संगीत संध्या (रूसी कहानी)
कथा:आंतोन चेखव
अनुवाद- सरोज शर्मा
हम नदि क किनरा बण्या बग्यचा म ऐकि बैठ ग्यों। हमर समणि चिफलु माट क ढलान छा। हमर पीठ क पिछनै डालों क बड़ झुण्ड छाई, थ्वड़ी देर हम पुटगा क बल कुंगलि हैर घासम पोड़ ग्यों और हथों क तक्या बणै कि अपण अपण मुंड क ताल धैर दिनि, घुटना से ताल खुटों थैं उब उठैकि वूंथैं हिलांण डुलाण कु खुल छोड़ द्वया!कोट उतारिक अपण बगल मा हैर घास म डाल दिनि!चांद निकल गै छै डालों क झुण्ड म और दूर तलक दिखै दीण वल मैदान मा असमान बटिक छिटकीं चांदनि बिखरीं छै ,और दूर कखि लाल रंग क अलाव जलणु छाई, हवा मंद गति से बगणीं छै,और हवा मा सुंदर (भीनि-भीनि) सुगंध आणि छै जु हमथैं मदहोश कनी छै सरया वातावरण इन्नी छा जन कै संगीत संध्या मा हूंद। ऐ संध्या का आयोजक भरत पक्षी खुण या बात संतोषजनक छै! अब हमथैं संगीत संध्या शुरू हूणकु इंतजार छा,हम बेचैनि से प्रतीक्षा कना छा!संगीत-संध्या क शुरू हूणक टैम कब बीति ग्या, हमरि बेचैनि बड़णी छै!
मुख्य कार्य क्रम शुरू हूण से पैल टैम बिताण कु कुछ दुसरा कलाकार अपण अपण आइटम पेश कना छा, और हमर ध्यान वख लगयूं छा!
आखिर संगीत संध्या शुरू ह्वै सबसे पैल कोयल अपण गीत गाणकु ऐ। दुसर बगिचा मा कखि वैकि कूक सुणै दीणि छै, वा धीरे धीरे कूकणि छै!और दस बार कूकिक वा चुप ह्वै गै।तभि द्वी बाज मुंड क माथ उड़ण लगिन और कर्कश अवाज मा चिखण लगिन!एका बाद एक पीलक पक्षी न ऐकि अपणि गुरू गंभीर अवाज म चहकणु शुरू कैर द्या!ऐकु गीत हमथैं भौत पसंद ऐ और ध्यान लगैकि सुणि हमन!हमथै मजा आणु छाई!तभि अपण घोंसलो क तरफ आणवला कौवों कि काॅव काॅव कु कर्ण कठोर संगीत हमर कन्दूडों मा गुंजण लगि !ई कौवा काला बादल जन डालों क झुण्ड क ऐंच छै गैन!ई काला बादल जन देर तक गर्जणा रैं।
कौवों कि कां कां सुणिक नदि किनर उगयां सरकंडों क बीच बिना किरया क मुफ्त घरौं म रैंण वला मिंढका टर्राण लगिन!और अधा घंटा तक एक दगड़ समूहगान पेश कना रैं!जल्दी हि वूंक गायन धीरे ह्वै ग्या और हम मस्ती से चुपचाप ऐ सुगम संगीत क मजा लीणा रौं! तबि यूंन अपण समूहगान बन्द कैर द्या, और वैकि जगा चिलबिल पक्षी न लि याल!चिलबिल अपण बुलंद अवाज म कड़कडाण लगि और वातावरण म रोमांच सि भ्वरे ग्या!नदी किनर सरकंडों क झुण्ड मा रैण वल कुखड़ा भि कुड़कुड़ाण लगीं!अचानक बथौं तेज चलण लगि और सरकंडा आपस म टकराण क कारण एक सुंदर अवाज आण लगि!और संगीत संध्या म जन एक नै साज (तार म बजांण वल यंत्र)बजण लगि!ऐका बाद संगीत संध्या क मध्याह्नतर ह्वैगि!
चरया तरफ शांति छै ग्या!बस कभि कभि श्रोताओ क नजदीक घास मा छुपयां झिंगर झीं झीं करदा छा!जनकि श्रोताओ थैं बंधया रखण कु मध्यांतर म बजद!ई मध्यांतर भौत लम्बू खिंचै ग्या!तब तक रात पूरि तरा उतरि ऐ और चाँद हमर मुंड क ऐंच मंडराण लगि!वु बग्यचा क ठीक उबैं ऐ ग्या अब वैकि बारि छै!चाँद महोगनी क डालक चौड़ी चौड़ी पत्तियों क पिछनै जैकि छुप ग्या!तबि एक कृष्ण-कस्तूरी पक्षी नदी क किनर कि झाड़ियो से उडान भोरिक चुपचाप नदि मा उतर गे!और बगैर हिलयां डुलयां पूंछ उठैकि खड़ ह्वै ग्या!वैन सलेटि रंग कि मिरजै पैरीं छै और श्रोताओं क जनै बिना ध्यान दियां वु बगुला भगत बणि क अपणा हि ख्यालों मा मस्त छा!जनकि क्वी छैल छबीलू चखुल अपणि चखुलि थैं लुभाण वास्ते शानदार सूट पैरिक सभा मा ऐ ह्वा!
म्यांर मन ह्वै कि वैसे ब्वलुं-ऐ नौजवान, द्यखणु छौं तेरि आन बान, क्या ठाठ छन और क्या शान च!पर याद रख तु ऐ संध्या क मेजबान छै और हम श्रोता तुमरा मेहमान!खैर तीन मिनट वु चुपचाप खड़ रै, तबि हल्की हवा चलण लगि और डालों कि फुनगि हिलण लगीं, झींगुर भि जोर जोर से झीं झीं करण लगीं!
बस तबि जोर जोर से बैंड बजण लगि और अनेक वाद्य यंत्र झनझनाण लगिन!कृष्ण-पक्षी भरभरांदि ऊंची अवाज म अलाप लीण लगि मि वैक गायन क अद्भुत प्रभाव शब्दों म नि बखान कैर सकदु, बस इतगा हि बोल सकदु कि वैकि अवाज न लोगों थैं इतगा पुलकित कैर द्या कि बैंड भि सिहरिक खामोश ह्वै ग्या!अब कलाकार अपण रंग मा ऐ ग्या और अपण मुंड उठैकि अपण पूरी चोंच खोलिक अपण राग सुनाण लगि!वैकि गैरि अवाज न श्रोताओ थैं बांध ल्या और वु वैक गीत क मधुरता मा मग्न ह्वै गिन!वन मि कृष्ण कस्तूरी कि श्रेष्ठ गायन क वर्णन कैरिक कल्पनाशील कवियों क पुटगा म लात नि मरण चांदु!
ई वूंक काम च कि वु सुंदर शब्दों मा लिखा कि वैक गाणा सुनण से पूरी धरती म कन खामोशी छै ग्या!यख तक कि प्रकृति भि मूक ह्वै गे!बस एक दा कुछ डालों न नाराजगी जाहिर कै!वु सरसराण लगिन!जब बथौं चलण बंद ह्वै ग्या त वू भि चुप ह्वै गिन!और ध्यान से कृष्ण कस्तूरी क गायन सुनण लगिन, देर तक वु गाणू रै, जब वु चुप नि ह्वै त उल्लू न अपणि टिर्र टिर्र शुरू कैर द्या, वैकि टर्रहाट सुणिक कृष्ण कस्तूरी चुप ह्वै ग्या।
आकाश म अब सुबेर कि सफेदि झलकण लगि। गैणों न असमान क चदर मा अपण मुखः छुपाण शुरू कैर द्या, रात म गाण वल गायक चखुलों क संगीत संध्या क अन्त समय नजदीक ऐ गै!वूंक स्वर निरंतर मन्द हूंद गैं!
डालों क पिछनै से जमींदार क बावर्ची दिखै! बैं हथम अपणि ट्वपलि पकड़िक वु चुपचाप धीमि चाल से चलणु छा वैका दैं हथम एक टव्करि छै थ्वड़ा देर डालों क बीच वु दिखेंणु रै फिर वु डालों क झुण्ड क पिछनै गैब ह्वै ग्या!वातावरण म फिर मौन ह्वै ग्या और हम श्रोता भि चलणा कि तैयारि करण लगयां!
तबि हमन अवाज सूणि, द्याखा ई बेहया फिर ऐ गै, ऐ क साथ हि हमन फिर वु बावर्ची देखि। जमींदार कु बावर्ची हमर जनै हि आणु छा, वैन अपण दैं हथ उठै हमन देखि कि वैन भरत पक्षी कि गर्दन पकड़ और भरत पक्षी जन कलाकार वैक पंजा म फडफडाणु छा,बिचरू गायक!ईश्वर ही बचाव यूं चिडीबाजों से!
अरे भाई ई चखुल किलै पकड़ तिन ?
जी मिन पलण च यी अपण पिंजरा मा रखलु ऐ!
सुबेर क स्वागत करद एक अन्न पुट पक्षी खुदैंणि अवाज म रूणु छा!वु बग्यचा भि शोक न चिखणु छाय, जखसे वु बावर्ची वै चखुला क अपहरण कैरिक लेगि!वै बावर्ची न वै चखुल थैं टोकरा मा धैरिक टोकरि क ढकणां बंद कैर द्या और गौं जने बढ़ ग्या, हम भि अपण अपण रस्ता चल ग्यों।
रचना काल 1883