सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -1
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति ) 103
Medical Tourism Development in Uttarakhand ( Strategies ) – 103
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
यदि उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकसित करना है तो आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन ही महत्वपूर्ण विकल्प है। आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन से बांज पड़ी धरती के हरी भरी होने के पूरे के पूरे अवसर हैं। आयुर्वेद चिकित्सा हेतु दसियों वन पादपों की आवश्यकता होती है अतः यह आवश्यक है कि उत्तराखंड का हर इंच वन औषधि पादपों से आच्छादित हो। राज्य सरकार को वन अधिनियमों में परिवर्तन करने पड़े तो करे।
बहुत से पंडितों का आकलन है कि ग्रामवासी नई पद्धति को शीघ्र नहीं अपनाते। मुझे लगता है वे भूतकाल में खोये रहते हैं। वर्तमान ग्रामवासी मुंबई , कनाडा के प्रवासियों से अधिक अनुकूलितीकरण में विश्वास करते हैं। जरा पहाड़ी गाँवों में जाईयेगा तो पाएंगे कि अब गाँवों में हर व्यक्ति 50 दिन में तैयार होने वाली राजमा बोता है। याने यदि ग्रामवासी को सही माने में आर्थिक लाभ दिखता है तो वह तुरंत उस तकनीक को अपना लेता है।
उत्तराखंड राज्य का कायापलट आयुर्वेद पर्यटन ही कर सकता है। आयुर्वेद पर्यटन में निम्न संस्थाओं की आवश्यकता पड़ेगी जो नए से नए आजीविका देने में समर्थ रहेंगे
आयुर्वेद औषधि निर्माण
आयुर्वेद चिकित्सालय कम से कम दस प्रकार के विशेष चिकित्सालय
आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन विपणन संस्थान
आयुर्वेद औषधि विक्री संस्थान
आयुर्वेद औषधि पादप विक्री संस्थान
कृषि भूमि औषधि पादप उत्पादक
सार्वजनिक या ग्राम सभा वनों में औषधि पादप उत्पादन
राज्य वनों में औषधि पादप उत्पादन
जरा सोचिये उपरोक्त कार्यों हेतु कितने हजार मनुष्यों की आवश्यकता पड़ेगी यह संख्या लाखों में जायेगी। जहां तक श्रम शक्ति का प्रश्न है यदि पहाड़ों में श्रम शक्ति उपलब्ध नहीं है तो आउटसोर्सिंग बुरा नहीं है। मैं नेपाली , पूर्वी उत्तर प्रदेश या बंग्लादेशियों के कभी खिलाफ नहीं रहा हूँ। उत्तराखंडियों का मुख्य ध्येय आयुर्वेद चिकित्सा व्यवसाय होना चाहिए ना कि श्रम शक्ति पर अनावश्यक बहस।
खाली पड़े वनों के एक एक इंच का औषधि पादपों माध्यम से दोहन आवश्यक है । वनों में आज आग लग रही हैं पर जरा सोचिये बल यदि वनों में ग्रामवासियों के औषधि पादप होते तो क्या वे आग फैलने देते जी नहीं वे अग्निशामन का पबंध कर ही लेते। चूँकि वनों पर अब गाँवों का अधिकार नहीं है तो वन जलें तो जलें वाली मानसिकता से वन अधिक जल रहे हैं।
ग्राम सभा वनों में जबरन औषधि पादप वन लगने चाहिए। जी हाँ जबरन औषधि वन लगाए जाने चाहिए। एक तूंग केवल लकड़ी देता हैं किन्तु खैर लकड़ी , चारा व मुनाफ़ा आदि देता है तो ऐसे बनों में तूंग के स्थान पर खैर या टिमरू के पेड़ नहीं होने चाहिए ? चीड़ के स्थान कोई अन्य औषधीय पेड़ लगेंगे तो अधिक मुनाफ़ा होगा। क्या भेंवळ को वन लायक नहीं ढाला जा सकता है ? क्या कुछ वनों में बेडु -तिमलु नहीं उगाया जा सकता है ? क्या तूंग वन हरड़ , बयड़ या आंवला वनों में परिवर्तित नहीं हो सकते है ? ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनके बारे में शासन , समाज को सोचना ही होगा। शिल्पकारों के पास भूमि कम है क्या उन्हें ग्राम वन अदरक , हल्दी , वन प्याज उगाने नहीं दिया जा सकता है ? यदि किसी शिल्पकार को ग्राम सभा के एक एकड़ भूमि पर हल्दी -अदरक कृषि करने दिया जाय तो सूअरों की शामत नहीं आ जायेगी ? यदि वनों में उगे टिमरू से ग्राम सभा को प्रति वर्ष एक लाख से अधिक लाभ होना निश्चित हो तो वन टिमरूमय न हो जाएगा ?
आगामी अध्यायों में उन वन पादपों के बारे में चिंतन होगा जो चिकित्सा पर्यटन में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।