बदली बदली सब कुछ बदली
रीति-रिवाज कख हरचि गैन
बदली गैन मोर संगाड़
कख गैन होला खोळी द्वार।
बदली बदली कपड़ो रिवाज
कुर्ता पैजामा कख दिख्याणा आज
पाखलु लवा त नौं ही सुण्यू च
ताकुली चरखा कु भग्यान बूणु।
हरची हरची खेल कौथिग
अब कख लगदू तन बिखोत्यूं थोळु
अब नि दिखेंदि तन रंगत
ना नुमेस गौचर मेळू।।
बदली बदली खांणो ढंग
कल्यो बुजड़ि कंडाळी साग
कफलु ढेपलि चौंसू बदली
ना कोदे बाड़ी सुणेणी आज।।
बदली बदली रीति रिवाज
बग्वाळि भेळो नि खेलदा आज
झुमेलो चौफलों ना तांदि मंडाण
ना पांच भै पंड़ौ का नचौंदा बांण।
बदली बदली सब कुछ बदली
रीति-रिवाज कख हरचि गैन
नेहा, गंगतल अगस्त्यमुनि रुद्रप्रयाग
नै लिख्वार नै पौध—-कै भी संस्कृति साहित्य की पछांण ह्वोण खाणै छ्वीं तैंकि नै छ्वाळि से पता चलि सकदि। आज हमारी गढ़भाषा तै ना सिरप सुंण्ढा छिन बलकन नै पीढ़ी गीत गुंणमुंडाणी भी च त लिखणी भी च यन मा गढभाषा का वास्ता यन विकास का ढुंग्गू
——संकलन–@ अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग