हरिद्वार इतिहास परिपक्ष्य में 1600 -1700 मध्य चिकत्सा वर्णन
Medical Tourism from 1600-1700 in context Haridwar History
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -51
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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आक्रांता, आतंकवादी मुस्लिम शाशन में हरिद्वार का इतिहास सामान्य उत्तराखंड जैसा नहीं रहा। इसीलिए हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर जो कभी गढ़वाल के भूभाग थे उनका इतिहास अलग से बतलाना आवश्यक हो जाता है। शाहजहां का शासन हरिद्वार पर भी रहा था। चिकित्सा इतिहास की दृष्टि से हरिद्वार इतिहास में शाहजहां के राजसभा के चिकित्स्कों का विवरण आवश्यक हो जाता है. शाहजहां काल में निम्न हाकिम ख्यातिप्राप्त हाकिम थे –
हाकिम मुहमद अमीन गिलानी
हाकिम निजाम अल दीन अहमद गिलानी – गिलानी दक्षिण में कार्यरत थे। व मृत्यु १६४९ में हई। हाकिम निजाम ने दो चिकित्स पुस्तकें फ़ारसी में रचीं।
हाकिम दाऊद तकरब खान – हाकिम तकरब खान १६४४ में भारत आया व शाहजहां के राजसभा में शाहजहां के प्रिय चिकत्स्क बने।
, हाकिम मसीहा अल मुल्क शिराजी -प्रसिद्ध आँख चिकित्स्क व सर्जन हुए हैं। डरा सिकोह का व्यक्तिगत चिकित्क भी रहे। हाकिम शिराजी ने शाहजहां हेतु ‘अल्फाज – उल -अडविया ‘ ( चिकित्सा शब्दार्थ, १६२८-२९ ) लिखी जिसका अनुवाद अंग्रेजी में भी हुआ।
हाकिम मुसम्मत सती अल -निसा – एक महिला चिकित्स्क थीं। मुमताज महल की व्यक्तिगत सहायक भी थी व मृत्यु १६४६ में हुयी।
हाकिम हादिक भी शाहजहां की राजसभा में चिकत्स्क थे जिनकी मृत्यु १६५८ में मानी जाती है।
बादशाह औरंगजेब के शासन काल में भी यूनानी औषधि तंत्र में विकास हुआ। औरंगजेब ने कई औषधालय , शरबतआलाय खुलवाए। औरंगजेब की राजसभा में निम्न प्रमुख यूनानी चिकित्स्क थे –
हकीम अद -अल -रजक मशरब इस्फ़हान से औरंगजेब की सभा में आया था।
हकीम मुहमद अमिन शिराजी प्रसिद्ध हकीम था और उसका बड़ा सम्मान था।
हकीम अलवाई खान का जन्म शिराज में हुआ था और 1700 ई में औरंगजेब की सभासद में सम्मलिता हुआ।
हकीम शेख शिराजी औरंगजेब के समय भारत में आया था और औरंगजेब पुत्र शाह आजम खान काल में प्रसिद्धि पायी।
हकीम दाऊद इस्फ़हान से औरंजेब काल में आया था व शाह अब्बास की राजसभा में प्रमुख सभासद व चिकित्स्क था।
फ़्रांसिसी चिकित्स्क जो पहले दारा सिकोह का व्यक्तिगत चिकित्स्क था बाद में औरंगजेब की सभा में चिकित्स्क रहा।
नरुल हक सिरहिंदी ने प्लेग विषय पर ‘ऐनल हयात ‘ पोथी रची।
चिकित्स्क मुहम्मद अकबर अरजानी (सत्रहवीं सदी अंत -अट्ठारहवीं सड़े प्रारंभिक काल ) ने तेरहवीं सदी की जुब्बुद्दीन समरकंदी की चिकत्सा पोथी का अनुवाद किया और कुनुन्चा की औषधि पुस्तक पर टीका लिखी। अरजानी ने कई अन्य पुस्तक भी लिखीं जैसे -तिब्ब -ए -अकबर , मीजान -ए तिब्ब ,क़ुरबुद्दीन -ए -कादरी , मुफ़रीह -अल -क़ुतुब , मुजरब्बत -ए -अकबरी , हुदूद -ए -अमराज , तिब्ब -ए -हिंदी
काजी मुहम्मद आरिफ ने तिब्ब -ए -काजी आरिफ ‘पोथी की रचना की।
सत्रहवीं सदी में रचित आयुर्वेद निघण्टु
निघण्टु अर्थात चिकत्सा शब्दकोश।
सत्रहवीं सदी में निम्न आयुर्वेदिक निघंटुओं की रचना हुईं –
लोलिम्बराज कृत -वैद्यवातम्सा अथवा वैद्य जीवन
केशव का कल्पद्रिकोष
त्रिमलभट्ट का द्रव्यगुण शतक व द्रव्य दीपिका
सूर्य कृत चूड़ामणि निघण्टु
माधवकारा कृत पर्यायरत्नावली
हरिचरण सेन कृत पर्यायमुक्तावली जो पर्यायरत्नावली का परिमार्जित ग्रंथ लगता है
भारत में अन्य भाषाओँ में आयुर्वेद पर गन्थ रचे जा रहे थे जैसे पंद्रहवीं सदी में आचार्य बल्लभाचार्य ने तेलगु भाषा व संस्कृत में वैद्यचिंतामणि गंथ की रचना की। वैद्य्लोलिम्ब राज की वैद्य जीवन ग्रन्थ भी महत्वपूर्ण है।
जो भी निघण्टु रचनाकारों के शिष्य हरिद्वार या उत्तराखंड यात्रा पर आये होंगे उस समय की ज्ञान आदान प्रदान पद्धति अनुसार आयुर्वेद का ज्ञान गढ़वाल -कुमाऊं आ रहा था। यूनानी औषधियों का प्रचार कुमाऊं या गढ़वाल में कितना था का अभी तक कोई संदर्भ नहीं मिल पाया है।
सलाण अर्थात दक्षिण गढ़वाल में गुज्जरों द्वारा मंदिर मूर्ति भंजन की दसियों लोक कथाएं विद्यमान है जैसे गोदेश्वर ढांगू , दावोली देवी मंदिर मूर्ति भंजन आदि जो अनुमान लगवाता है कि रोहिल्ले नजीबाबाद से आकर लूट मचाते थे। इस लेखक को यूनानी औषधि हेतु सलाण से कोई लोक कथा नहीं मिली।
यह सर्वविज्ञ है कि यूनानी चिकत्सा पद्धति भारत में सातवीं आठवीं सदी में आ गयी थीं किन्तु विकास मुगल काल में ही हुआ।
अनुमान लगाया जा सकता है कि भाभर , तराई क्षेत्र में रोहिलाओं का प्रभाव पड़ा ही था तो हो सकता है इन क्षेत्रों में यूनानी दवाओं का आगमन भी हुया होगा। यह भी सत्य है कि हरिद्वार व भाभर ट्राई , उधम सिंह नगर के कुछ क्षेत्रों में ही आज भी यूनानी औषधियों का प्रचलन है पहाड़ों में यूनानी औषधियों का प्रचलन आज भी पहाड़ों में नहीं है।
उत्तराखंड में आयुर्वेद में चंद व शाह काल में कोई अन्वेषण नहीं किये गए यह सत्य है।