काबिलियत ( रूसी कहानि)
कथा: आंतोन चेखव
अनुवाद- जनप्रिय लेखिका सरोज शर्मा
चित्रकार येगोर साव्विच अपण गर्मियो कि छुट्टी म सेना क एक छ्वट सि अफसर कि विधवा क फार्म हाउस मा बिताणु छा,
सुबेर क टैम छा। येगोर साव्विच अनमनु और उदास सि अपण बिस्तर मा बैठयूं छा।
यूं दिनों मौसम बदलणू छाई पतझड़ शुरू ह्वै ग्या, असमान मा घैणा बादलों कि परत जमीं छै। ठण्डी और तीखु बथौं चलण शुरू ह्वै ग्या छा, डाला भि दुख मा एक जनै झुकिक पत्ता गिराण लगिन। बथौं न पत्ता इने उनै उड़ण लगीं गर्मी क मौसम विदा ह्वै गै।
जब प्रकृति उदास हूंद वीं उदासी म कै चित्रकार कि नजर पव्ड़द त वै उदासी म भि खास किस्म कि सुन्दरता हूंद। प्रकृति क ई विषेश सौंदर्य हर क्वी महसूस नि कैर सकद, पर येगोर साव्विच प्रकृति क आनंद नि लीणु छाई, वु गैरि उदासीनता म डुबयूं छा,पर वै ई सोचिक सन्तोष छा कि भोल वै दाचे मा नि रूकण ह्वाल। दाचे क सरया फर्नीचर पर और भययां भि तकिया, कम्बल, चदरा, और टोकरा बिखरयां छा, फर्श इतगा गन्दु छा कि साफ पता चलणु छा कि दाचे मा भौत दिन से सफै नि ह्वै। दाचे कि मोरयों का पर्दा भि उतर गिन, भोल वु वापस शहर लौटणु छा।
दाचे कि खड़ूस मालकिण, सेना क अफसर कि विधवा घौर मा नि छै।वा भोल खुण शहर लौटण कु घ्वाड़ा गाड़ी किरया पर तै कनकु जयीं छै। वींक अनुपस्थित क फैदा उठैकि वींकि बीस साल कि नौनि भौत देर से वै जवान चित्रकार क कमरा मा बैठीं छै।भोल त वैल चल जांण और कात्या थैं वेसे भौत बथा कनि छै। वा लगातार कुछ ना कुछ ब्वनि छै, पर वीं लगणु छाई कि अभि तलक जु वा ब्वलण चाणी च वैकु वा दसवं हिस्सा भि नि बोल पै। ई सोचिक कात्या कि आंखियूं मा पाणि ऐ गै, अपणि आंसू भ्वरीं आंखियूंल वा भौत दुख:और खुशी क साथ वा चित्रकार क झबरीला मुंड थैं द्यखणी छै। येगोर का लटुला इतगा घैणा ह्वै ग्या छा कि वु क्वी झबरैलु जंगली जानवर दिखेंणु छा। वैक मुंड का लटुल कंधो तक लहराणा छाया और दाढ़ी इतगा बढ़ गे छै इन लगणु छा जनकि वैकि गर्दन, नथुनो और कन्दूड मा लटुला ही उगयां ह्वाला। भौं का लटुल भि इन्नी लटकयां छा वैका आंखा भि नि दिखेणा छाया।ई सब्या इन उलझयां छा कि क्वी मक्खी या कीड़ू वूंमा फंस जांदु त निकलण मुश्किल छा। येगोर सव्विच बार बार जमांणु छा और कात्या कि बथा सुनणु छाई। वु भौत थकयूं छाई। कात्या कि रिरियाट सुणिक वु ऊबि गै,वैन कात्या पर सख्त नजर डालिक गैरि अवाज मा बोलि, मि त्वै से ब्यो नि कैर सकदु,
कत्या न पूछ किलै?
किलैकि एक चित्रकार थैं आजाद रैंण चैंद, दरअसल हर वु आदिम जु कला थैं समर्पित च वै ब्यो नि करण चैंद। त्वै से ब्यो करण कु त सवाल ही नि।
मगर, येगोर सव्विच मि रोड़ा कन बणलु?
मि सिर्फ अपणि बात नि बुनू मि त आम बात बुनू छौं मशहूर लेखको और पेण्टरो न ब्यो नि करि ….।
मि समझदु छौं तुम प्रसिद्ध हूण चंदौ मि यी बात पता च।पर जरा तुम मेरि जगा अपथैं रखिक द्याखा मि ब्वै कि नाराजगि से डरदु छौं। वा भौत चिड़चिड़ि और सख्त च जब वीं पता चललु कि तुम मी से ब्यो नि करण चंदौ वा असमान मुंड मा उठै लेलि, और मेरि जान मुसीबत म पड़ जालि ।ओह कतगा दुखि छौं मि और तुमन अभि अपण कमरा क किराया भि नि दे।
जहन्नुम मा जा ई किराया घबरा न मि दे दयूंल!येगोर अचानक उठि गै और इनै उनै रिटंण लगि ।
मी कखि दुसर देश मा जाकि रैंण चैंद येगोर सव्विच न बोलि और बताण लगि कि विदेश जाण कतगा असान च। क्वी खास मेहनत नि कन प्वड़लि बस एक पेंटिंग बणैकि ब्यचण होलि।
बेशक कात्या न बोलि गर्मियों मा तुमन ई काम किलै नि कैर सरया गर्मी इन्नी बितै दीं।
तु क्या समझणी यीं सराय मा मि काम कैर सकदु येगोर सव्विच गुस्सा ह्वैकि बोलि और यख क्वी माडल भि कख मिलद?
तबि निचल मंजिल म दरवजा पिटणा कि अवाज ऐ, कात्या अपणि ब्वै क इंतजार कनी छै उछलिक ताल भगि येगोर साव्विच यखुलि रै ग्या।
भौत देर तक वु तितर-बितर समान थैं द्यखणु रै और रस्ता बणैकि इनै उनै डबकणु रै।
ताल विधवा मकान मालकिण घ्वाड़ा गाड़ी वलों पर चिल्लाणी छै जौन शहर जांणकु किरया द्वी रूबल मंगिन।येगोर क मूड उखड़ गै, वु देर तलक अलमारि क समण खड़ रै और वैमा रखीं वोदका कि बोतल गिलासों थैं तकणु रै।
त्यार सत्यानाश ह्वा!विधवा कात्या थैं कोसद त्वै मौत भि नि आंदि!
चित्रकार न एक गिलास मा वोदका डाल और धीरे धीरे गटक ग्ये। वैका दिल का काला बादल गैब ह्वै गिन वु झूमण लगि सपन द्यखण लगि, कल्पना करण लगि कि वु मशहूर ह्वै ग्या, हालंकि वै इन पता नि लगणु छा कि वु कौं पेंटिंग कि वजा से मशहूर ह्वै वु साफ साफ द्यखणु छाई कन अखबार मा वैक लगातार नौ आणु वैकि तस्वीरों कि तारीफ हूंणी, वैका चित्र हथों हथ बिकणा छन, दगडयों न वै घेरयाल ,वैकि कल्पना क पांखा फैलण लगिन। वु द्यखणु छा कि वु एक भव्य मकान म बड़ सी बैठक मा बैठयूं च।और चर्या तरफ से प्रशंसक कज्यणियों से घिरीयूं च पर ई दृश्य भौत धुंधलु छाई। किलैकि वैन कबि कै शानदार और सजीं बैठक नि देखि छै ।प्रशंसक कज्याणियों कि भि वु कल्पना ठीक से नि कन पाणु छाई किलैकि वै थैं कात्या क अलावा क्वी प्रशंसक नि मिलि छै।आमतौर मा जौं लोगु थैं जीवन क अनुभव कम हूंद वु कितबों क आधार पर जीवन द्यखदिन ।किताबो मा जन जीवन कि छवि रचयै जांद वु वन्नी द्यखदिन। पर येगोर साव्विच थैं किताब पढ़ण क शौक भि नि छा ,एकदा वैन गोगल क उपन्यास पढ़ण कि कोशिश कैर छै पर दुसर पन्ना मा हि वैका आंखा मुंदैण लगिन। और वु से ग्या।
ना ई नि जललु, ये फेंक द्याव!ताल बटिक विधवा मालकिण कि अवाज ऐ वा समोवार क ताल लगीं काॅगडी (छवटि अंग्यठि)जलांण कि कोशिश कनी छै, कात्या जा थ्वड़ा कच्चा क्वीला लेकि आ।सुपिन द्यखद द्यखद चित्रकार क मन मा इच्छा पैदा ह्वाई कि वु भि कै दगड़ अपणि यीं उम्मीदों और सुपिनो थैं साझा कैर ल्या। वु ताल गै रसवड़ा म वै जगा पौंछ गे जख कात्या अपणि ब्वै दगड़ कांगडी जलाणा कि कोशिश कनी छै। वु वखि कुर्सी डालिक बैठ गे ब्वलण लगि-चित्रकार हूण भौत अच्छि बात च। कलाकार एक अजाद पंछि हूंद जब मन ह्वा जख मन ह्वा जै सकद।जु मन ह्वा कैर सकद, वै न रोज रोज दफ्तर जाण पव्ड़द और न हि किसानो जन पुंगडा म मेहनत कन पव्ड़द। न म्यांर क्वी अफसर न मालिक और न क्वी रोक टोक…मि खुद अपण अफसर छौं अपण मन क मालिक….और अपण काम से मि लोगों क भलु ही करदु।
आमतौर मा वु खाण खाणक बाद अपण बिस्तरा म घुस जांद छा और रूमक दा तक सियूं रैंद छाई। पर आज वु अभि उनिंदु ही छाई इन लगणु जन क्वी वैका टंगड़ा पकड़िक खिंचणु ह्वा और जोर जोर से हैंसिक वैकु नौ पुकारिक वै जगाणु ह्वा। घबरै कि वु उठि बैठ। वैन देखि वैकु मित्र उक्लेयकिन वै मिलण कु अंयू छा। उक्लेयकिन भि चित्रकार छाय, अक्सर प्राकृतिक दृश्यों क चित्र बणाद छा,हर साल वु गर्मी शुरू हूण पर कास्त्रमा प्रान्त गर्मी बिताण कु जांद छा ।
अरे वाह द्याखा त कु ऐ?
द्वियो न हथ मिलै और हालचाल पुछिन। कुछ बणै ऐ बीच?कम से कम सौ स्कैच त जरूर बणै ह्वला? येगोर साव्विच न उक्लेयकिन थैं सूटकेस से समान निकलदा देखिक पूछ।
हुं हां थोड़ा-बहुत त काम कैर च, तु सुणा तिन क्या कैर?कन चलणु त्यार काम? क्वी नै चीज बणाणु छै?
येगोर साव्विच अपण पलंग क ताल बटिक धूल और जालों न भ्वरीं फ्रेम जणीं पेंटिंग भैर खिंचद। देख ई तस्वीर बणै।
अपण प्रेमी से बिछणन क बाद एक नौनि खिड़की मा उदास खड़ि च, तीन बैठकों म ई पेंटिंग बणै अभि पूरी नि ह्वै थ्वड़ा काम बाकि च।
यीं तस्वीर मा कात्या कि धुंधल सि रूपरेखा दिखेणी छै। खिड़की क वै पार दूर गहरू नीलु असमान झलकणु छा जैमा कुछ गुलाबी और कुछ बैंगणी सि उज्यल फैलयूं छाई। उक्लेयकिन थैं या पेंटिंग पसंद नि ऐ। वैन बोलि ऐमा त उदासी झलकणी च, वातावरण भि उदास च ….भाव भि….और दूरी भी बिछड़ जाण कि भावना भि च….पर खिड़की से झंकण वलि झाड़ियो न सब बर्बाद कैर द्या…झाड़ी मा हि नजर टिके जांद….जनकि या झाड़ी हि खास ह्वा। ऐका बाद वोदका कि बोतल खुल जांद और द्विया पींण पिलाण लगिन।
रूमक दा एक होनहार चित्रकार कस्तिलयोफ येगोर साव्विच से मिलण कु आंद। वैकि उम्र क्वी पैंतीस साल कि रै ह्वैलि वैन अभि चित्रकारी म हथ अजमाण शुरू करि।कस्तिलयोफ येगोर क मित्र च वैन बगल वल दाचे मा हि डेरा डलयूं च।वैन लम्बा लम्बा लटुला रखयां छन। और लम्बा कालर वली कमीज पैरद।जनकि कवि शेक्सपियर पैरदु छा।वैक आचार-व्यवहार भि बड़प्पन से भ्वरयूं छा,वोदका देखिक वैन नाक भौं सिकोड़िक ब्वलण लगि कि वैकि छाती म दर्द हूंणू।
पर जब दगडियों न बार बार बोलि त वैन भि एक जाम चढ़ै द्या।नशा चढण क बाद वैन ब्वलण शुरू कै-मि एक नै तस्वीर बणाण चांदु एकदम नै तरा क काम ह्वाल…वैमा खलनायक नीरो.. या हेरोद जना बदमाश या क्लेपेण्टियन जना शैतान दिखौंल और वैका समण ईसाइयत थैं खड़ करूलु। एक जनै रोम ह्वाल दुसर जनै ईसाइयत….यीं तस्वीर मा मि भावना और मन थैं उभरण चांदु समझ ग्यो?आत्मा कि झलक दिखांण चंदु।
ताल बटिक विधवा कि चिल्लाण कि अवाज आणी छै
कात्या अरि कुत्ती ल्या खीरा मी पकड़ा!सीदरफ क यख जा जरा कांजी मांगिक ल्या। जल्दी जा कलचुंडी बेहया।
तिन्या मित्र कै पिंजरा मा बंद भेड़िया जन कमरा म चक्कर लगाणा छा।बिना रूकयां बहस कना छा तिन्या कभि उत्तेजित कभि भावुक हूणा छाया।वूंक बथा बताणी छै जनकि वूंक भविष्य वूंका हथ मा हि च वु भौत पैसा कमाला मशहूर ह्वाला। तिनयों थैं एहसास नि छा कि समय तेजी से भगणूं च और मुठ्ठी से फिसलणु च और मौत क दिन करीब आणा छन। वून अपण सरया जीवन दुसरों क बलबूता म बितै दूसरों क भरस्व ज्यादा उम्र बीत जाण पर भि वून कुछ नि कै वु दुसरों कि कमै पर हि जीणा छन दुसरा कि दियीं रवटि खाणा छा।
ई जीवन भौत निठुर च, सैकड़ो चित्रकार मा केवल द्वी तीन ही सफल हुंदिन। बाकीयूं थैं थोड़ा-भौत महत्व त मिलद च पर वूभि समय नौकि बंदूक से छुटीं गोली का निशाणा बण जंदिन….यूं बता से अनभिज्ञ तिन्या भौत खुश छाया।और खुश ह्वैकि भविष्य का सुपिन बुनणा छा। रात एक बजि कस्तिलयोफ न विदा मांगि और शेक्सपियर जन कमीज म हथ फिरांद अपण घौर चल ग्या ।प्राकृतिक दृश्यो क चितेरू उक्लेयकिन येगोर साव्विच क दगड हि रात बिताण वल छा इलै वु वख्खी ठैर ग्या।
बिस्तरा मा जाण से पैल येगोर साव्विच न मोमबत्ती जलै पाणी पीणकु रसवड़ मा गै वख संकरू सि गलियारा मा कात्या एक सूटकेस लेकि बैठीं छै और अपणि गोदि मा हथ धैरिक माथ देखणी छै, अंध्यर म इन लगणु छा जनकि वींका आंखा चमकणा ह्वा वींका थकयां मुखम खुशी भ्वरीं छै।
तुछै!क्या सोचणी छै?येगोर न पूछि ।
मि सोचणु कि तुम एक मशहूर चित्रकार बण जैला खुशफुसै क ब्वलण लगि मि कल्पना कनू एक दिन तुम भौत मशहूर हवैला. ….मिन आज तुम तिन्यों कि बात सुणि,अब मि सुपिन द्यखणु छौं कतगा सुन्दर सुपिन च ,…।
कात्या खुश ह्वैकि जोर जोर से हंसण लगि….फिर रूण लगि बड़ विस्वास से येगोर क कंधो म हथ धैर दिन, जैकि बथा मा वीं पूरू भरव्स छा
रचना काल–1889