भीष्म कुकरेती
भीष्म कुकरेती ने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक आधारों के आधार पर सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि कुमाउंनी व गढ़वाली का विकास कनैती (कुलिंद ) व खस भाषाओं से हुआ और धीरे धीरे संस्कृत, ब्रज-राजस्थानी बोलियों व एनी भाषाओं के प्रभाव से उन्नत होती गयी। भीष्म कुकरेती ने संस्कृत व शौरसेनी को गढ़वाली की जननी कतई नही मानते व कुकरेती ने इसके लिए कई द्रिस्तांत भी दिए।
यह बात भी सत्य है कि कुमाउनी और गढ़वाली भाषाएँ बहिने हैं . इन दोनों भाषाओं की अपनी वैशिष्ठ्य्ता भी है और साथ में समानताएं भी हैं जिसका भीष्म कुकरेती ने सान्गोपीय ढंग से व्याकरणीय तुलनात्मक अध्ययन किया व दोनों की समानता व् वैशिष्ठ्य पर लेख भी लिखे। इसी प्रकार डा बिहारी लाल जालंधरी ने दोनों भाषाओं के व्याकरणीय व् ध्वनी का तुलनात्मक अध्ययन किया .
गढ़वाली और कुमाउंनी का पृथक पृथक अस्तित्व एवं समानता
प्रसिद्ध व्याकरण व भाषा शास्त्री डा भवानी दत्त उप्रेती का कथन सर्वथा सही है कि कुमाउंनी व गढ़वाली का स्वतंत्र अस्तित्व है . पर्याप्त अंश में दोनों भाषाओं में शब्दावली सामान होने के उपरान्त भी कुमाउंनी व गढ़वाली में पर्याप्त व महत्वपूर्ण उच्चारण भेद है .
कारकों व वचनों में समानता व वैशिष्ठ्य
मेवाड़ी , जयपुरी , कुमाउंनी व गढ़वाली में एकवचन पुल्लिंग में ओकारान्त और बहुबचन में आकारांत मिलने के कारण इन भाषाओं को शौरसेनी के समीप रखा जाता है। गढ़वाली व कुमाउंनी में तिर्यक कारक में भी ओकारांत का आकारांत हो जाते हैं . जब कि सर्वनाम भी अधिकाँशत: दोनों में समान ही होते हैं
कारक ————-हिंदी ————–कुमाउंनी —————गढ़वाली
कर्ता —————ने —————-ले ——————– —– न , ल
कर्म ————–को —————कणि ,कन , कै , श———-तैं , थैं सणि,कुणि , कू , को
करण ————से , द्वारा ——-ले,पिति, कयल ,कयां ——– ,न , ल , से
संप्रदान ———के लिए ————हूँ , हुणि , खीं, खिन———-खुण,कुण, सणि , कु, कुतैं
———————————— हीं , हिन , लिज्या
अपादान ——–से —————-हैं ,बटि , बै ————————चे (चुले ), ते , बटि,बटिन, मुंगै ,न बिटि
संबंध ———-का, के , की —–,–को, का , कि ——————-को , का , कि , रो , रा , रि , ऐ ,अ , इ
अधिकरण ——में , पर ———-में , माझ ————————मा , मद्ये (माँज, मंजेन ), मु
डा . भवानी दत्त उप्रेती के अनुसार कुमाउंनी और गढ़वाली में सर्वनाम -अविकारी व विकारी रूप अधिकतर समान हैं . अबोध बंधु बहुगुणा के अनुसार गढ़वाली में विकारी बहुवचन में हम , तुम , वु ,/उ ;वी ,स्यि आदि होते हैं तो डा उप्रेती के अनुसार कुमाउनी में हमन , हमून, तुमन , उनन , इनन या इनून आदि रूप प्रयुक्त होते हैं
गढ़वाली व कुमाउंनी छ व क्रिया का प्रयोग
दोनों भाषाओं में छ -रूप तत्व मिलता है और समानता के साथ दोनों में वैशिष्ठ्य भी मिलता है यथा –
————– कुमाउंनी————————————- गढ़वाली ———————हिंदी
—–एकवचन ———बहुवचन ———————-एकवचन ——बहुवचन———-हूँ
—–छूं ——————–छूं —————————छउं ,छौं —–छंवां /छा ———-हो
—-छै ———————छौ ————————–छै /छे /छई —–छयां /छा——–हैं
—-छ ——————–छन ———————–च /छ ———–छन—————–थे (हम )
—–छियूँ/छ्याँ ———–छियाँ , छया ————–छयो /छयी —–छ्या/छयी———-थे (तुम )
—–छिये —————–छिया ———————–छयो ————छया——————-थे
—–छियो —————छिया ————————-छयो ———-छ्या ——————–थे (वे थे )
छ के प्रयोग में वर्तमान काल में लिंग भेद दोनों भाषाओं में नही पाया जाता है . छ दोनों भाषाओं में सहायक क्रिया है .
जहां छ का प्रयोग नही होता है वहां गढ़वाली और कुमाउंनी में भूतकाल रूप रचना समान ही होती है यथा –
—-हिंदी ————–गढ़वाली ————कुमाउंनी
—–चला (मैं ) ———चल्युं ————- हिट्यूँ
——चले (तुम )——-चल्या —————- हिट्या
सामन्य भविष्य काल में ल रूप तत्व इस प्रकार होते हैं
——हिंदी ———कुमाउंनी ————–गढ़वाली
—–चलूँगा ——-हिट्लो , हिटुंलो——चलुलो /चलुल /हिटुल /हिटलो
—–चलेगा ——- हिट्लो—————चललो /हिटलो /हिटल
—–चलेंगे ———हिटुंला—————चलला /हिटला
क्रिया रूपों में भेद
कई जगहों में दोनों भाषाओं में क्रिया रूपों में भेद भी पाया जाता है
——-हिंदी ———-कुमाउंनी ———-गढ़वाली
——चला ———–हिट्यो ————चल /चौल /चलि गे /गयो
——नहीं है ———न्हाति ————-नी च /छ
—–नहीं चाहता —–नी चान्युं ——-नि चांदु /चांदो
—–मै मारा जाता हूँ—मारिजाछू——मरयाँणु छौं /मारये जांदु
—-चलेंगी ————-चललिन ——-चौललि /चलली
—–कांपने लगा ——कामण पैठा —–कमण / कंपण लगे /लग्या
क्रिया विशेषणों की विशेषता
क्रिया विशेषणों में कुमाउंनी व गढ़वाली में कालवाचक विशेषणों में पर्याप्त समानता है
स्थान वाचक क्रिया विशेषणों में पृथकता मिलता है यथा –
कुमाउंनी ————————–गढ़वाली
याँ/यथ ———————————यख/इख /इथैं
वां/उथ ———————————वख /उख /उथै
काँ /कथ ——————————–कख /कथैं
जाँजथ ———————————जख /जथैं
इति ——————————-इनै /इथैं
उति ——————————उनै /उथैं
कति —————————–कनै /कथैं
जति——————————जनै /जथैं
परिमाण वाचक क्रिया विशेषणों में भिन्नता
कुमाउंनी ———————गढ़वाली
एतुक ————————-इथगा/इतुक
उतुक ————————–उथगा/उतुक
जतुक ————————-जतुक /जथगा /जतका
कतुक ————————–कतुक /कथगा /कतना /कतका
आभूषण नामों में समानता और वैशिष्ठ्य
हिंदी ————————————-कुमाउंनी ————————-गढ़वाली
हंसुली ————————————सुत्ती /सुत———————–खग्वळि
पैरो का चांदी का बजने वाला आभूषण — झांवर ————————–झंवरि
हाथ का कड़ा जैसा आभूषण —————-धागुलो ———————–धगुल/धगुलि /धागुलो
हाथ का एक आभूषण ————————-पौंछि ————————पौंछि
करघनी —————————————–कमर-ज्योडि
नथ ———————————————नत्थ /नथ ——————-नथुलि
नासिका का आभूषण ————————बुलाक ————————-बुलाक
अंगूठी —————————————-अंगूठी —————————अंगूठी
वस्त्र -नामों में समानता व वैशिष्ठ्य
हिंदी ————————————-कुमाउंनी ————————-गढ़वाली
अंगरखा ———————————-अंगोड़ो/आंगोड़——————–अंगुड़
लंहगा ————————————-घागरि/घागोर ———————घगुर/घगरि
वास्कट ———————————-भोट्टि/भोटि————————-फत्वी
धोती —————————————धोति ——————————धोति/धुतड़ा
पैजामा ————————————–शुरवाल——————————सुलार
कंधे से लेकर नीचे तक
पहना जाने वाला लडकों का पहनावा ————-संतराश———————-संतराज
फ्राक ——————————————–झगुलि————————— झगुलि