वांका ( रूसी कहानी )
मूल -आंतोन चेखव
अनुवाद-सरोज शर्मा
नौ साल कु वांका झुकोव, जै तीन मैना पैल अल्याखिन मोची क यख काम सिखणु क भेजे ग्या,बड़ दिन से इंतजार कनु छा जब वैका मालिक मालकिण और काम कना वल लोग गिरजाघर चलि गै, तब वैन मालिक कि अलमारी से दवात कलम निकालि, जैकि निब म जंक लगयूं छा वैन एक मुडयूं सि कागज निकालि वै फैलाकि लिखण लगि,पैल आखर बणान् से पैल वैन खिडकी और दरव्जा जनै सहमी आंखों न देखि गैरा रंग क भगवान क फोटू थैं देखि, जैका द्वी तरफ दूर तलक जुत्तों से भ्वरीं शेल्फ छा वैक कौंपिक गैरी उसांस ले। कागज बेंच म फैलयूं छा और वांका बेंच क पास फर्श मा घुंडों क बल खड़ छा,
वैन लिखि, प्यारा ददा जी कोन्स्तान्तीन मकारिच!मी तुमथै चिठ्ठी लिखणुं छौ!मि नमस्कार बोलदु आशा करदु ईश्वर तुमथै सुखि राखलु!म्यांर बबा और ब्वै नि छन मी खुण तुम ही सबकुछ छा!
वांका न मुंड उठैकि खिड़की जना देखि जै मा जलीं मोमबत्ती कि परछै झिलमिलाणी छै, कल्पना म वैन अपण ददा कोन्स्तान्तीन थै साफ देखि, जु झिवारियोव नौ कु कै धनी आदिम क राति क चौकीदार छा, वु दुबलु पतलु सि छवटु सि पैंसठ साल कु बुडया छा, पर भौत चुस्त और फुर्तीलु, वैक मुखमा सदनि मुस्कान रैंद छै वैक आंखा शराब क नशा मा भ्वरीं रैंद छै, दिन मा वु नौकरों क रसवड़ा मा सिंयू रैंद छा या बावर्चीनियो से मजाक कनू रैंद छा, राति म भेड़ क खलड़ से बंणयूं कोट पैरिक लाठी खटखटादां हवेली क चरया तरफ चक्कर लगांद छा, वैक पिछनै पिछने वैकि बूढ़ी कुकरी कश्तांका और एक दुसर कुकर अपण काला लटुलों और लम्बू शरीर क वजा से व्यून बोले जांद छा मुंड झुकैकि चलदा छा,व्यून क ढंग से लगदु छा वैमा आदर कनकि और हरेक दगड परिचय कनकि विलक्षण प्रतिभा छै। वु जांण पछयाण वला और अजणां लोगु थै भि प्रेम से द्यखदु छा। पर वैकु क्वी विश्वास नि छा वैक सीधु पन और आदरसूचक बर्ताव त वैकि दुष्टता छुपाण क नकाब भर छाया। अचानक खुट मा काट लीण, तैखना म चुपचाप घुस जांण या किसानों का कुखड़ा झपटण मा उस्ताद छा।रोज वैकि पिटै हूंद छै। द्वी दफा वै रस्सी से बांधिक भि लटकयै ग्या। वै इतगा मार पव्ड़दि छै कि वु अधमरू ह्वै जांद छा।पर वु फिर भि जन क तन छा।
ददा जी शैद ये बखत फाटक मा खड़ ह्वैकि गिरजाघर कि कि खिड़कियों न आंदि तेज उज्यल देखणा ह्वाला। और फेल्ट बूट पैरिक नौकर चाकरों से मजाक कना ह्वला। वु सर्दी म सिकुड़दा ह्वाला और नौकरयाण और बावर्चीन थैं चुटकि काटिक ही ही ही कैरिक हंसदा ह्वाला।ब्यठुलों जनै डिबिया बढ़ै कि बोलदा ह्वाला ल्या एक चुटकी सूंघणी ल्यो।
ब्यठुला सुंघणी सूंघिक छींकलि और ददा भौत खुश ह्वाल और वूंकि खिल्ली उड़ैकि बोललु ठण्ड मा जमीं नाक खुण या अकसीर च।
कुकरों थैं भि सुंगणी सुंघये जालि, काश्तकां छींकली और मुंड हिलैकि चुपचाप चलि जालि जनकि बुरू मान ग्या होलि। पर व्यून छींकण कि अशिष्टता नि करलु वु चुपचाप पूंछ हिलाणु रालु। मौसम भौत सुंदर ह्वाल हवा भि ताजी ह्वैलि, रात अंध्यरि होलि पर सफेद सफेद छतों मा पालु और बर्फ न चमकदा डालों, चिमनियों से उठणवल धुवां वल पूरू गौं साफ दिखै पव्ड़द होलु।असमान म गैंणा छिटकयां ह्वला। आकाश गंगा साफ दिखैणी होलि जनकि त्यौहार खुण ध्वै मांजी ह्वैलि। वांका न गैरी सांस ल्या और स्याही म कलम डुबैकि फिर लिखण लगि।
और ब्यालि मी भौत मार पव्ड़ि। मालिक म्यांर लटुला पकड़िक घसीटिक भैर आंगन म लिजैकि म्यांर खलड़ उतरण लगि,किलैकि मि वूंका नौन थैं झुलांद झुलांद से ग्ये छाई। और पिछल हफ्ता एक दिन मालकिण न मी हेरिंग माछु साफ कनकु दे मिन वैकि पूंछ कि सफै शुरू कैर त मालकिण न मी से माछ छीन ल्या और वैक मुंड म्यांर मुंड म रगड़ द्या, दूसर कामगार म्यांर मजाक बणांदा छन शराब खाना से वोदका मंगाणकु भि भेजदिन और मी मालिक कि ककड़ी चुराण कु बोलदिन और मालिक कुछ भी मिल जा वैसे हि मेरी ठुकै कैर दींद और खाणकु कुछ नि मिलदु। सुबेर रवट्टि क टुकड़ और दोफरा म दलिया और फिर रात मा वी रवट्टि क टुकड़। मी चा,मिठै और गोभी क शोरबा कभि नि मिलद। ई सब त सरया क सरया वु अफ्वी भकोस जंदिन। मी ड्योढी मा सुलंदिन और राति जब वूंक नौन रूंद त मी झुलांण पव्ड़द और मि से भि नि पांदु।प्यार ददा जी भगवान खुण मी यख बटिक ली जा मी गौं लीजा मी से अब नि सहेंदु….ददा जी जी मि हथ जोड़दु आपका खुटा पकड़दु मी यख से लिजाव, निथर मिन मोर जांण। मि भगवान से हमेशा तुम खुण प्रार्थना करलु।
वांका क होंठ फड़किन, वैन आंखा मलिक सिसकि भोरि।मि तुमरी सुघंणी पीस दयूंल, वैन अगनै लिखि मि तुम खुण भगवान से प्रार्थना करलु और अगर मि शैतानी करलु त जथगा भी बेंत न मरिला मी मंजूर च।अगर तुम समझदा छा वख मी खुण कुछ काम नी त मि नौकरों से ब्वलुल कि मी पर दया खैकि जुत्ता साफ कनकु काम दे द्या। या मि फेदया कि जगा चरवाहा कु काम कैर ल्यूंल। मेरा प्यारा ददा जी अब मि और नि सह सकदु मेरा प्राण निकलणा छन निथर मि पैदल ही गौं भाग जौंल म्यांर पास जुत्ता भि नि छन और मी पाला कु डैर च। जब मि बड़ हूंलु त मि तुम्हरी भौत देखभाल करलु और मि कै थैं भि तुमथै तकलीफ नि पौंछाण दियूंल। जब तुम मोर जैला त तुम्हरी आत्मा की शान्ती खुण प्रार्थना करलु,जन मि मां खुण करदु।
और मास्को इतगा बड़ शहर च बड़ा बड़ा लोगों का इतगा सरया मकान छन और इतगा घ्वाड़ा और भेड़ त बिल्कुल नि छन कुकर भि डरावना नि छन। बड़ा दिन मा नौनयाल सितार लेकि नि निकलदा और गिरजाघर म गाण गाणकु भि नि जांण दींदा।एकदा मिन माछा पकड़ण का कांटा बिकदा देखिन वा डोर लगीं बंशी छै, जन चाहो वनी माछा पकड़ा इन बंशी, और एक बढ़िया कांटु भि छाई जैमा आध-आध मण रोहू माछा ऐ जा। मिन दुकान देखीं जख बनि बनि कि बंदूक मिलदीं बिल्कुल वन्नी हि जन मालिक क पास च, वैकि कीमत सौ रूबल त जरूर होली।और बूचड़खानो मा तीतर, बनकुकडी और खरगोश मिलदन, पर वु नि बतांदा कि वु वूंथै कख बटिक मारिक लिंदिन।
प्यारा ददा जी वख हवेली मा बड़ा दिन मा हम फर क डालू सजौंला, तब तुम मी खुण एक पन्नी वल अखरोट ले लिंया और वै हैरि संदूकची मा धैर दियां। छवटि मालकिण ओल्गा इग्नात्येव्ना से मांग लिंया, बोल दियां वांका खुण च।
वांका न गैरी सांस ले और फिर खिडकी जना तकण लगि।
वै याद ऐ ददा मालिकों खुण फर क डाला लीणकु जंगल जांदा छा और वै अपण दगड़ लिजांदा छा,।कतगा सुख का दिन छाया!फर क डालु कटण से पैल ददा अपण पाइप सुलगांदा छाया, एक चुटकी हुलास लेकि और ठंड से कौंपिक वांका पर हंसदा छाया…फर क डाला बर्फ से ढकयां स्तब्ध खड़ा प्रतीक्षा करदा कि पैल कु म्वारलु?और अचानक क्वी खरगोश तीर जन निकलिक भाग जांद ददा चिल्लाण से नि चुकदा छा।
रो ले, पकड़ ले हे दुमकटा शैतान!
ददा डाल घसीटिक हवेली लिजांदा छा और वै सजाण शुरू कैर दींदा छाई। वांका कि प्यारी छवटि मालकिण ओल्गा सबसे ज्यादा व्यस्त हूंदि छै।
जब तक वांका कि ब्वै पेलागेया जींदि छै वा हवेली की चाकरी करदि छै। ओल्गा वांका थै मिठै दींद छै। अपण मन बहलाण कु वूंन वै सौ तक गिनती करण और क्वोड्रिल” नाच भि सिखै।
पर जब पेलागेया मोर ग्या तब अनाथ वांका फिर अपण ददा क दगड नौकरों क रस्वड़ मा और वख बटि मोची अल्याखिन क यख मास्को भेजे ग्या…..
वांका न अगने लिखि-प्यारा दादा जी म्यांर पास ऐ जावा ईसा मसीह क नाम पर मी यख बटिक लीजा वा,मी अभागा और अनाथ पर दया कैरा। ई लोग मी पिटदा छन भूखु भि रखदिन, मि कतगा दुखी छौं बतै नि सकदु, मी बराबर रूणु रैंदु और अभि वै दिन मालिक न म्यांर मुंड मा फर्मा इतगा जोर से मारि कि मि गिर ग्यों और मी लग कि अब मि उठ नि सकदु। मेरी जिंदगी कुकर से भि बदत्तर च।और अल्योना, काने योगोर और कोचवान थै म्यांर प्यार बोलयां म्यांर बाजा कै नि दियां मि तुमर नाती वांका झुकोव। मेरू प्यारू ददा ऐ जावा।
वांका न कागज चरया तरफ से मोड़िक वै एक लिफाफा म बंद कैर द्या जैथैं वु एक दिन पैल एक कोपेक न खरीदिक ल्या छाई,…तब वु ठैरिक स्वचण लगि फिर दवात म कलम डुबै और लिखि” गौं मा म्यांर ददा थैं मिल” फिर सोचि मुंड खुजै और जोड़ द्या “कोन्स्तान्तीन मकारिच थैं मिल”ऐ बात मा खुश छा कि लिखण मा कैन वै रोकि-टोकी नि। वैन टोपी लगै और बिना कोट पैरयां गलि मा दौड़ ग्या….
एक दिन पैल बूचड़ कि दुकनि मा कैन बतै छै कि चिठ्ठी डाक का बम्बई मा डलै जंदिन और यख से सरी दुनियाभर मा गाड़ीयों से भेजे जंदिन, जौं पर तीन घ्वाड़ा हुंदिन, कोचवान शराबी होंदु, वांका दौडिक बम्बू क पास पौछ और अपण चिठ्ठी दराज म डाल द्या।
घंटा भर बाद वु चैन से से ग्या…..वैन एक अलाव घर क सुपिन देखि, अलावघर क ऐंच ददा बैठयूं च सभि थै चिठ्ठी बांचिक सुणाणू च और व्यून अलाव घर क समणि अगनै पिछनै दुम हिलैकि टहलणू च…
रचना काल 1886