240 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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मस्ता वर्तमान म होलु पिचासी -छियासी वर्ष को। कोटद्वार म नाती क दगड़ रौंद। सरा गांवक लोक बुल्दा बि छन कि मस्ता बड़ो भाग्यशाली मनिख च जै तै इन नाती मील। मस्ता क घरवळि बि नी अब। पैल बड़ नौना दगड़ जयपुर राई अब छुट नौनाक नौना दगड़ कोटद्वार म रौंद। नातिन अलग कक्ष बाथरूम , टीवी सहित प्रबंध कर्युं अपड़ी दगड़। अबि बि हट्टा कट्ठा च। मूछ झंगर्यड़ हुयां छन , मुंड क बाळ पूर नि गेन पर सफेद छन। कोटद्वार म सुबेर स्याम छै छै मील घूमिक आंद। टीवी मा हप्पू की उल्टन पलटन मा हप्पू की ब्वे वयस्क हप्पू तै थप्पड़ जमांदि तो नाती व हौर लोक आश्चर्य करदन कि यू बि क्वी संस्कृति च या रै होलि जु एक ब्वे अपर वयस्क नौन तै इन पीटो। प्रश्न स्वस्थ मस्ता का जिनां हूंद किन्तु मस्ता क्वी उत्तर नि दीदो।
भौत बार जब वो हप्पू की उल्टन पलटन म हिमानी शिवपुरी हप्पू तै थिंचद दिखुद या भाभी जी घर पर म रामकली , त्रिपाठी तैं घमकान्द दिखुद तो वैक कन्दूड़ लाल ह्वे जांदन एक याद से।
कबि ब्वे द्वारा नाती नतण्या वळ बेटा तै पिटण सामान्य बात छे वर्तमान म ब्वे द्वारा वयस्क बेटा पिटण अटपटो लगद।
वर्तमान को बुड्या मस्ता तैं अपर युवा समय याद ऐ जांद हप्पू व त्रिपाठी क ब्वे द्वारा पिटाई से। द्वी नौना दुगड पढ़दा छा। घौरम वो , वेकी ब्वे अर घरवळि छे।
सरादों क समय छौ। दीदी क ससुर क सराद छौ। प्रति वर्ष रीति अनुसार वो दीदी क ससुर क सराद खाणों दीदी क ससुरास आई। दीदी क ससुरास तीन मील दूर छौ तो वो तब पॉंच जब बामणुं , मस्ता जन पौणुंन अर बूड बुड्यो न खाणो खै याल छौ वो तब पौंछ। वो जनि अपर दीदी क ससुरास पोंछ तो सीधा डिंडळ म पौंछ तो जौंन जीमि याल छौ सि कखडी काटि चिरखि बंटण म व्यस्त छा। सब्युंन इक्छुटि पूछ – हैं ! मुख पर यो सूजन किलै ? इन लगणु जन रिखन झापड़ मारी ह्वे। मस्तान कुछ समुचित उत्तर नि दे बस गुण गुण करी उत्तर दे।
तौळ रुस्वड म बिठलर सरादौ भोजन करणा छा एक इ लरख्यर छौ जो अबेर से ऐ। सब बिठलरुं को भी एकि प्रश्न छौ चोट कन लग ? भोजन सवादी छौ किन्तु मूड उचित नि हो तो सवाद रंगुड़ जन ह्वेई जांद। उत्तर म कन बताओ कि ब्वेन पीट ? पीट तो पीट केक बान पीट कि डांड भद्वाड़म अपर घरवळि दगड़ उथगा देर तक रंगरेली मनाणु राइ ?
वास्तव म ह्वे क्या छौ यु बताई बि द्यालो तो कैन सत्य मनण।
एक सप्ताह पैल वो घर बिटेन डांड भद्वाड़ आणु छौ तो ब्वेक दगड़ विचार विमर्श ह्वे गे छौ कि दीदी क सरादौ दिन वैक घरवळि सुबेर सुबेर गोठ म पौंछ जाली तो वो तुरंत घौर ऐ जालो अर दीदी क ससुरास कुण प्रस्थान कर जालो तो भोजन से पैल दीदी क ससुरास पौंछ जाल।
मस्ता क घरवळि घाम आंदि कुछ समय उपरान्त भद्वाड़ पौंछि गे छे। ठीक च वो एक सप्ताह से इख भद्वाड़ म छौ किन्तु देह सुख की इच्छा वै तैं नि ह्वे। गोरुं स्थानांतर वैन कोरी ऐ छौ। वैक घरवळि न गोर खोली गोरुं तैं कुछ दूर पाणि खलाण अर जंगळ म गोर चराण छौ । स्याम तक वो भद्वाड़ पौंछि जाल समय पर।
जनि वेक घरवळि आइ वो घौर कुण प्रस्थान ह्वाइ। जनि वो गांवक बड़ पाणिम आइ तो वैन द्याख युवा बच्चा नया नया निर्मित हौज म बा काटणा छा। बच्चोंन मस्ता तै भट्याइ कि आ हौज पुटुक बा काट . गाँव म क्वी बड़ो गदन तो छौ ना जो बा कटणो सुख लिए जाव। तो मस्ता न झुल्ला उतारिन अर बा काटणों हौज पुटुक उत्तर गे। पाणि पुटुक उत्तरणो उपरान्त तख वैक बैकपन ( प्रौढ़ पन ) एक दम गळ गे अर मस्ता बच्चा बण गे व युवाओं दगड़ खिलवाड़ करणम व्यस्त ह्वे गे। मस्ता बिसर गे कि वैन दीदी क ससुरास जाण। जल क्रीड़ा म आनन्द युक्त ह्व़े गे। समय को क्वी ध्यान इ नि ऐ।
वो तो जब कुछ लोक मुड़ी धरड़ म ऐना अर तौंन युवाओ तैं पूछ बल क्या तना मस्ता बि ऐ होलु डांड बिटेन , वैकि ब्वे धै पर धै लगाणी च। भौत समय वो जल क्रीड़ा म ही संलग्न राइ। समय को ध्यान इ नि राइ , झटपट हौज से भैर आयी झुल्ला पैरिन अर दौड़दा -दौड़दा घौर आइ।
मस्ता की ब्वे भूकी बाग़ण बणी छे। जनि मस्त चौक म आयी वैकि ब्वेन वैक द्वी गल्वड़ों पर शक्ति से थप्पड़ मार कि मस्ता बिसुद्ध हूण वळ छौ। थपड्याण से मस्तक ब्वेक रोष हीन ह्वे गे छौ / तब भि बड़बड़ाणि छे रुकावट नई आयी , ” अरे हम नि रै होला एक सप्ताह तक अलग अलग। देह सुख आजि आवश्यक छौ। भोळ तेरी घरवळि न मोर जाण छौ कि सुबेर बिटेन अब तक तीन वा घिरीं राख “
मस्ता क ब्वे तै संदेह छौ कि मस्ता अपर घरवळि दगड़ गोठ म किलोल मा व्यस्त राय अब तक। जबकि मस्ता तो हौज म जल क्रीड़ा म व्यस्त छौ। अब मस्ता कै कै तै कन बताओ कि ब्वेन घरवळि दगड़ किलोल क संदेह म मारिन।
भीष्म कुकरेती