चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 28 th अठाईसवाँ अध्याय ( विविधशित पीतीय अध्याय ) पद ४
अनुवाद भाग – २५१
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ लिख्वार भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
–
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
–
ये आहारन तीन वस्तु बणदन – प्रसाद रूपी रस ,किट्टं या आहार भाग अर मल। यामादे किट्ट भागन पसीना , मूत , मल , वायु , पित्त , कफ अर कन्दूड़ , आँख , दुःख , आज , कूप , प्रजनन का उपमान हूंद। अर दाड़ी , बाळ , रोम , मूछ , नंग आदि तै पुष्ट कारी हूंद।
आहारक रस रुपए प्रसादन रस , रक्त मांस , मेद , अस्थि , मज्जा , शुक्र , ओज तथा पृथ्वी – तेज , २ वायु , आकाश पंचभूत त इन्द्रिय निर्मित करदन। अत्यंत शुद्ध रूप म वायु , शरीर तै बंधण वळ स्नायु , शिरा अदि संधियां , आर्तव व दूध निम्रं करदन। यी सब मल नामक धातु या प्रसाद रूप धातु , रस अर मल द्वारा पुष्ट हूंदा आयु अनुसार परिणाम से निर्मित हूंदन। ये अनुसार शरीर क आपण स्वरुप स्थिर हूण पर धातु साम्यवस्था म रौंदन। प्रसाद रूप धातुओं क क्षय व वृद्धि जु निमित्त लेकि हूंदी वो आहार क कारण ही हूंद। इलै आहार द्वारा क्षय व वृद्धि का समय उतपन ह्वेका आरोग्यता उतपन्न हूंद।
इनि किट व मल बि आरोग्य सम्पादन म सहायक हूंदन। अपण परिमाण से बिंडी वड़ यां किट अर मल बि भैर निकाळि शीत से उतपन्न मल तै उष्ण , उष्ण से उतपन्न हुयुं मल तै शीतपरिचर्या से मल शरीर क धातुओं तै समान्यवस्था म रखद। मल का धातुओं सोत्र गमन करण का मार्ग छन अर सत्र जु जै जैक छन वो धातुओं तै पूर्ण करदन । ये प्रकार से पूरो शरीर खायुं , पियुं , चाट्यूं , दन्तं काटयूं , आहार रुपया रस से भरपूर हूंद. रोग बि ये शरीर म खाइक , पैक , चाटिक , कातिक ही हूंद। यूं मदे हितकारी धातुओं सेवन हितकारी व अहितकारी धातु सेवन अहितकारी हूंदन। ४।
–
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३७५ -३७६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022