बनि बनि रोग चिकित्सा मूल
खंड – १ सूत्रस्थानम , 28 th अठाईसवाँ अध्याय ( विविधशित पीतीय अध्याय ) पद २४ बिटेन २९ तक
अनुवाद भाग – २५५
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
रसजन्य सबि विकारों चिकित्सा उपलब्ध च अर रक्तजन्य चिकित्सा अध्याय म बुले जाल।
मांस जन्य रोगुं चिकित्सा शस्त्र , क्षार व क्षमि कर्मुं से हूंद।
मेदजन्य रोग चिकित्सा ‘अष्टौनिन्दित अध्याय म बुले गे।
अस्थियों माश्रित रोगुं चिकित्सा पंचकर्म व तिक्त बस्तुओं व दूध =घी आदि से सिद्ध बस्तियों चिकित्सा च।
मज्जा व शुक्र जन्य रोगुं चिकित्सा स्नायु , तिक्त , अम्ल , स्त्री , व्यायाम , व समयानुसार वमन से हूंद।
इन्द्रिय जन्य रोग चिकित्सा ‘त्रिमर्मीय’ अध्याय म बुले जाल।
स्नायु रोग चिकित्सा ‘वातरोगधिकार’ म बुले जाल।
मल जन्य रोग चिकित्सा ‘ न वेगान्धारणीय ‘ अध्याय म बुले गे अर कखि कखि ऑवर समय बि बुले जाल। २४-२९।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ — ३८२
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