Medical Tourism in Duleram Shah and Naktrani Period -3
( शाह काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -42
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
मानशाह के बाद कुछ समय गढ़वाल पर दुले रामशाह का शासन रहा। दुले राम शाह वस्त्रप्रेमी व मनोरंजन प्रेमी था। लगता है उसने बाहर से कुछ मुसलमान दर्जी श्रीनगर में बसाये होंगे। श्रीनगर में तवायफों को भी आसरा दिया होगा।
महीपति शाह (1631 -1635 ) ने राज्य सीमावृधि में रूचि ली। बनारसी दस तुंवर, लोदी रिखोला, माधो सिंह भंडारी , दोस्तबेग मुगल जैसे सेनापति महीपति शाह की सेना में थे।
महीपति ने तिब्बत (दाबा ) पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में बर्त्वाल बंधु शहीद हुए थे। माधो सिंह भंडारी ने सीमारेखांकन हेतु तिबत सीमा पर चबूतरे निर्मित किये थे।
लोदी रिखोला के नेतृत्व में सिरमौर युद्ध जीता और सीमारेखांकन हेतु चबूतरे निर्मित किये।
माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में बशेर (उत्तरी हिमांचल ) पर आक्रमण हुआ जिसमे माधो सिंह भंडारी शहीद हुआ । मलेथा की कूल का निर्माण भी इसी काल में हुआ।
महीपति शाह को चित्तभ्रान्ति
कुम्भ मेला आने पर (संभवतः अर्ध कुम्भ या ) पर महीपति शाह भरत मंदिर ऋषिकेश पंहुचा और मन व्याकुल स्थिति में उसने भरत मूर्ति की आँखें निकलवा दी। हरिद्वार पंहुचने पर महीपति शाह ने 500 अस्त्र -शस्त्र से सुसज्जित नागा साधुओं की हत्त्या करवा दी। कहा जाता है कि महीपति शाह ने प्रायश्चित हेतु कुमाऊं पर आक्रमण किया था।
बाह्य सैनिकों को आश्रय
महीपति शाह का सेनानायक बनारसी दास तुंवर था व उसकी सेना में कई तुंवर सैनिक भी थे । महीपति शाह का चौथा सेनापति दोस्तबेग मुगल था। सेनानायक बनारसी दस तुंवर व दोस्तबेग संकेत देते हैं कि गढ़वाली शासक बाह्य सैनिकों को महत्व देते थे और गढ़वाल सेना में या थोकदारों के यहां मैदानों से सैनिक आजीविका पर्यटन हेतु गढ़वाल आते रहते थे।
नकट्टी राणी (1635 -1640 )
महीपति शाह की मृत्यु समय उसका पुत्र पृथ्वीपति शाह अवयस्क था। नाककट्टी राणी को कुछ समय तक शासन चलना पड़ा। शाहजहां के सेनापति ने दून भाभर पर आक्रमण कर दून क्षेत्र छीन लिया। शाहजहां के सेनापति नजाबबत खान ने गढ़वाल पर पूर्वी गंगा से आक्रमण किया और ढांग गढ़ के जमींदार या राजा के आदमियों ने उसे हिंवल ही हिंवल नजीबाबाद भागने को मजबूर किया। फिर दून प्रदेश को पुनः प्राप्ति हुयी।
नाथ गुरु
शिलालेखों से ज्ञात होता है कि इस काल में हंसनाथ व प्रभात नाथ दो नाथ गुरु बड़े प्रभावशाली गुरु थे। प्रभात नाथ ने सत्यनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
हरिद्वार में कुम्भ मेला
मोहसिन खान ने दाबेस्तान -ए -मजहब में उल्लेख किया है कि हरिद्वार में नागाओं के मध्य 1640 ई में भयंकर लड़ाई हुयी थी। गणित अनुसार यह साल कुम्भ का बैठता है। कुम्भ के पश्चात यात्री बद्रीनाथ यात्रा पर निकलते ही थे।
शाहजहां काल के यूनानी चिकित्सक
शाहजहां युग यूनानी चिकत्सा का स्वर्ण युग था। शाहजहां काल के मुख्य यूनानी चिकत्स्कों में हकीम मुहम्मद गिलानी ,हकीम अल दीन अहमद गिलानी , हकीम दाऊद तकरब खान ,हकीम मसीहा अल मुल्क शिराजी ,हकीम मुसामत सती अल मूसा , हकीम हार्दिक प्रसिद्ध थे।
शाहजहां काल में देश के कई शहरों में दवाखाने खोले गए थे। हरिद्वार रुड़की क्षेत्र में में दवाखाना खुले थे या नहीं इस पर कोई रिकॉर्ड नहीं मिलते हैं।
शाहजहां काल में चावड़ी बजार में सरकारी दवाखाना खोला गया जिसमे यात्रियों व विद्यार्थियों का उपचार व उन्हें औषधि दीं जाती थीं।
शाहजहां ने गरीबों के लिए अहमदाबाद में दारु शैफ खोला था।
शाहजहां व उससे पहले औषधि प्रशिक्षण का भी प्रबंध किया गया था जहां यूनानी चिकित्सा की शिक्षा दी जाती थी। शासकीय चिकित्स्क बनने से पहले परीक्षा ली जाती थी।
यूनानी दवाओं का भारतीयकरण व भारतीय औषधि का यूनानी संस्करण
अकबर से शाहजहां काल तक अधिकतर प्रमुख चिकित्स्क ईरान के प्रशिक्षित थे और उन्हें भारतीय आयुर्वेद का व भारत में उपलब्ध वनस्पति , खनिज व जीवों का ज्ञान नहीं था। किन्तु हकीमों ने अध्ययन व प्रयोग कर यूनानी औषधि विज्ञान का भारतीयकरण किया।
आयुर्वेद व यूनानी चिकित्सा प्रतियोगिता
मुगल काल में यूनानी औषधि विज्ञान को राजकीय संरक्षण मिलने व प्रचार प्रसार आयुर्वेद को झकझोर दिया। यूनानी चिकत्सा के साथ प्रतियोगिता ने आयुर्वेदाचार्यों को चहुं दिशा देखने की आवश्यकता पड़ गयी। योग , सिद्धों के योग व आयुर्वेद के मध्य संश्लेषण का काल भी सत्रहवीं सदी है। शैव्य सिद्ध योग ज्ञान से आयुर्विज्ञान में नाड़ी विज्ञान को नई दृष्टि मिली। शैव्य योग विज्ञान व आयुर्वेद में संश्लेषण दक्षिण में प्रारम्भ हुआ जो बाद में उत्तर में आया। श्रीरंगधर संहिता , नाड़ी विज्ञान व नाड़ी चक्र ग्रंथ इसी काल की देन है। यूनानी हकीमों से भी आयुर्वेदाचार्यों ने नाड़ी गिनने व निष्कर्ष निकालना सीखा व आयुर्वेद में जोड़ा। आयुर्वेद में खनिज जैसे स्वर्णभष्म , रजतभष्म , पारा मिलना तो क्रांतिकारी सिद्ध हुए। ( G.Jan Meulenbeld, 1999,2000, A History of Indian Medical Literature 5 volumes, कुल 4020 पृष्ठ )
नए आयुर्वेद अविष्कारों का उत्तराखंड पंहुचना
मुगल काल में यद्यपि आयुर्वेद को शासकीय परिश्रय नहीं मिला किन्तु समाज में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता व संस्कृत विद्वानों के बल पर आयुर्वेद कुछ ना कुछ प्रगति करत जा रहा था। सलहवीं सत्तरहवीं सदी में औषधि निघंटुओं की रचना इस बात का द्योतक है कि आयुर्वेद विकसित हो रहा था।
नए नए अविष्कार किस तरह से उत्तराखंड पंहुच रहे थे पर खोज बाकी है। कुछ निम्न आकलन लग सकते हैं –
बद्रीनाथ -केदारनाथ रवालों के साथ आयुर्वेद चिकित्सक अवश्य रहे होंगे उन्होंने गढ़वाल के चिकित्स्कों को ज्ञान आदान प्रदान किया होगा।
देवप्रयाग में दक्षिण से पंडे बस रहे थे तो उनमे से कई औषधि ग्यानी भी रहे होंगे।
शासकों के पास भेंट आदि के लिए विद्वान् पंहुचते रहते थे , उनमे कई ओषधि ग्यानी भी अवश्य रहे होंगे जिन्होंने उत्तराखंड में ज्ञान दिया होगा।
भारत के अन्य भागों से हर समय ब्रह्मणों का पलायन हो रहा था गढ़वाल -कुमाऊं में बस रहे थे। उनमे से बहुत से वैद भी रहे होंगे जो कुछ न कुछ नया ज्ञान लेकर आये ही होंगे।
कुमाऊं व गढ़वाल से अधिकारी बादशाहों से मिलने आगरा व दिल्ली आते जाते रहे थे तो औषधि ज्ञान भी लाये ही होंगे।
कुमाऊं और गढ़वाल शासक बाह्य सैनिकों को महत्व देते थे तो वे सैनिक भी कई तरह के औषधि ज्ञान लाते ही रहे होंगे।
धार्मिक यात्रियों में जो औषधि ग्यानी रहे होंगे उनसे भी ज्ञान मिला होगा।
धार्मिक अनुष्ठान हेतु हरिद्वार में विद्वानों का आना जाना लगा रहता था तो उत्तराखंड के विद्वानों को यहां भी नव ज्ञान प्राप्त हुआ होगा।
बनारस आदि स्थानों में शिक्षा से नव ज्ञान प्राप्त भी हुआ होगा।
नाथ , सिद्धों के भ्रमण से भी चिकत्सा ज्ञान आता रहा होगा।
औषधि , वनस्पति विक्रेताओं द्वारा भी कई किस्म के ज्ञान का आदान प्रदान हुआ होगा।
आयुर्वेद ज्ञान का का अरबी व फ़ारसी में अनुवाद
आठवीं सदी से आयुर्वेद का ज्ञान पश्चिम में प्रसारित होने लगा था और कतिपय पश्चिम एशियाई औषधि साहित्य में कई आयुर्वेद औषधियों का वर्णन मिलता है (वर्मा ,इंडो अरब रिलेसन इन मेडिकल साइंस ). पैगंबर के समय भारत से अदरक निर्यात होता था।
फैब्रिजिओ (2009 ) ने अपने लेख ‘द सर्कुलेशन ऑफ आयुर्वेद नॉलेज इन इंडो पर्सियन लिटरेचर ‘ में आयुर्वेद का अरबी -फ़ारसी में अनुवाद का पूरा वृत्तांत दिया है।