बिस्वास छ मि तैं
सक नी क्वी
भोळ जरूर होलु सुख-चैन
भोळ नि होलु आजै तरां
भोळ कबि बि आज जनु नि होंदु
बिस्वास छ मि तैं
आगि फूक्यां जौं कूड़ौं कु दिखेणू आज छारु
भोळ वूंकै पौ पर
बणला नया घौर
वूं कूड़्वी बुन्याद मा दबि जालि
आजै सैरि अशान्ति
यूं कूड़्वी मोर्यूं बिटि बगदि औलि
सदभौ अर संस्कृती किसराण
हँ, बिस्वास छ मि तैं
जु छौड़ा-छिंछड़ा बुसेण से बचि जाला
वी बणला भोळ गंगाळ
जु बगै ल्हिजाला
ल्वे का दाग अपणा दगड़ा
धरति नह्यै वूं गंगाळों
फेर से नै-नवाड़ ह्वे जालि
बिस्वास छ मि तैं
जबारि तलक एक बि ख्वळ्यांस तैं
मिलणू रौलू मयाळुपन
ब्वेकि सांकि पर
सुख-चैन जरूर होलु
मेरि घाटी जनान्यूं
आवा, निकळा घौर बिटि भैर
अपणु फर्ज पछ्याणा
नौन्याळ्वी अंगुळि पकड़ी
ल्या वूं तैं सुबाटा
बैख यनु नि करि सकणा
त तुम सबि अगनै आवा
बिसरिन क्य?
ब्वेका हातौं तैं
कुदरतै दीनी समौण
जुग बदलणै सामर्थ……
डोगरी कविता – पद्मा सचदेव
हिंदी अनुवाद – कृष्ण शर्मा
गढ़वाली अनुवाद – बीना बेंजवाल
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