(वियतनामी लोक कथा )
272 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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भौत समय पैल तख वियतनाम म एक शिकारी रौंद छौ जैक नाम डा ट्रैंग छौ। डा ट्रॉन्ग। डा ट्रोंग प्रतिदिन शिकार हेतु बौण एक पूजास्थल जिना जान्दो छौ। वेक बाटो ेकी छौ प्रतिदिन। बाट म डा ट्रोंग तैं द्वी चितकबरा गुरा मिलदा छा। पैल पैल ट्रोंग तैं सांपों से भय ह्वे किन्तु तौन क्वी हानि नि कार तो ट्रोंग यूंको आदी ह्वे गे। धीरे धीरे डोंग तै गुरा भल लगण लगिन अर वो वूंक गति , वूंक सुंदरता व चमक्दा कंचुळ का प्रति अति मोहित ह्वे गे।
एक दिन शिकारी न द्याख कि पुजस्थल निकट तौं द्वी अर एक उपरी बड़ो सांपौ मध्य भयंकर संघर्ष हूणु च। शिकारी न शीघ्रता से अपर धनुष वाण निकाळ अर बाण उपरी सांप पर चलै दे। उपरी सांप चोटग्रस्त ह्वे गे अर बौण जीना भाजि गे। एक चितकबरा सांप ऊपरी सांप क पैथर भाग अर दुसर चितकबरा सांप मोर गे। भारी हृस्य से डा ट्रोंग न पूजास्थल क समिण खड्यार दे।
वीं राति बच्युं चितकबरा सांप शिकारी डा ट्रोंग क सुपिन म आई अर वैकि सहायता व दुसर सांप तै सम्मानपूर्वक खड्यनो हेउ धन्यवाद दे व कृतग्यता म एक भेंट दींद ब्वाल , ” यु एक मोती च। ए तै जीव तौळ धर देन। यु तुम तै पशुओं की भाषा समझण म सायता कारल अर तुमर शिकार करण म बि भौत सहायक होलु। “
डा ट्रोंग की निंद बर्र बिज अर वैन द्याख कि मोती वैक सिर वणि तौळ च। वैन मोती अपर जीव तौळ धार अर शिकार करणो बौण जिना चल गे। जंगळ म वै तै एक हिरण दिखे अर जब वैन बाण मार तो चूक गे अर हिरण भाज गे। इथगा म एक कव्वा ककड़ायी , ” हिरण दै और सौ हथ पर च। “
शिकारी तै कव्वा क ककड़ाट बिंगण म ऐ गे अर प्रमाणित ह्वे गे कि चितकबरा सांप क बात सत्य छन।
अर वैन कवा क परामर्श अनुसार कार्य कार अर हिरण मार दे। अब कवा न डा ट्रोंग से अपर पारितोषिक मांग। डा ट्रोंग न हिरण का वो अंग दे दिने जौं तै आवश्यकता नि छे।
यांक उपरान्त कवा डा ट्रोंग क दगड्या -दगड़ शिकार करणों सहमत ह्वे गे। कवा क सुचना अनुसार डा ट्रोंग शिकार को पीछा करदो छौ अर शिकार को अंदड़ पिंदड़ कवा तै दे दींद छौ।
प्रतिदिन द्वी एक हैंक की सौ सायता करदा छा।
एक दिन डा ट्रोंग न एक जंगली सुंगर मार अर काटि व अंदड़ -पिंदड़ भूमि पर कवा कुण छोड़ दे तौं अंदड़ -पिंदड़ एक गरुड़ खै गे। कुछ समय उपरान्त कवा आयी किन्तु अंदड़ -पिंदड़ नि देखि क्रोधित ह्वे गे कि डा ट्रोंग न वैक भागांश नि छोड़।
कवा रोष म डा ट्रोंग क घर आयी अर खरी खोटी सुणायी। डा ट्रोंग न भौत बार बोल कि मीन अंदड़ -पिंदड़ तख छोड़ छे किंतु क्वा तै डा ट्रॉन्ग पर विश्वास नि आयी। डा ट्रोंग तेन क्रोध आयी अर वैन कवा पर बाण चलै दे किन्तु बाण नि लग। कवा न शिकारी क बाण अपर चूंच पर दबायी अर उड़ गे।
कुछ दिन उपरान्त राजा न डा ट्रोंग तै गिरफ्तार कर दे कि डा ट्रोंग नाम छ्प्युं वळ बाण एक मृत मनिखाक शरीर म मील.. डा ट्रोंग न अफ़ु तै निरपराधी बताई किंतु न्याय सभा सच नि मानि अर डा ट्रोंग तै कठोर कैदखाना म डाळ दे।
युवा ट्रोंग कैदखाना म कैद काटणु छौ। कुछ मैनों उपरान्त डा ट्रोंग , द्याख कि किरम्वळ शीघ्रता से भोजन सामग्री भैर से अपर घोल (nest ) म लिजाणा छा। इथगा गति डा ट्रोंग न नि देखि छे। वैन किरम्यळों नेता तै पूछ तो नेता न बतायी कि शीघ्र ही बाढ़ आण वळ च तो बाढ़ आण से पैल वो सब किरम्वळ भोजन अपर घोल म धरणा छन।
डा ट्रोंग न द्वारपालों तै सुचना दे कि राजा तै बाढ़ आणो सूचना दिए जाय। राजा यद्यपि संशय म छौ किन्तु राजा न राज्याधिआरियों व नागरिकों तै उचित आदेश दे देन कि शीघ्र ही बाढ़ ऐ सकद तो उचित प्रबंध किये जावन। नागरिक सजग ह्वे गेन।
तीन दिन उपरान्त भयंकर बाढ़ ऐ किन्तु राज्याधिकारी व नागरिक सजग छा तो राज्य बाढ़ की अति हानि से बच गे।
कृतग्यता हेतु राजा न डा ट्रोंग तैं कैद से स्वतंत्र कार अर वै तै अपर परामर्शदाता बणै दे। पशुओं क बचन सूणि डा ट्रोंग राज्य तेन आधी , बाढ़ , सूखा आदि से बचांद छौ। घ्वाड़ा शत्रुओं की सूचना दींद छा।
एक दिन बसंत म सुबेर सुबेर डा ट्रोंग राजा दगड़ नौका विहार हेतु गेन। तब टख डा ट्रॉन्ग न लहरों तौळ विचित्र बात देखि। एक कैटलफिश (माछ को प्रकार ) नाव किनारा किनारा गाना गाणी छे। गाणा सुणी डा ट्रोंग हंसण शुरू ह्वे अर जोर जोर से हंसण मिसे गे। इनम मोती जीव से भैर छिटक अर तौळ पाणी म समै गे।
डा ट्रोंग न राजा से सैनिकों कुण मोती खुज्याणो प्रार्थना कार। सैनिकों न पाणी म इना उन कुद्दी मार किन्तु मोती नि मील।
दुसर दिन डा ट्रोंग मोती खुज्याणो समोदरौ छाल आयी किंतु असफल राई। डा ट्रोंग प्रतिदिन समदरौ छल एक मोती ढूंढतो छौ। असफलता से वो अप्रसन्न ह्वे गे अर एक असफल , अप्रसन्न व संतोष रहित मनिख क रूप म मोरि गे।
दुसर जनम म डा ट्रोंग क लाखों समुद्री गिगुड़ क रूप म जन्म ह्वे जो प्रति क्षण मोती क खोज म बळु उछाळदन दुंळ बणौंदन किंतु मोती खुज्याण म असफल रौंदन।
तबि तो बुले जांद बल अपर क्षमता से भौत अधिक की खोज म जाण निरर्थक हूंद।