांर पैथर पागल जन रैंद छा हमर घौर क समणि दुकनि म ऐकि बैठ जांद छा, दर्शन कनकु पर मि भि चलाक छा जालि वली खिड़कि से देखिक कि बैठयूं च कि ना भैर ही नि आंद छा, ले खा माछा, बिचरू इंतजार कैरिक चल जांद छा, पर फिर वी सुबेर स्कूल जांणकु रस्ता-रस्ता म वैकु घौर, क्या कन छा,
जबकि वै पता छा मेरी तरफ से कभि हां नि हूंणि पर तब भि, भौत नौनि वै पर म्वरदि छै, मी पता छाई कि सब्या ऐका चक्कर मा रंदिन वैकि तीन चार सहेली मेरी भि बातचीत हूंदि छै ऊंसे, हमरा ही स्कूल मा पढ़दि छै, मी से द्वी क्लास अगनै ,वू भि वैकि सिफारिश करदि छै कि वैन त्वै से ही ब्यो करण, मिन बोलि मेरी मरजी क खिलाफ कन कै, वु सबुथैं ब्वलदु छा(अपणा दोस्तो थैं) कि द्याखा तुमरि भाभी जांणी च, वैन खूब प्रचार करि, एकदा मेरू बीच वलु भाजी घौर ऐकि गुस्सा म बोलि कि आज फलण न तेरी खातर लडै करि ,कै नौना थैं पीट पीटिक अधमरू कैर द्या ,मिन बोलि किलै,
वु त्वै कु कुछ बुनु छा और फलण न वैकि सिकै कैर द्या, मिन बोलि म्यांर क्या कसूर च,क्वी भि बेवकूफि करलु त मि क्या कैर सकदु ,भै चुप ह्वै ग्या ,वैकि यूं आदतों से मि भि दुखी रैंद छा, इतगा रूप सुंदरी भि नि छा मि कि क्वी इतगा पागल ह्वै जा, एकदा मि और मेरी दगड़या स्कूल जाणा छा एग्जाम छाया त रस्ता मा डिस्कस करदा करदा जांणा छा, राति हम दगड़ि हि पढ़दा छाया,हमर ही घौर मा।
वैन टोंट मारि हे म्यांर पड्व्वा घौर मा नि पढ़ि क्या?मेरी दगड़या न बोलि कतगा बदतमीज च यू वैन सुणि ले, बस क्या छाई जब हम पेपर देकि अंवा त रस्ता जाम वैका घौर क समणि, वैन अपणा दगड़या बुलै दिनि और वु जरा लम्बू चौड़ बदमाश जन लगणु छा वैन मेरू रस्ता रोकि और बोलण लगि म्यांर दगड़या खुण क्या बोलि तिन, मि समझ त ग्यों पर अजांण बणिक ब्वाल मिन,त्वै मि जंणदु भि नि कोच त्यार दगड़या वैन वैकि जनै सनिकि करी, तब त क्या छा मी चंडी चढ़ ग्ये, वै क नौ लेकि बोलि त्वै मा मी से लड़ै कनकि ताकत नि, जु इतगा छ्वारा इकठ्ठा कनि त्वैन ,बेशरम हैंसण लगयूं और बुनू ,तू किलै ब्वनि ,आप बोल मीकु ,मी भितर बटिक फुके ग्यूं
भौत ज्यादा लडै ह्वै वे दिन वैका दगडियों न भि भौत गालि खैं मेरी, बाद मा एक सहेलि क घौर आंद छा वैकु वु दगड़या मि से माफी क संदेश द्या वैन, कि वैन आपकि सहेली थैं मजा चखाण कु बोलि छा, पर मी से गलती ह्वै ग्या माफी चांदु,वैकि एक सहेली म्यांर घौर ऐ और मी मां रूण लगि मिन बोलि क्या ह्वाई किलै रूणी छै, बोलि कि तू वै थैं छोड़ दे वु मेरू च मि वैका बिना नि रै सकदु!मिन बोलि मिन पकड्यूं ही कख च वै त्वै हि मुबारक वु, त निरबै पागल बोलणी, वु हर बगत तेरी हि बात करद ,मिन बोलि मि क्या कैर सकदु, बता मिन थवड़ि बोलि वैकु कि मेरी बात कैर ,कि ब्वलद मिन वीसे हि ब्यो कन एकदिन मिन बोलि निश्चिंत रै मि नि कन वली वै से ब्यो, बिचरी सिसकी बांध बांधिक रूणी छै पर मि क्या कर सकदु छाई, भौत किस्सा छन वैका सुणौं त एक उपन्यास लिखे जा,मेरू ब्यो क बाद वैन हमरा नौकर थैं बल कमरा म बंद कैरिक खूब पीट ,गाली द्या हमरा परिवार वलों और मीं थैं भि, वु ब्वलदु छा कि मि अगर नि मिललु वै त वैन मोर जांण, द्याखा भाखा कभि कभि कन सच्ची ह्वै जांद साल डेढ़ साल बाद वु सच मा मोर ग्या,दिल भौत दुखी ह्वाई पर क्या कन!