नाक कखि मान च
नाक कखि सम्मान च
नाक दगडि जुड्यूं
हम सबुकू स्वाभिमान च।
कैन नाक रगड़ि यख
झूठि छ्वीं-बातौ मा
कैकि नाक लंबी बिजां
हिटणू तिमला पत्तौ मा।
कैकि नाक कटैणि
कुकर्म करी समाज मा
कैन नाक काटि हकै
बदनामी का काज मा।
कैकु सेरु रोष क्रोध
नाक मा संभाळी धर्यू
बौंड़-वबरा संगति कैकु
नाक मा च दम कर्यू।
द्रोपदी हैंसी पर
दुर्योधने नाक लगी
ततरा कुरुक्षेत्र मा
ळवे कि कतरि गाड़ बगी।
छ्वीं-बथ रखण तखि तक
हेक्के नाक खड़ी जख तक
जनि अपड़ि नाक मण्ण
हेक्के नाक भी तनि जण्ण।
नाक ऐंच रखण अपड़ि
या त भलीऽ बात च
नाक रखण हक्के भी
ये त मनख्यात् च।
या नाके त रे, जैन
हमारि पद पौ प्रतिष्ठा रखि
मनख्यूं मा मनख्यात् कि
बिज्वाड़ भली पौजे रखि।
कखि नाक बगदि जांणि
गिच्चा ऐंच तक च आंणि
एक धारी ऐंच स्वण्न
खळबट्ट हैकि पेंद आंणि।
कर्तव्य का बाटा हिटा
नाक की भी नाक रखा
लड़ै-झगड़ा दूर करी
नाक की भी साख रखा।
कखि नाक सरेआम
जुल्म मा कटेणी च
अधर्मी पापी समाजा बीच
बेटी नाक बचौणौ भटेंणी च।
नाक दगडि नौ भी कैकु
पछांण जन जुड्यूं रे
फुलि-बुलाक नथुलि दगड़ि
नाक कन सज्यूं रे।
नाक मवड्न, नाक स्वड्न
भारी बुरी बात च
घ्राण-प्राण शक्ति मा
नाको बडु हाथ च।
कैकि नाक दिन-रात
कपालै मा चढ़ी च
अति-मति खै-खै
नाके गंध मरी च।
–अश्विनी गौड़ ‘दानकोट’ राउमावि पालाकुराली रूद्रप्रयाग