तिमल या गूलर वृक्ष भारत में सब जगह पाया जाता है। 6 से 10 मीटर ऊँचा व एक फुट गोल तने वाले गूलर सामान्य पेड़ माने जाते हैं। गूलर की पत्तियां चौड़ी व वेक्स लिए होते हैं। फल गोल पीले , भूरे , कत्थई रंग तक पाए जाते हैं
आर्थिक उपयोगिता
पत्ते चारे के काम आता है और दूध वृद्धिकारक है। फलों को खाया जाता है व सूखे फल मंहगे होते हैं . लकड़ी उपयोगी होती है अनुमान है कि फिग परिवार की खपत भारत में 200 -300 टन वार्षिक है।
धार्मिक उपयोग
हिन्दू व बुद्ध धर्मी दोनों पंथों में गूलर का धार्मिक उपयोग होता है कई अनुष्ठानों में उपयोग।
औषधि उपयोग
भग्न अंगों को भरने की औषधि
त्वचा चमक व रक्षा हेतु औषधि (छाल का पेस्ट)
घाव भरने की औषधि
आँख , पेट आदि में जलन के अतिरिक्त , सूजन कम करने में उपयोगी औषधि
रक्तचाप औषधि
चक्कर आने पर औषधि
स्वाद व ऊर्जा वृद्धिकारक
तीस कम करता है
प्रसूति स्त्री हेतु लाभदायी औषधि
मासिक धर्म हेतु औषधि
कफ बृद्धिकारक किन्तु पित्त दोष कम करता है।
डाइबिटीज आदि औषधि
बबासीर हेतु उपयोगी औषधि
जलवायु आवश्यकता
अत्त्याधिक शीत छोड़ सब जगह उग सकता है
भूमि
बलुई , दुम्मट , यहां तक कि पथरीली भूमि भी ठीक होती है
फल तोड़ने का समय – जून जुलाई
बीज बोन का समय – मानसून , ट्रीटमेंट किये बीज लाभदायी
रोपण का समय -मानसून
कलम से भी उगते हैं
खाद आवश्यकता – गोबर
सिंचाई आवश्यकता – सूखा प्रतिरोधी
वयस्कता समय – 6 -7 वर्ष
सही सलाह – महाराष्ट्र में जिस तरह सतारा व लातूर के पथरीली तकरीबन बंजर धरती में बौनी जाति के गूलर कलम लगाने से बंजर धरती भी उपयोगी धरती बन गयी व किसानों को आर्थिक लाभ होने लगा। उसी तरह उत्तराखंड में भी बौनी किस्मों की कलम लगाना ही श्रेयकर है . विशेष्य्ज्ञों की सलाह आवश्यक है।