(वियतनामी लोक कथा )
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270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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हंग राजा क समय वियतनाम म द्वी झण रौंद छा। ब्यौ हुयां भौत वर्ष ह्वे गे छा किन्तु बच्चा नि ह्वे छा। एक दिन वीं बिठलर न द्याख कि एक बड़ो खुटो छाप पुंगड़म च वींन ार खूट तै पदचिन्ह म धार अर पदचिन्ह भौत बड़ा छा। वा पदचिन्ह म खुट धौरी जाणी छे कि तैं तै कंपकंपी ह्वे। दुसर दिन वींन चितायी कि वा गर्भवती च।
बच्चा नौं मैना म पैदा नि ह्वे अपितु बारा मैना म पैदा ह्वे। किन्तु बच्चा ना तो बोल सकुद छौ ना ही हंसदू या रूंदु छौ ना ही चल सकुद छौ ।
जब बच्चा तीन वर्ष क ह्वे तो शत्रु देस न आक्रमण कर दे। शत्रु शक्तिशाली छौ। तैन सब गाँव उजाड़ देन। तब वियनाम को राजा न सेना निर्माण हेतु सबकी सायता मांग। बच्चा न अपर ब्वे कुण ब्वाल , ” मि सेना म भर्ती हूण चाणो छौं। “
बच्चा की ब्वे अचम्भा म चल गे। जब अचम्भा से भैर आयी तो वींन राजा क दूत बुलाई अर ब्वाल , ” यदि राजा म्यार नौना कुण लोखरा क घ्वाड़ा , लोखरा क तलवार , लाठी अर कवच द्याल तो म्यार नौन शत्रु भगै द्यालो “
राजा न सब वास्तु भिजवाइन। नौनान सब पैरिन अर अब वो बीस वर्षक वीर युवा लगणु छौ. अर युद्ध हेतु चलण लग गे। तैक घ्वाड़ा शत्रुओं पर आग उगळणु छौ। छड़ी तै वो तब तक प्रयोग करणु राय जब तक टूटी नि गे। युद्ध निरंतर रखणो उद्देश्य से वैन बांस क झाड़ उखाड़ देन।
आक्रमणकारी वियतनाम छोड़ी भाज गे। युद्ध जितणो उपरान्त वो ब्वे बाब से मील अर वो वैक घ्वाड़ा सोक पर्वत पर गेन। तख बिटेन स्वर्ग गेन।
तब बिटेन तै नौन कैन नि देखि।
बांस पर जो पीली धारी छन वो घ्वाड़ा क आग बरसाणो प्रतीक च तो तालाब घ्वाड़ा क खुर चिन्ह माने जांदन।
राजा न गाँव म बच्चा तै संत गिओंग नाम देकि वैक नामक मंदिर स्थापित कार। हनोई से भैर जो वार्षिक उत्स्व हूंद वो संत गिओंग तै धन्यवाद दीणो बान हूंद अर इख संत गिओंग क करतबों पर नाटक खिले जांदन।
संत गिओंग की कथा वियतनामी लोगों क शौर्य व देस प्रेम की कथा च।