आंवला उगाना / वनीकरण
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
लैटिन नाम – Phyllanthus emblica
आंवला वर्णन – आंवला लघु , मध्यम से बड़े 1 -3 मीटर तक की ऊंचाई का वृक्ष होता है छाल सफेद से पीले रंग का व् पत्तियां पत्रकों से मिलकर बने होते हैं जैसे इमली। फल डंठल पर गुच्छे में आते हैं जो अंडाकार पीले रंग के होते हैं फलों के अंदर गुठली होती है
आंवले के औषधि उपयोग —
आंवला के कई रोगों हेतु औसधि इ पई उपयोग होते हैं इसीलिए आंवला विष्णु अवतार माना जाता ह. त्रिफला के मुख्य अवयव होने के अतिरिक्त आंवला ज्वर , अर्श रक्तपित्त , कामला , पांडुरोग , प्रमेह , अग्निमांद्य मूत्रकृच्छ , नेत्र रोग , शिरोरोग में औषधि हेतु उपयोग होता है वृद्धावस्था कम करने में सहयोगी है।
आंवला कृषिकरण हेतु जलवायु आवश्यकता
उष्ण कटबंधीय पादप
वार्षिक वर्षा -630 -800 mm
अधिकतम तापमान – 46 डिग्री सेल्सियस यद्यपि आंवला शून्य डिग्री सेल्सियस को भी सहन काने में सक्षम है किन्तु शुरू के तीन वर्षों में ओस व मई जून में धुप से बचाव आवश्यक
भूमि – लघु , मध्यम भूमि , बलुई मिट्टी में अच्छी फसल , सामान्य क्षारीय भूमि व सूखे इलाके में भी उग जाता है
आंवला के बीजों को जून जलाई वर्षात शुरू होते ही मिट्टी में खाद भरे गड्ढों में 6 मीटर की दूरी में बोया जाता है और 200 ग्राम बीज एक एकड़ के लिए काफी होते हैं। रोपण व कली विधि भी अपनायी जाती है। काली गोबर खाद अच्छी होती है। गर्मियों में सिंचाई आवश्यक है। फल देने का समय वेराइइटी अनुसार
7 -8 साल में आंवला फल देने लगता है और एक पेड़ 120 किलो के लगभग फल दे देता है।