केदारघाटी की तीन गौं मा, रचीं-बसीं लोकपरंपरा———-
केदारखंड नागपुर-केदारघाटी मा, रचीं-बसी संस्कृति, आस्था, विश्वास अर प्रकृति से जुड़ाव की, अलगे तस्वीर दिखौंदि।
हिन्दु नवसंवत्सर पर, जख ईं घाटी मा, बच्चों कु फूलदेई त्योहार, जोर-सोर से फ्योंली, बुरांशि, पैंया फूलों दगडि प्रकृति कु स्वागत करी होंदु, तखि चैत मैना मा, फूलदेई का बाद ही, केदारघाटी मा एक रोचक लोकपरंपरा कु त्योहार भी उर्यें जांदू ‘बीं माता’।
‘बीं माता’ मतलब बिधात्री देवी, वरदात्री माँ, जैकि हर्यालि दगडि, मुंड माथम धरीं सर्वमनोकामना पूरी ह्वे जांदि।
बीं कु लोकपर्व केदारघाटी का तीन गौं- अंद्रवाडी, देवशाल (द्यूशाल), अर रविग्राम ( रविगौं),
तीन साल का अंतराल पर बारी-बारी से,यौं गौं मा बीं कौथिग उर्यें जांदू, यानि एक साल मा, यौंमदि एक ही गौं ये कौथिग कु गवै बणदू।
अंद्रवाडी का सेमवाल बामण परिवार अंद्रवाडी बटि नमोली तोक तक बस्यां छिन, यनि देवशाल का देवशाली बामण ह्वोन या रविगौं का जमलोकी बामण। यि सब लोग देश-प्रवास बटि भी, ‘बीं माता’ का ये पावन पर्व पर, अपड़ि थाति बौड़ी जांदन। तन-मन अर धन से बड़ी आस्था का दगड़ि, अपड़ि चिरपुराचीन परम्परा से जुड़ि जांदन।
‘बीं कौथिग’ की लोकपरंपरा, गढकुमौं की धियांण ‘माँ नंदा देवी’ से जुड़ी च, यख नंदा तै बेटुली जन मांण्दन,अर सैरू गढकुमौं नंदा कु मैत मंण्ये जांदू।
कखि न कखि, ये लोकपर्व मा भी एशिया की सबसे बड़ी पदयात्रा ‘नंदाराजजात’ की झलक दिखैंदि।
गौं की ही क्वे मौं (परिवार) बीं माता तै न्यूतुदू, अर अपडा घौर मु हैर्याळी डाल्दू,
रातभर बीं-नंदा मांई का लोकजागर, बुजुर्ग बड़ी तन्मयता से लगौंदा। तखि नै पीढ़ी भी यौं लोकजागरों तै गांदि।
बचपन मा मैं भी ईं लोकपरंपरा कु साक्षी बण्यूं अंद्रवाडी गौं मा, तब रात-रात हम यौं जागर सुंण्दरा छा–
———–‘कां केलो तिरणी चार्यो
तूम्हरा घौर घर बासा ल्यौली,
सुदि बुधी नारी
नन्यौ त्वे अंकारा द्यौ।
तुमारा घौरौऽ—-
घर बासा ल्योली—–
सुद-बुद्धि, नारी—
त्वे औंकारा ळयो”
रात का तीनी पहरों मा, जागरण करी लोकजागर की धुन माहोल तै भक्ति मय बणै जांदि, ये अवसर पर ही पुरांणि पीढ़ी नै पीढ़ी तक लोकपरंपरा अर लोकसंस्कृति भी सरकदि जांदि। सैरा गौं का लोग यूँ दिनों बीं धियांण तै बेटी जन पूजी-पठैक खूब मान सम्मान दैंदा।
ये दौरान बीं माता की एक बड़ी मूर्ति भी तैयार कर्दा, अर खूब मान सम्मान पूजा पाठ करीतै, आखिरी दिन ईं बीं माता की प्रतिमा अर बीं माता का नौं कि डाळी हर्यालि तै मुंड मा बड़ा सम्मान का साथ गाजा बाजा लिकरी एक द्वी किलोमीटर पदयात्रा दगडि भगवान शंकर का मंदिर का नजीक पाणी स्रोत कुंआ या पंध्येरा तक स्यळौंणौ लिजांदन।
बीं का यौं गौंऊं मा भगवान शंकर का मंदिर छिन, जख बीं माता तै बिदै करी लिजांईं जांदू।
एक तरफां या तस्वीर बेटी बिदै से कम भावुक नि ह्वोंदि ये दौरान जख सबि मैती मुल्कि क्षेत्रीय लोग बीं तै बिदा कन जांदन, सबि लोखूं की आंख्यू मा दणमण आंसू छलकदन, सबका मन मा बेटी का ईं विदै पर जख, आंसू रंदन तखि ईं बेटी तै फ्येर तीन साल मा जल्दी ही मैंत औंण कु भी निवेदन भगवान शंकर से कर्ये जांदू।
बीं का यौं तीनी गौंऊं मा भगवान शंकर का मंदिर छिन।
पूजा-पाठ दगडि हैर्याळी तोड्यें जांदि, अर माथम का दगड़ि सब लोखूं तक पौंछाईं जांदि, लोग दूर-दूर तक
रिश्तेदारों तलक ये बीं कु माथम-प्रसाद पौछौंदन अर जौं-जस की कामना कर्दन।
ईं बिदै मा शामिल कौथिग उर्येंण वौळा परिवार का सदस्य जब वापस घौर जांदन त घर मा बड़ा बुजुर्गों कु आशीष ल्यौंदन।
ये दौरान लगभग गौं का घर-घर मा संजोळी पर हैर्याळी उगै जांदि अर स्यळौंणौ बीं दगड़ि लिकरी जांदि।
यि अद्भुत अर रोचक लोकपरंपरा छिन हमारी थाति की, यौंमदि सहेजणों अर लोकजागर संरक्षण कनै दिशा मा भौत सारा लोग काम भी कना छिन जौंमा प्रोफेसर डी आर पुरोहित जी, सुधीर बर्त्वाल जी, दीपक बैंजवाल जी समेत भौत सारा संस्कृति कर्मी लग्या छिन।
वाकई हमुतै अपड़ि संस्कृति माटी थाति पर गर्व मैसूस ह्वोंदू,
कि हम नंदा का मैती छिन——–
–-@अश्विनी गौड़ दानकोट अगस्त्यमुनि रूद्रप्रयाग बिटि।