संताप ( रूसी कहानी )
लेखक : आंतोन चेखव
अनुवाद:सरोज शर्मा
मिस्त्री ग्रिगोरी पेत्रेव ,जै थै भौत दिनों से लोग पूरा गाल्चिनो जिला मा कुशल दस्तकार क रूप मा पर निकज्जू( काहिल ) क रूप मा जंणदन, अपणि बुजुर्ग बिमार घरवलि थै जेम्तस्वो अस्पताल लि जाणु छा।वै गाड़ी हांकिक लगभग तीस मील क सफर कन छा और सड़क भौत खराब छै!काहिल ग्रिगोरी कि त बात ही क्या, सरकारी डाकिया तक कि बूता से भैर कि बात छै वा!
ठिठरांण वल बथौं मुखमा लगणु छा बर्फ का गोला हवा मा बादलों जन उड़णा छा,और पता लगाण मुश्किल छा कि बर्फ असमान से आणी च या धरति से, बर्फ कि वजा से पुंगडा तार खम्बा जंगल कुछ भि नि दिखेंणु छाई, कमजोर बुढ्ड़ी घोड़ी भि कछुआ कि रफ्तार से चलणी छै! गैरी बर्फ एक एक टाप निकलण मा और मूंण जटकणां मा हि वींन अपण सरया ताकत लगाण पव्ड़णी छै।मिस्त्री थैं जल्दी छै, बेचैनि से वु अपड़ जगा उठ बैठिक घोड़ी क पीठम चाबुक मनू छा।
रो ना मत्र्योना…..वु बडबडै जरा कोशिश कैर हम जल्दि ही अस्पताल पौंछ जौंला। और फौरन तुमर इजाल ह्वै जाल….पावेल इवाचीन त्वै दवा दे द्याला या खून निकाल दयाला या बदन मा स्पिरिट कि मालिश करै द्याला,….स्पिरिट बदन दर्द खींच लींद,।पावेल इवाचीन त्वै खुण सब करला,….वु चीखिक चिल्लै कि खुटा पटकला फिर त्वै खुण सब सब करला जै से तू ठीक ह्वै जै।वु भल और सज्जन मनिख च ईश्वर वैक भल कैर। जनि हम वख पौंछला वु दौडिक आला और गाली द्याला, क्या?किलै?टैम रैंदा किलै नि आया,?क्या मि क्वी कुकर छौं जु तुमजनों क इशरा पर नचणु रौंलु?तुम सुबेर किलै नि आया भाग जा अब भोल ऐ।मि बव्ललु डाक्टर साब!हुजूर!जल्दी चल शैतान कि नौनि वैन घोड़ी म चाबुक मारि!और घरवलि जनै बिना दय्खयां बडबड़ाणु रै!
हुजूर ईश्वर साक्षी च मि पाक सलीब कि सौं खंदु मि भौत सुबेर रवाना ह्वै ग्या छा,पर मि टैम पर कनकै पौंछ सकदु छा मां मरियम न कुपित ह्वैकि ई अन्धड चलै द्या, खुद ही द्याखा क्वी बड़िया घ्वाड़ा भी इनमा टैम पर नि पौंछ सकद, और मेरी घोड़ी देख सकदौ!कन च,और पावेल इवानिच गुस्सा म चिल्लै कि बोलला, मि तुम लोगों थै जंणदु छौं तुम हमेशा क्वी न क्वी बाणा बनाण म पक्का छा!खासतौर म तुम ग्रीश्का ,तुम थैं त मि खूब जंणदु छौं, मी पता च रस्ता म पांच बार तु शराब कि दुकनि मा रूकि होलू, और मि बव्ललु:हुजूर मी क्वी संगदिल, नास्तिक छौं क्या?मी भगवान क डैर नि क्या?यख मेरी बुढ्ड़ी मोरणी च और मि शराब कि दुकनि मा जौंलु क्या!कन बात कना छा!जहन्नुम मा जा शराब खाना!तब पावेल इवानिच त्वै अस्पताल क भितर लिजांण कु बोलला!
मि ऊंका खुटों मा पोड़ जौंलु!हुजूर हम आपका एहसानमंद छां आपथैं धन्यवाद दिंदु,हम पापियों और मूर्खो थै माफ करा।हम पर सख्तै नि करा, हम ठैरा गंवार किसान!आप हमथैं मिलणकु भैर तक बर्फ म ऐ ग्यो!और पावेल इवानिच मेरि जना इन दय्खला जन कि मी ठोकण वला ह्वा!म्यांर खुटों म गिरण कि जगा तु अपणि बुढ्ड़ी पर दया कैर!त्वै त कोड़ा मन चैंद छा!कोड़ा!सच्ची हम ई लायक छां!पर हम आप पर श्रद्धा किलै नि करां आप हमरा हितैषी छा हुजूर मि सच बुनू छौ, मि अपण बात से पलटु त आप म्यांर मुखमा थूक दियां!
जन हि मेरी मत्र्योना ठीक ह्वै जालि आप जु भि हुक्म देला मि वी चीज बणै कि तैयार कैरिक दयूंल!अगर पसंद ह्वा त सिगरेट क केस बणैकि दयूंल, बड़िया लकड़ी क सिगरेट केस!या क्रोके खयलंण कु लकडी कि गेंद भी बणै दयूंल!स्किटिल खेलणा क तीलि बणै दयूंल, इन बड़िया जन विदेशी ह्वा। आपखुण सबकुछ कनकु तैयार छौं, ऐ खुण मि एक भि कोपेक नि लींयूलु!इन सिगरेट केस का मास्को मा चार सौ रूबल ऐंठ लिंदिन, मि एक कोपेक भि नि ल्यूंल ।और डाक्टर हैंसिक बव्ललु अच्छा अच्छा अब बस कैर भौत ह्वै ग्या ।
पर अफसोस कि बात च तु शराबी छै! यूं भलमानसो से बथा करण आंदि च मी, बुढ्ड़ी इन क्वी साब नि जै मि मनै ना लयूं!बस भगवान इतगा दया रखि मी रस्ता न भूलु!कन तूफान च, ठीक से दिखेंण भि नि लगयूं।
मिस्त्री लगातार बडबडांणु च अपणि घबराट दबाण कु वु बगैर सोचयां कुछ भि बुनू च!वैका दिमाग मा विचारों और सवालो क तंता लगयूं छा!सन्ताप न वै अचानक हि घेर ल्या जनकि वैमा गाज गिरि ह्वा वु हत्बुदधी ह्वै ग्या, वैक कुछ समझ नि आणु छा,अपण होश हवास म नि छा वु,सोच समझ भि नि पाणु छा, अभि तलक वैन कतगा लापरवै मा जिंदगि गुजार जनकि शराब क खुमार म रै ह्वा, वै खुशी और अफसोस कै बात कु पता हि नि छा,पर अब अचानक वैक दिल मा असहनीय पीड़ा हूण लगि!लापरवाह काहिल और शराबि अब अचानक अपथै व्यस्त, काम मा डुबीयूं मनिख हडबडी कि स्थिती म पाणु छा, जु वैकि प्रकृति क विपरीत छा!जख तक वै याद च ये संताप न वै ब्यालि बयखुन दा ऐकि घेरयाल छा,आदत क मुताबिक नशा मा चूर जब वु ब्यखुन दा घौर ऐ और आदत क गाली और मुक्का चलांण लगि, वैकि बुढ्ड़ी न वै जना इन देखि जन कभि नि देखि, वींक आंखियू मा आमतौर पर जु भाव रैंद छा वु छा शहीद हूणक,भीरूता क, इन कुकर कु जु रोज पिटेंद और खाणु भि कम मिलदु ह्वा, पर अब वींक आंखा स्थिर और कठोर छा जन कि मूर्ती कि हुंदिन!या मरणासन्न लोगों कि हुंदिन!वूं विलक्षण, वेदनाप्रद आँखों न हि सन्ताप क बीज बोई। किंकर्तव्यविमूढ़ मिस्त्री पड़ोसी क घ्वाड़ा उधार मांगिक ल्या!अब ईं आशा म अस्पताल लिजांणु छा कि पावेल इवानिच अपण दवै से वृद्धा थै ठीक कैर द्याल!
सुण मत्र्योना ! वु ब्वलद, याद रख कि पावेल त्वै से पूछल क्या मि त्वै मरदु छौं त बोल दे कि ना हुजूर!और मि अब त्वै कभि नि पिटलु!पाक सलीब कि सौं अब कभि नि हथ उठौंलु तु त जंणदि छै मि त्वै कभि भि मरण नि चांदु मि त इन्नी हि बिना गुस्सा क मरदु छा त्वै, मी त त्वै पर तरस आंदु छाई, क्वी हौर हूंद त अस्पताल भि नि लिजांद मि लिजांणु छौं!जु भी कर सकदु कनु छौं!और इन तूफान मा!तेरी दया च भगवान बस रस्ता नि भूलु!
मत्र्योना!अब तेरि बगल क दर्द कन च?
वै अजीब लग कि बुढ्ड़ी क मुखकि बर्फ पिघलणीं नि छै!अजीब बात छै कि वींक मुख भि लम्बू सि लगणु छा!और मटमैलु भूरा रंग जन लगण लगि और कठोर भि!
मिस्त्री न भन्नै कि पूछि-ऐ पागल बुढ्ड़ी!मि त्वै ईमानदारी से ईश्वर थैं साक्षी मानिक पूछदु और तू…..पागल बुढ्ड़ी मि त्वै पावेल इवानिच क पास नि लि जौंल बस!
मिस्त्री न लगाम ठीलि छोड़ द्या, और सोचण लगि बुढ्ड़ी कि जनै देखणा कि वैकि हिम्मत नि हूणी छै!वु डरणु छा। बिना जवाब पयां सवाल कनमा वै डैर लगणी छै!और दुविधा दूर कनकु वैन वींक हथ टटोलि जब हथ छोड़ि त वु पत्थर जन गिर ग्या!
हाय हाय मोर ग्या!
और मिस्त्री रूण लगि!वैकि भावना दुख: नि खीज कि छै!वु स्वचण लगि, दुनिया म कतगा तेजी से घटनाक्रम चलद!वैक संताप शुरू भि नि ह्वै छा कि सब खत्म ह्वै ग्या!
अपणि बुढ्ड़ी दगड़ रैणु वींसे मन कि बात करणि, वींसे स्नेह करण, वींक सेवा करण अभि ठीक से भि नि शुरू ह्वै छा कि वा मोर ग्या…..वु वीं दगड़ चालीस साल से रैणु छा, पर ई चालीस जन एक कुऐड़ा म बीत गै, शराब पीण, लडै झगडा ,जरूरतों मा जिंदगी इनि गुजर गै, और बुढ्ड़ी ठीक तब गुजर ग्या जब वै आभास ह्वाई कि वु वींसे प्रेम करदु छा!कि वु वींका बिना नि रै सकदु, वैन कतगा कतगा जुल्म करिन!वै याद ऐ वा भीख मंगण जांद छै मि वीं रवट्टि खुण भीख मंगण कु भेजदु छा, ओफ ओफ!अभि वा दस साल और जी सकदि छै।
बिचरि और अब वा सोचदि ह्वैलि मि इन्नी छौं!ओह मि कख जाणु छौं?अब डाक्टर ना कब्र कि जरूरत च!अरे मुड़ जा वापस मुड़!
ग्रिगोरी न लगाम खींचकि घोड़ी क मुख पिछने फेर द्या!और सरया ताकत लगैकि चाबुक मारि। हर घंटा सड़क और भि खराब हूणी छै, अब वै घोड़ी क जुआ भि नि दिखेंणु छा, बीच बीच म गाड़ी चीड़ का पौधा कुचलिक जाणी छै, कभि क्वी कालि चीज वैक हथ खरोंच जांणी छै, और वै चक्कर मरदि सफेदी क अलाव कुछ नि दिखेंणु छा,
मिस्त्री सोचणु छा काश जिन्दगी जीणकु फिर से मौका मिलदु……,,
वै याद ऐ चालीस साल पैलि मत्र्योना जवान सुन्दर और खुश रैंणवली नौनि छै!वा एक समृद्ध परिवार से छै वींक ब्यो ग्रिगोरी कि कुशलता क कारण ह्वै छै!सुखी जीवन खुण जु भि चयेंद सब वूंका पास छा,पर ब्यो हूंदा हि वै हि क्षण वु शराब मा चूर वु अलाव घर कि पट्टी म धम से ऐकि से ग्या और तब से वु कभि भि जनकि जागु ही नि ह्वा!आज तक भि होश म नि ऐ!वै ब्यो कि याद त छै पर ब्यो क बाद क्या ह्वाई वै याद नि ऐ बस शराब पीण सींणु और मारपीट कनमा चालीस साल गुजर गैन!
उड़दि बर्फ और सफेद बादल अब धूमिल ह्वै गैन!संध्या ह्वै ग्या!
अचानक वैन अफतै पूछि मि कख जाणु छौं?मि वींथै दफनै दयूं, और मि लगातार अस्पताल क जनै हंकणु छौं, मि पागल ह्वै ग्यूं!
वैन फिर घोड़ी मुख फेरि और चाबुक मार, अपणि शक्ति लगैकि घोड़ी फुंफकरै,और भगण लगि!मिस्त्री बराबर चाबुक मनू छा!वै अपण पिछने खट खट कि अवाज सुनेणी छै वु समझ ग्या लाश क मुंड गाड़ी से टकराणु ह्वाल!अंध्यर बणन लगि हवा और भि ठंडी ह्वै ग्या!
“जिंदगी दुबरा शुरू कनकु मिल”मिस्त्री सोचणु छा मि अपखुण नै औजार खरीद लयूंलु और लोगों से औजार लेकि समान बणाण लग जौं और रूप्या बुढ्ड़ी थै दीण लगि जौ हां!
वैसे लगाम छुटि ग्या झुकिक उठाण चांद पर बेकार वैका हथ काम नि कना छा….
क्वी बात नि वैन सोचि घोड़ी थै रस्ता पता च वा अफ्वी चल जैलि अगर मि अभि एक झपकि ले पांदु….त दुआ क बखत गिरजाघर म जाण से पैल अराम कैर सकदु….
मिस्त्री न आंखा बंद कैर दिन और झपकि लीण लगि। थोड़ा देर मा घोड़ी रक ग्या आंखा खोलिक वैन द्याख गैरा रंग कि झोंपडा या चारा क बड़ ढेर क समणि छा…..
वु समझणु छा कि वेथैं स्लेज से उतरिक द्यखण चैंद!कि वु कख च,पर वैका शरीर मा इन थकान और आलस्य भ्वरींयू छा कि वु जडु से बचणा खुण भि हिलडुल नि सकदु छा….और वु अराम से से ग्या।
वु एक बड़ कमरा म जगि जैकि दिवार सफेदी से पुतीं छै, खिडकी बटिक चमकदार धूप आणी छै मिस्त्री न देखि कमरा मा लोग मौजूद छा वैक दिमाग म ऐ कि मी विज्ञ और समझदार लगण चैंद।
वैन बोलि-पादरी थैं बतांण ह्वाल बुढ्ड़ी खुण दुआ मंगण चैंद।
कै अवाज न वै टोकि ठीक च ठीक च तुम जरा चुपचाप लेटयां रा!अचानक डाक्टर कि झलक पैकि वु चिल्लै अरे ई त पावेल इवानिच छन, हुजूर माई बाप आप हमरा हितैषी छां!वैन बिस्तरा से कुदणा कि कोशिश करि डाक्टर क खुटों मा नतमस्तक हूंणकु पर वै लगि वैका हथ खुटा वैका बस मा नि छन!म्यांर हथ कख गैन, म्यांर खुटा भि कख छन?
अपण हथ खुटों थैं अलविदा बोल द्याव….तिन वूं सर्दी म जमण द्या, हूं हूं बस कैर रूणु किलै छै?ईश्वर क धन्यवाद बोल कि त्वै पूरी जिंदगी मिल!मि सभझदु छौं तेरी उम्र साठ त ह्वैलि तिन अपण जमनु देख याल!
हाय हाय मन मा ई बिथा लेकि कन मोरूं?मी माफ कैरा!अगर मि पांच छै बरस और जी पांदु….
केखुण पर?
या घोड़ी मेरी नी, वापस कनि च मी अपणि बुढ्ड़ी दफन कनि च…..आह,दुनिया मा हर बात कतगा तेजी से हूंद, हूजूर पावेल इवानिच!मि सबसे बड़िया लकड़ी क सिगरेट केस!और क्रोको गिंदु बणैक दयूंल….
डाक्टर हथ हिलैकि भैर चल ग्या-मिस्त्री क सब कुछ खत्म ह्वै गै।
रचनाकाल,1885