(वियतनामी लोक कथा )
अनुवाद: 250 से बिंडी कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
भौत समय पैल वियतनाम म एक भल मनिखाक बेटी छे -किन्ह। एक दिन मंदिर जांद प्रेम ह्वे गे। किन्तु कै लरख्यर से ना अपितु वा अफु तैं मंदिरो कुण समर्पित करण चाणी छे। वीं तैं दूसरौ दुःख हीन करणो हेतु भक्ति मार्ग ही आकर्षित करदो छौ।
किन्हन अपर बुबाश्री तैं बताई किंतु बुबाश्री न आज्ञा नि दे।
किन्ह भौत बिगरैली छे अर स्वभाव से शील सौम्य छे। किन्ह की प्रसिद्धि दूर दूर तक पसरीं छे , तैंक भौत सा चाणवळ छा। वींक बुबाश्री न वींक विवाह एक सम्मानित युवा दगड़ निश्चित कर दे कि तैंक भविष्य उज्जवल राओ।
बेटी अति उलझन म छे -एक जीना वींक ब्वे -बाबु प्रति कर्तव्य अर हैंक जिना दुसरों सेवा कार्य। मठ म सब लरख्यर ही हूंदा छा , बिठलर एक बि नि हूंदा छा ।
बुबाश्री क प्रति कर्तव्य भाव से तैन ब्यौ कर दे।
ब्यौ का कुछ समय उपरान्त एक रात वींक नींद बिज गे। रात म बि दिनौ उज्यळ छौ। तैंन देखि कि तैंक पीटीआई क तिल बिटेन एक भद्दो बाळ भैर आयुं छौ। वा असामंजस्य म छे कि पति तैं बिजाळ कि ना।
स्या दुसर कुठड़ी बिटेन एक कैंची लायी अर बाळ कटणो तौळ झुक कि तैंक कजे ( पति ) बिज गे। कजे न समज सया वैक हत्या करण चाणी च। तैंक कजे किन्ह को अर वीक परिवारौ घोर अपमान कौरी घर से भैर भगै दे। वा अब निराश्रित व निःसहाय छे।
भौत मैनों तक किन्ह नगर नगर भटकणि राइ। दान म मिल्युं भोजन से वा कार्य चलांदी छे , तैंमाँ सुचणों भौत समय छौ। भटकद -भटकद एक दिन वा एक नदी छल पर आयी जख शांत स्थल म एक मठ छौ। किन्ह न अपर मुंड मूंड अर छाती पर झुल्ला बाँध अर झुल्लों तै चीयर दे। अब व पुरुष भिक्षु रूप म मठ भितर मठ म रौणै आज्ञा लीणो मठ भिक्षु म गे। मठ भक्षी ये भिक्षु क आकर्षक देह व बाचालशक्ति से बड़ो प्रभावित ह्वे अर वैन पुरुष भेष क किन्ह तै मठ म रौणों आज्ञा दे द्याई।
वर्षों तक किन्ह परुष भिक्षु रूप म प्रसिद्ध व सम्मानीय भिक्षु रूप म प्रसिद्ध ह्वे। जब बि हौर पुरुष भिक्षु नदी म नयाणो जावन कीन्ह क्वी न क्वी तर्क दे दींदी छे। लोग वीं तैं शर्मीला समजद छा।
भौत सा नौनी किन्ह पर आकर्षित छा। वो तैंक दगड़ ब्यावो क शक्ति लगांदा छा। एक दिन मठ क चौक म एक ठुपरि उंद एक बच्चा मील अर एक नॉट छौ कि यीं नौनी क अवैध पिता किन्ह च।
मठ वळुंन किन्ह तैं पाप कर्म क अपराध म भैर कर दे। वीन वो बच्ची क पालन पोषण कार। जब वा भौत रुग्ण अवस्था म आयी तो वींन अपर ब्वे बाब तैं रैबार भिजवाई अर पत्र म सत्य बताई । किन्ह मोर गे किन्तु सत्य बताई गे। जब मठ व नगर वाळों तैं किन्ह की वास्तविकता पता चल तो सब वींक सेवा भाव क समिण नतमस्तक ह्वेन।
जीवन भर अफु दुखम किन्तु करुणा की मूर्ति रूप म लोगों दुःख हीन करण म सदा ततपर रौण वळी तैं मठ वळो न बोधित्स्व की पदवी दे -क्वान एम।