उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
265 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
गणेश जन्म की भौत कथा छन किन्तु एक कथा सब स्थानों म एकि जन प्रसिद्ध च कि किलै गणेश जीक पूजा सबसे पैल हूंद। कथा इन च –
एक समय की बात च बल सब देवी – दिबतौं म प्रतियोगिता शुरू ह्वे कि कै देव की पूजा पैल हूण चयेंद। सब देव चांदा छा कि वैकि पूजा सर्व प्रथम हो।
प्रतियोगिता देव तुल्य सभ्यता से भैर राक्षसी प्रतियोगिता म परिवर्तित हूण वाळ हि छे कि नारद जीन सब डिवॉन तै समजायी कि समस्या समाधान हेतु शिवजी से परामर्श करणों जावो। सब देव शिवजी म गेन अर अपर समस्या बताई।
शिवजीन समाधान हेतु सब देवों मध्य एक कड़ी प्रतियोगिता रख दे।
प्रतिगोगिता अनुसार प्रत्येक देव तैं ब्रह्माण्ड की परक्रमा करण छौ अर जु पैल आलो जगत म वै देव की प्रथम पूजा ह्वेलि। प्रतियोगिता ठीक छे तो सब मान गेन।
सब दिबता अपर अपर वाहनों म बैठि ब्रह्माण्ड की परिक्रमा हेतु चलण लग गेन। कार्तिकेय मयूर वाहन म बैठि ब्रह्माण्ड परिक्रमा म चल गेन। गणेश जी समस्याग्रस्त कि ऊंको वाह्न तो मूस च तो कनै ब्रह्माण्ड परिक्रमा ह्वेलि !
गणेश जीन कुछ समय विचार कार अर मूस म बैठि अपर माता पिता शिव -पार्वती क परिक्रमा कार। अर ब्वाल कि मेरो ब्रह्माण्ड तो मेरो माता -पिता च।
सब देव ब्रह्माण्ड परक्रमा कोरी ऐन तो शिवजी न गणेश तै प्रथम पूज्य देव को वरदान दे अर्थात गणेश जी प्रतियोगिता जीत गेन। जीत या वरदान की घोषणा करद शिवजी न ब्वाल , ” माता -पिता से बड़ क्वी ब्रह्माण्ड व तीर्थ क्षेत्र नी , “
सब देवी – दिबता शिवजी क निर्णय से अति प्रसन्न ह्वेन अर सब्युंन गणेश जीकी पूजा कार ।
तब से प्रत्येक कर्मकांड म सबसे पैल गणेश जी की पूजा हूंद व अन्य दिबतौं तांक उपरान्त ही हूंद।