शर्त ( रूसी कहानी )
मूल:आंतोन चेखव
अनुवाद: सरोज शर्मा
गहन अंध्यरि रात मा एक बुजुर्ग साहूकार अपण अध्ययन कक्ष मा चहलकदमि कनु छा वै याद आणि छै 15 बरस पैल कि वा शरद पूर्णिमा कि राति जब वैन एक दावत दे छै। वीं पार्टी मा कै विद्वान अंयां छा और रोचक बथा चलणी छै। कै विषयो क बातचीत क बाद बात मृत्यु दंड पर ऐ गै। मेहमानो मा कई विद्वान व्यक्ति और पत्रकार भि छा। जु मृत्युदंड क विरोध मा छा और मनदा छा कि ई प्रथा खत्म हूण चैंद।
किलैकि सभ्य समाज खुण या अशोभनीय और अनैतिक च।कै लोगों क ब्वलण छा कि आजीवन कारावास कि सजा हि ठीक च।गृहस्वामी न बोलि कि “मी यीं बात से असहमत छौं। वन त न मी मृत्युदंड क अनुभव च और ना आजीवन कैद क बारा म कुछ जंणदु। पर मृत्युदंड ज्यादा उचित और नैतिक च, फांसी न तत्काल मृत्यु ह्वै जांद पर आजीवन कारावास धीरे धीरे मृत्यु जनै लिजांद। अब बतावा कु ठीक च और कै थै मानवीय ब्वले जा?
जु कुछ पल म हि जीवन खत्म कैर द्या या तरसै तरसै क मरै जा?
एक बोलि द्विया ही अनैतिक छन किलैकि द्वियो क एक ही ध्येय च जीवन समाप्त कनकू।और सरकार क्वी परमेश्वर त नी।वै ई अधिकार नि हूण चैंद जै वा लेकि वापस नि कैर सक।
वखी एक 25 साल कु युवा वकील भि छा वैकि राय पुछे जाण मा वैन बोलि कि मृत्युदंड और कारावास द्विया अनैतिक छन। पर मी एक क चुनाव कनकु मिल त मि आजीवन कारावास ही ठीक समझदु। ऐ पर बहस छिड़ ग्या। वु साहूकार महाजन जु गृहस्वामी छा वै बकत वु जवान छा अधीर प्रकृति क छाई एकदम गुस्सा ह्वै ग्या। वैन अपण हथ मेज मा जोर से पटकि और चिल्लै क बोलि मि शर्त लगांदु छौ कि तुम कारावास मा पांच साल भि नि बितै सकदा। युवा वकील बोलि कि मि पांच साल त क्या पंद्रह साल रैकि दिखै सकदु। ब्वालो क्या शर्त च?पंद्रह साल। मी मंजूर च मि द्वी करोड़ रूप्या दांव पर लगंदु।
बात पक्की ह्वै, तुम द्वी करोड़ रूप्या और मि पंद्रह साल कि अपणि आजादि दांव पर लगंदु।अब तुम मुकर नि सकदा युवा वकील न बोलि।यन एक बेहुदा शर्त लग ग्या ।
वै साहूकार क पास कतगा करोड़ छा जैक बल पर वु घंमंड म फुलयूं छा,वु बिगडयूं और सनकी छा। खाणदा वु वकील से मजाक करद कि अभि भि टैम च चेत जा, मी खुण द्वी करोड़ कुछ भि नी,पर त्वै खुण जीवन का चार साल खूणा भौत बड़ चीज च।मि तीन या चार साल इलै बुनू कि मी पता च तु ज्यादा नि रै सकदु। ई ना भूल कि स्वेच्छा और बंधन मा बड़ अंतर च।जब ई विचार आलु त्वै कि जब चावा मुक्ति पै सकदु त वु त्यार जेल क जीवन थैं नरक बणैं द्याल। मी त त्वै पर तरस आणु च।
और आज वु साहूकार वूं पिछल दिनों क बारा म सोचणु छा। वैन अपथैं हि पूछि मिन इन शर्त लगै हि किलै?वैसे कैकु लाभ ह्वै?वै वकील न त अपणा पंद्रह साल बर्बाद करीं और मिन अपण द्वी करोड़ फेंक दिनि। ऐसे क्या लोग जाणि जाला कि मृत्युदंड से आजीवन कारावास ठीक च?
ई सब बकवास च। म्यांर भितर त एक अमीर आदिम कि सनक छै पर वै वकील कि अमीर हूणकि लालसा।
वै याद ऐ कि पार्टी क बाद तै ह्वै कि वु वकील अपण कारावास का दिन सख्त निगरानि और सतर्कता मा साहूकार का बग्यचा वला खंड मा रखे जाल।ई भि तै हवे ग्या कि जबतक वु कारावास म रालु कैसे भि मिल सकदु न कैसे बथा कैर सकद, ।वै अखबार मि नि मिलला और ना क्वी चिठ्ठी पत्री ।हां वै एक वाद्य यंत्र दिए जाल पढ़ै खुण किताब मिल जालि और वु चिठ्ठी भि लिख सकद।शराब प्ये सकद और धूम्रपान भि कैर सकद। भैर कि दुनिया से संपर्क खुण बस एक खिडकी छै खिड़कि से अपणा लिखयां नोट्स भेज सकद। हर जरूरी चीज जनकि किताब,संगीत ,शराब, जतगा चा खिडकी से ले सकदु। करार मा हर छवटि बड़ी बात क ध्यान रखे ग्या। ऐ कारण वु कारावास कालकोठरी जन ह्वै ग्या।
और वैमा वु वकील 14 नवम्बर 1870 का बारा बजि रात से 14 नवम्बर 1885 कि रात बारा बजि तक रैंण ह्वाल। कै भि खामी से भले वा द्वी मिनट की हि ह्वा साहूकार रूप्या दीणक दायित्व से मुक्त ह्वै जाल।।ऐ कारावास म पैल साल मा जख तक वैका लिखयां पर्चो से पता चल वैन एकुलपन महसूस और ऊब महसूस करि, रात दिन वैका कमरा से प्यानो कि आवाज आणी रैंदि छै, वैन शराब और तमखू छोड़ द्या, और लिखि कि ई वासनाओं थैं जगांदि छन और ई इच्छा और वासना हि त बन्दी का मुख्य शत्रु छन ।यखुलि शराब पीणकु क्वी आनंद नि। सिगरेट न कमरा क वातावरण दूषित ह्वै जांद। पैल साल वैन साल वैन हल्की फुल्कि किताब पणिन जौंमा अधिकतर सुखांत, कामोत्तेजक, और अपराध संबंधि उपन्यास छा।
दूसर साल प्यानो बजण बंद ह्वै ग्या और वैन उत्कृष्ट साहित्य मा रूचि ल्या। पांचवां साल मा फिर से संगीत सुनण लगि और शराब कि मांग भि ऐ।खिड़कि से झंकिक द्यखे ग्या कि वु अपण टैम खाण पीण और सींण म गुजरदु छाई। जंभै लीणु रैंद छा और अफसे हि रिसैकि बथा करदु छा।पढण भि वैन कम कैर द्या कभि कभि राति म लिखण बैठ जांद छा और भौत देर तक लिखणु ही लगयूं रैंद छा और सुबेर सब फाड़िक फेंक दींद छा।कै दा वै रूंदू भि दिखे ग्या। और छटा साल क आखिर मा वैन साहित्य दर्शन शास्त्र और इतिहास म रूचि लीण लगि।वु भौत तेजी से पढणं लगि वैकि कितबों कि मांग साहूकार थैं पूरि करण मुश्किल ह्वै ग्या। चार साल म कम से कम छै सौ किताब पौंछे गिन वे का पास।
ऐ मांग क दौरान वैन साहूकार थैं लिखि, म्यांर प्रिय जेलर मि यी चिठ्ठी छै भाषाओं मा लिखणुं छौं। ऐ अनेक विशेषज्ञो थैं दिखलैकि वूंकि राय लियां अगर यै मा एक भि गलती ह्वा त अपण बग्यचा म बंदूक चलै दियां जैसै मी पता चल जाल कि मेरि मेनत बेकार नि ह्वै। विभिन्न देश और कालों का जिज्ञासु अपण अपण भावनाओं थैं लिखि गैं। पर वूं सबु मा वी ज्योति जगमगाणी च। काश:तुम भि ऐ दिव्य आनंद थैं समझ सकदा।कैदी कि इच्छा पूरी ह्वै ग्या और साहूकार क आदेश पर बग्यचा मा द्वी गोली दगै गैन।
दस साल क बाद वु बंदी अपणि मेज मा जड़ अवस्था म बैठिक बाइबिल कु न्यू टेस्टामेंट पढणु रैंद छा, साहूकार थैं अजीब लगि कि जब वैन चार सालों मा छै सौ पांडित्यपूर्ण किताब पैढ़िक वूं पर कुशलता प्राप्त कैरिक कन पूरा एक साल तक न्यू टेस्टामेंट ही पढ़द रै जुकि छवटि सि किताब च।वैन वींम क्या देखि?न्यू टेस्टामेंट क बाद वैन धर्मो क इतिहास ब्रह्म विद्या पढण शुरू कैर द्या।अपण कारावास क अंतिम द्वी साल मा वैन असाधारण रूप से जु भि समझम ऐ अंधाधुंध पढ़ि। पैल त वैन प्राकृतिक विज्ञान म ध्यान लगै वैका बाद बायरन और शेक्सपियर पढ़ि। फिर रसायन शास्त्र और चिकित्सा शास्त्र कि मांग करि। एक उपन्यास और फिलासफी और थियोलाजी पर विवेचना भि वैकि मांग मा शामिल छै। इन लगणु जन वु कै सागर मा बैणु ह्वा, और जन वैका चरया तरफ कै भग्नावशेष का टुकड़ा फैलयां ह्वा वूंथै वु अपण जीवन रक्षा खुण एक क बाद एक बिनणु ह्वा।
साहूकार सब याद कनू छा और सोचणु छा कि भोल वु दिन भि ऐ जाल और इकरार नामा क मुताबिक कैदी थै मुक्ति मिल जालि और मी द्वी करोड़ दीण पव्ड़ला। और अगर मि सब दे दयूंल त कंगाल ह्वै जौंलु।
पंद्रह साल पैल जब शर्त लगै छै तब साहूकार क पास अथाह दौलत छै। पर अब त सट्टा और जुवा मा वैन सब गंवै द्या। वैक सरया कारोबार नष्ट ह्वै गे छा। अपण घंमंड म चूर वु साहूकार अब साधारण श्रेणि क ह्वै ग्या छा जु कि छवट छवट घाटा भि बर्दाश्त नि कैर सकदु और घबरै जांद।
अपण मुंड पकड़िक सोचण लगि वै बखत कतगा बेवकूफी करि मिन। और वु बेवकूफ जेल मा मोरि भि नि।वु त अभि चालीस साल कु ही च अब वु मी से पाई पाई वसूल कारलु और म्यांर धन मा कब्जा कैरिक ब्यो कैरिक मजा कारलु। वैक समणि मि भिखरी जन वैका ताना सुणुलु, मी ई सुख तुमर ही दियूं च तुमरू आभारी छौं। मि तेरी क्या मदत कैर सकदु? ना!ई मि कन सह सकलु?यीं जिल्लत से छुटकरा पाण खुण कैदी थैं म्वरण ही पव्ड़लु।
घड़ी न तीन बजैं साहूकार न सुणि वु जगयूं ही छाई, बाकि घर क लोग सिंया छा। सरया वातावरण सुनसान छा बस डालों कि सां सां कि अवाज छै। बिना अवाज करि वैन तिजोरि कि चाबि निकालि जैसे पंद्रह साल पैल वै कैदि थैं बंद कियै ग्या छा।वैक बाद वु ओवरकोट पैरिक घौर से निकलि। बग्यचा मा भौत ठंड छै, और घटाघोप अंध्यर छा बरखा भि हूंणी छै, कुछ भि नि दिखेंणु छा टटोलदा,टटोलदा कारावास तक पौछि। वैन चौकीदार थै अवाज लगै पर वख क्वी नि छा। इन लगद कि खराब मौसम क कारण चौकीदार कखि लुकिक बैठयूं ह्वाल। वैन सोचि कि मी अपण इरादा पूर कन त हिकमत से काम लीण ह्वाल। सरया मामला मा शक चौकीदार मा हि जालु।
अंध्यर मा वैन और बग्यचा क हाॅल म घुस ग्या। वैक बाद बंदीगृह क दरव्जा मा पौंछ और माछिस जलै। वैन देखि ताला म लगीं सील ठीक-ठाक च। माछिस बुझ जांण क बाद वैन कौंपदा कौंपदा खिड़की म झांकि और देखि कि कमरा मा मोमबत्ती जलणी च और बंदी अपणि मेज क समणि बैठयूं च और वैकि पीठ, हथ और लटला दिखेंणा छा। वैकि चारपाई मा किताब बिखरीं छै।
पांच मिनट बीत गैन और ऐ बीच बंदी एकदा भि नि हिल डुलु। पंद्रह साल कि कैद न वै बिना हिलयां डुलयां बैठण सिखै द्या। साहूकार न खिड़की म खट खट करि फिर भि कैदी न क्वी हरकत नि करि,तब साहूकार न सतर्कता से सील तोड़ि ताला म चाबी लगै, ताला म जंक लगयूं छा पर जोर लगांण से खुल ग्या, साहूकार न सोचि कि बंदी चौंकिक उठ जाल। पर सब कुछ वन्नी शांत रै, तब कुछ देर रूकिक वु कमरा म ग्या।वैन देखि कुर्सी पर मेज क समणी जु मानवाकृति बैठीं छै वु एक ढांचा मात्र हि छाई, जु खलड़ से ढकयूं छा वैका लटुला ब्यठुलो जना लंबा और मुख मा लंबी दाढ़ी च।वैका हथ जौंसे वु मुंड पकड़िक बैठयूं च कंकाल जना दिखेंणा छा, जै देखिक क्वी भि डैर जा।सरया लटुला सफेद छा वै देखिक कै विश्वास नि ह्वै सकद कि वु चालीस साल कु ह्वाल। वैक समणि मेज मा क्वी कागज छाई जैमा कुछ लिखयूं छा।
साहूकार सोचण लगि शैद सिंयूं च, अपणा वूं रूप्यों थैं देखणु ह्वाल जु वै मी से मिलला। पर मि यै बिस्तरा म गिरैकि तक्या से दबै दियूंल त वैकि सांस रूक जालि। फिर क्वी भि पता नि लगै सकद कि वैकि मौत कनकै ह्वाई। सब ऐ प्राकृतिक मौत हि समझला। पर पैल मि देख त ल्यूं कि कागज मा लिखयूं क्या च?
ई सोचिक साहूकार न मेज से कागज उठै और पढण लगि।
भोल बारा बजि मी मुक्ती मिल जैलि पर मि ई कमरा छवण से पैल सूर्य क दर्शन से पैल आप सब्यूं खुण अपणा विचार लेख दयूं। परमेश्वर जु मी देखणु च वै साक्षी मानिक अपण अंतःकरण से बोलदु कि अपणि या मुक्ति, अपण ई जीवन, स्वास्थ्य और सब्या कुछ जै वरदान ब्वलेजांद, सबसे मी विरक्ति ह्वै ग्या। यूं पंद्रह साल मा मिन सांसारिक जीवन कु गहन अध्ययन करि। ई सच च कि न मिन धरती म रैंण वलों थैं देखि पर वूंकि लिखीं किताबों से मिन सुगंधित सुरा क पान करि मधुर संगीत क स्वाद ल्या और जंगल मा हिरणो और जंगली जानवरों कु शिकार करि। और इन रमणियों जु अलौकिक बादलों मा कवियों कि कल्पना म रंदिन।
रात मा प्रतिभाशाली लोग म्यांर पास ऐकि तरह तरह कि कहानि सुणांदा छा जौं सुणिक मि मि मदमस्त ह्वै जांद छा।वा किताबों न मी पहाड़ो कि ऊंचै दिखैनि मि माउंट ब्लैंक और माउंट एवरेस्ट तक कि सैर कैर औं। वख बटिक मि सूर्योदय और सूर्यास्त का क भि दर्शन करि लींद छाई। मि देख पाणु छाई कि आकाश मा बिजली कि चमक बादलो थै कन फड़द। मिन हैरा भरा जंगल खेत नदी झील शहर सभि देखिन। जलपरियों थैं गांदा सुणि च, यी कितबी मी अथाह अगाध सीमा तक लि जैकि चमत्कार दिखैंदिन। शहर जलदा और भस्म हूंद देखिन नया नया धर्म प्रचारको थैं सुणि और कतगा देशु मा विजय कैर।
यूं किताबों से मी भौत ज्ञान मिल। मनिखो कि अटल विचार धारा जु सदियों मा संचित ह्वै म्यांर मष्तिष्क म एक ग्रन्थी बण ग्या और अब मि जंणदु छौं कि मि आप सब्या लोगों से अधिक चतुर छौं ।फिर भि यूं कितबों थैं तुच्छ समझदु छौं और ई जांणिक कि संसार क सरया ज्ञान और वरदान बेकार च मि ऊंकि उपेक्षा करदु छौं।
यख हर चीज मृगमरीचिका क समान क्षणभंगुर च काल्पनिक च।आपलोग ऐ सौंदर्य क अथाह भंडार पर गर्व कर सकदां पर मृत्यु क गाल म पड़िक ऐ संसार से सब इन्नी चल जाला जनकि मूसा बिलों मा रै कि चल जंदिन। तुमर सरया इतिहास और ज्ञान धरती क गर्त मा समै जांण। म्यांर विचार से तुम सभि मदांध हूणा छा सच थैं झूठ और बदसूरती थैं सौंदर्य समझणा छा। तुमन धरती का सुख कि खातिर स्वर्ग क सुख गिरवी धैर द्या। इलै मिन वूं सब सुखों क त्याग क मन बणै याल। अपण कारावास कि समाप्ति से पांच मिनट पैल निकल जौंलु और आजीवन सन्यास ले लींलु, जैसे साहूकार अपण धन अपण पास ही धैर सक।
साहूकार न चिठ्ठी पढ़िक वखि मेज मा धरि और वै अद्भुत व्यक्ति क कपाल चूमिक रूंण लगि।
फिर वख से चल ग्या वै भौत ग्लानि हूणी छै। अपण कमरा म ऐकि बिस्तरा म पोड़ ग्या मलाल क कारण वै भौत देर निंद नि ऐ और ना आंसु रूका।
अगला दिन सुबेर चौकीदार ऐ और वैन बतै कि बंदी खिड़की से कूदिक भाग ग्ये अफवाह से बचणकु साहूकार न बंदी कक्ष म जैकि मेज म प्वडयूं वु सन्यास वला कागज उठै ल्या और अपणि तिजोरी मा सदनि कु बंद कैर द्या