चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 29 th उन्तीसवां अध्याय ( प्राणायतनीय अध्याय ) पद ५ बिटेन ७ तक
अनुवाद भाग – २६१
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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वैद्यूं लक्षण –
हे अग्निवेश ! वैद्य द्वी प्रकारा हूंदन। एक प्रकारा ‘ प्राणामिसर ‘अर्थात प्राण लाण वळ अर रोग दूर करण वळ। दुसर रोगमिसार’ अर्थात रोग लाण वळ या प्राण नाश करण वळ। अग्निवेशन भगवान आत्रेय से बोलि – हम यूं वैद्यूं तैं कै कै लक्षणों से कन जाण सकदां ?
भगवान आत्रेयन बोलि – जु कुलीन कुल म पैदा हुयां होवन जौंकि बुद्धि व शास्त्र ज्ञान निर्मल होव , जौंन क्रिया कर्म दिख्युं होवो , जु अनुभवी , चतुर , सदाचारी , अभ्यस्त हथ वळ , जितेन्द्रिय , सर्व सामग्री से सम्पन , आँख , कंदूड़ सब इद्रिय से युक्त , जु शरीरे, नीरोगस्थिति तैं बलि भाँती से समजण वळ , उत्तम सूझ वळ , परिणाम तै भली प्रकार से जणन वळ हो , स्यु वैद्य प्राणरक्षक व रोग नाशक हूंदन। ये प्रकारा वैद शरीर क सम्पूर्ण ज्ञान से वीर्य और शोणित क संयोग से शरीर कन बणद यांको ज्ञान , शारीरस्थान म बतयां संक्यशास्त्र अनुसार प्रकृति विकृति क ज्ञान बिन संदेह बिंगद ह्वावो , सुख साध्य , कष्ट साध्य , याप्य या असाध्य चार परकारा रोगुं कारण , पूर्व रूप लक्षण , वेदना , अनुकूल , आहार -बिहार भली भाँती जणद होवन, सम्पूर्ण आयुर्वेद का सूत्र रूप बि विविध सूत्र हेतु , लिंग , अर औषध क ज्ञान ह्वावो वै तैं ; सामान्य व विशेष रूप से यूंक संक्षेप व विस्तार तैं अर तीन प्रकारा औषध , देवभ्यपाभय , अर युक्तिव्यपाश्रय , सत्वावजय समूह तैं जणन वळ , १६ प्रकारै मूलनि औषधियूंकि , १९ प्रकारै फलवर्ग औषधि चार प्रकारै स्नेह , पांच प्रकारै लूण , (नमक ) , आठ प्रकारै मूत , आठ प्रकारा दूध , ६ प्रकारौ क्षीरी वृक्षों तै , शिरोविरोचनादि पंचकर्म औषध समूह तैं , २८ प्रकारै युवागुओं , ३२ प्रकारै चूर्ण , ६०० विरेचन , ५०० कषाय , मनिखों प्रकृति स्वस्थ रावो कुण भोजन -पान क नियम , स्थान , चलण -फिरण , सीण , बैठण , मात्रा , द्रव्य , अंजन , धूम्रपान , नस्य , स्नान , वेगुं नि रुकण , व्यायाम , तात्म्य , इन्द्रिय परीक्षा उपक्रम , यूंक नियम क जणगरु , चिकित्सा क चरि पाद अर सोळा अंगु संदेहरहित , तीन प्रकारा वासना , वायुक गुण -दोष म संदेह रहित , चार प्रकारा स्नेह , स्नेहक २४ परकारा विचारण म चतुर। रस भेद ६४ प्रकारक योजना करण वळ , भौत प्रकारा स्नेहन , स्वेदन , वमन , विरेचन , औषधियों क भली प्रकार से प्रयोग करण म कुशल , शिरोरोग आदि रोग , वातादि रोगों अधिकता या हीनता , से जनित रोग पिड़का , तीन प्रकारै विद्रधि , शोथजन्य नाना प्रकारा रोग तै , रोगुं ४८ प्रकरण , १४० प्रकारा वात पित्त , कफ , रोगों निन्दित अतिषठूल अतिकृष पुरुषों हेतु , लक्षण , चिकित्सा क , हितकर , अहितकर निद्रा तैं , निद्रा या अतिनिद्रा क कारण व चिकित्सा तैं ,लंघनादि ६ प्रकारै चिकत्सा तैं , संतर्पण अपतर्पण से हूण वळ रोग , यूंक चिकत्सा तै जाणो , रक्तजन्य रोग , मद , मूर्छा अर सन्यास का कारण , लक्षण अर चिकित्सा म कुशल , ाहरविधि म कुशल , स्वभावतः पथ्यापथ्य आहार से हूण वळ परिवर्तन , ८४ प्रकारा आसव , रस अनुरसात्मक फरवी गुण निश्चय ,विकल्प म कुशल , अन्नपान क १२ वर्ग , गुण , प्रभाव , अन्नपानादि से रसादि धातुओं की उत्तपति कन हूंदी , , पथ्यापथ्य , , आहार का हितकारी फल , वातादि दोष क प्रकुपित हूण जनित रोग अर ऊंकी चिकित्सा , प्राणायतनों क दस स्थान , यूं सब विषयुं म अर अगवाड़ी अध्याय म जू बि बुलला , यूं सब म निपुण , आयुर्वेद क उद्देश्य , लक्षण क जणगरु ह्वावो , आयुर्वेद तैं ग्रहण करण , ग्रहण कर्यां तैं धारण करण अर अर्थ समजण म , प्रयोग , चिकित्सा प्रयोग , भौं भौं प्रकार से चिकित्सा करण , कार्य धातु तै समान करण , काल , क्रिया , कर्ता , भिषक , करण , औषध म कुशल , अर स्मरण शक्ति , बुद्धि , शास्त्रयोजना अर तर्क म समर्थ , शील स्वाभाव , गुनी ,सब प्राणियों प्रति माँ पिता भाई आदि क तरां म सामान रूप से मैत्री भाव रखद, स्नेह क भाव रखद , हे अग्निवेश जु ये परकारै वैद हूंदन ऊ प्राणाभिसर या प्राण रक्षक हूंदन। ५ -७।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ — ३८७ -३८८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022