हितकारी पदार्थों से लाभ
खंड – १ सूत्रस्थानम , 28 th अठाईसवाँ अध्याय ( विविधशित पीतीय अध्याय ) पद १ बिटेन ३ तक
अनुवाद भाग – २५०
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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अब विविधशित पीटीय अध्याय कु व्याख्यान करला। जन भगवान आत्रेय न बोली छौ। १-२।
मनिखौ खायुं -पीयुं , चाट्युं , चबायुं भोजन नाना प्रकारा हितकारी पदार्थ , जठराग्नि क प्रदीप्त बल क कारण , पृथ्वी जल, वायु आकाश व तेज पांच महाभूतों क गरमी से पाचन हूंद। ये प्रकारन पांच्यूं अन्न काल की भाँती गति करदो , सब धातुओं क निरंतर पाक हूण से जै शरीरम क्षीणता पैदा हूंदी , वै शरीरा की , अर जै शरीर म धातुओं गरमी बणी हो , अर वायु जीवित ह्वावो , इन शरीर की वृद्धि क साथ साथ बल , वर्ण , सुख अर आयु दीन्द अर शरीर म धातुओं तै तेज प्रदान करद । धातु ही जौंक भोजन च इन रसादि धातु नित्य प्रति क्षीण हूंद खायुं भोजन रूपी धातु खाइका स्वस्थ रौंदन। ३।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३७५
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