गढ़वालीरंगमंच विकासमें नाट्य शिल्पियों का योगदान श्रृंखला -12
संकलन – भीष्म कुकरेती
जीत सिंह नेगी के बिना आधुनिक गढ़वाली नाटकों पर चर्चा हो ही नहीं सकती। उनका गढ़वाली रंगमंच विकास में योगदान अमूल्य से अमूल्यतम है।
जन्म 2 फरवरी 1916
जन्म स्थान अयाल गाँव, पौड़ी गढ़वाल जिला, उत्तराखंड
पिता का नाम सुल्तान सिंह नेगी
माता का नाम रूपदेवी नेगी
गोलोकवास -21 जून, 2020, धर्मपुर, देहरादून
नेगी जी उस दौर में उत्तराखण्ड के ऐसे पहले लोक गायक थे, जिनका एलपी रिकार्ड ( ग्रामोफोन ) 1949 में बन गया था. उस समय ऐसे रिकार्ड हिन्दी गानों व फिल्म के गीतों के ही बनते थे. लोक संगीत में एलपी रिकार्ड बनना एक तरह से अनोखी घटना थी. इससे पता चलता है कि नेगी जी का गायन उस दौर में कितना उच्च कोटि का रहा होगा. गढ़वाली लोकगीतों को एक नई पहचान देने वाले जीत सिंह नेगी का जन्म 2 फरवरी 1927 को पौड़ी जिले के पट्टी पैडल्स्यूँ के गॉव अयाल में हुआ था. उनकी मॉ का नाम रुप देवी नेगी और पिता का नाम सुल्तान सिंह नेगी था. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा कण्डारा ( पौड़ी ) के बेसिक स्कूल से पूरी की. उनके पिता चूँकी समय ब्रिटिश सेना में थे और वे म्यामार ( तब बर्मा ) में तैनात थे. पॉचवी तक की शिक्षा गॉव में ही ग्रहण करने के बाद उनके पिता उन्हें अपने साथ म्यामार ले गए और उन्होंने मिडिल तक की शिक्षा मेमियो ( म्यामार ) से पूरी की. उसके बाद उनके पिता का तबादला लाहौर हो गया और उन्होंने मैट्रिक की शिक्षा जुगल किशोर पब्लिक स्कूल, लाहौर से पूरी की. बाद में वे फिर इपने गॉव चले गए और जीत सिंह नेगी ने पौड़ी के गवरमेंट कॉलेज से इंटर मीडिएट पास किया.
उनके गीत /संगीत की यात्रा 1949 में शुरु हुई, जब उनके 6 गीतों की रिकार्डिंग ” यंग इंडिया ग्रामोफोन कम्पनी ” ने रिकार्ड किए. जो बाद में एचएमवी कहलाती थी. इस तरह नेगी जी पहले गढ़वाली लोकगायक बने, जिनके गीतों की सबसे पहले ग्रामोफोन रिकार्डिंग हुई. -पहले गढ़वाली लोकगीतकार, 1949 में जिनके छह गीत यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने रिकार्ड किए. बाद में एंजेल न्यू रिकॉर्डिंग कंपनी ने भी उनके कुछ गीत रिकार्ड किए. उनके पहले ग्रामोफोन के गीत उस समय लोगों में बहुत प्रचलित हुए और नेगी जी रातों – रात एक उम्दा लोकगायक के तौर पर स्थापित हो गए. वह एक ऐसा दौर भी था, जब प्रवास में रहने वाले गढ़वाल के सम्पन्न लोग गढ़वाली गीतों को सुनने या ऐसे कार्यक्रमों में जाना ठीक नहीं समझते थे. एक तरह से कहें तो उनमें एक तरह का हीनता बोध था. पर नेगी जी ने गढ़वाली गीतों को नए धुन और अपनी मीठी आवाज में गाना प्रारम्भ किया तो प्रवास के लोग भी उनके गाए गीतों को सुनने लगे और वे नेगी जी के आवाज की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे.
गढ़वाली नाटकों में बहुमूल्य योगदान
स्वतंत्रता उपरान्त जीतसिंघ नेगी ने ही गढ़वाली नाटक व मनोरजन कार्यकर्मों की नीव रखी।
उन्हें जितना लगाव गीत / संगीत से था, उतना ही लगाव अभिनय से भी था. इसी कारण उन्होंने कई नाटक भी लिखे और उनका निर्देशन व मंचन भी किया. जिनमें माधो सिंह भण्डारी के जीवन पर आधारित ” मलेथा की गूल “, भारी भूल, राजू पोस्टमैन, रामी बौराणी, जीतू बगडवाल आदि प्रसिद्ध हैं. भारी भूल उनका पहला नाटक था.
गढ़वाली नाटक इतिहासकार डा सुधारानी ने लिखा कि जीत सिंह नेगी के इन नाटकों के मंचन व सफलता से प्रेरित हो ललित मोहन थपलियाल गढ़वाली नाट्य संसार में आये व उन्होंने कई विस्मर्णीय नाटक रचे व मंचित किये। (गढ़वाल की जीवित विभूतियाँ )
उनके गीतों के संग्रह की पुस्तकों में गीत गंगा, जौंल मंगरी, छम घुंघरू बाजला शामिल हैं. उनका एक खुदेड़ गीत ” हे दर्जी दिदा मेरा अंगणी बणें द्या ” बहुत ही लोकप्रिय हुआ. जिसे बाद में गढ़वाली गायिका रेखा धस्माना उनियाल ने भी गाया. वह भी बहुत चर्चित हुआ. उनका गीत तू ह्वेली बीरा मुंबई के भांडुप स्थान में रात्रि ११ बजे रचा था जो बाद में लोक गीत माना जाने लगा।
उन्होंने बम्बई में मूवी इंडिया की फिल्म ” खलीफा ” में 1949 में और मून आर्ट पिक्चर की फिल्म ” चौदहवीं रात ” में सहायक निर्देशन के तौर पर भी काम कार्य किया. नेशनल ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी में भी सहायक संगीत निर्देशक रहे.
मुम्बई में यदि गढ़वाली कार्यक्रम मंचन होता है तो उसका श्रेय जित सिंह नेगी जी को ही जाता है। भारी भूल , रामी बौराणी , राजू पोस्टमैन आदि नाटकों का मंचन मुम्बई में हुआ व मुम्बई में नाट्य प्रेमी दर्शकों का समाज पैदा किया।
जीत सिंह नेगी के निर्देशन में 1954-55 में दिल्ली में आयोजित गढ़वाली नाटक ‘भारी भूल’ के मंचन में मनोहर कांत धस्माना मुख्य भूमिका में नजर आए थे।
Cultural Activities
1942- Started cultural programs, staging dramas, and singing programs in Pauri city
1954: Worked as assistant director in Khalifa and Chaudaheen Rat (Hindustani Movies) in Mumbai
1954: He worked as Deputy Music Director in the National Gramophone Company, Mumbai
1955 : First Garhwali Song Batch Singer in Akashvani Delhi
1955 ; Directed cultural program in Raghumal Arya Girls School, Delhi
1955: Lead the cultural show before Chinese Foreign delegates in Kanpur
1955-56: was connected with cultural programs of Sarswati Maha Vidyalaya Delhi
1955: Sung Garhwal land reform related progressive songs at Garhwali progressive front conference in Delhi
1956, Lead the Garhwali Cultural Team for participating in Parvteeya Lok Geet program , Delhi, inaugurated by Indian Home minister Govind Ballabh Pant
1956: Participated and sung in Buddha Jayanti program in Lansdown
1956; All India tour for organizing Garhwali musical and cultural programs in many cities
1956: Uttarapradesh lok Sahitya Sameeti Lucknow recorded those songs which were created sung and provided music by him only
HMV Mumbai recorded his song (music by him) in 1956 and 1964
1957: Participated and lead the singers and Garhwali cultural team in the program of Uttar Pradesh Suchana Vibhag and Lok Sahitya samitee, Lucknow
1957: Participated in first Greesma kalin festival, Lainsdown
1960-He represented and led the Garhwali cultural team in participating in historical Viraat Sanskrit Sammelan Dehradun and later, Negi Ji on became secretary of this organization
1962-He organized and participated with zeal in Parvatiya Sanskritik Sammelan
Trained the child artists for participating as Garhwali performers for collecting money for Rashtriya Surakhsa Kosh through Harijan Sevak Sangh Dehradun
1964-Organized a famous Garhwali cultural show for arijan Sevak Sangh in Shrinagar Garhwal
1966- Led the Garhwali cultural team for participating in cultural program of Garhwal Bhratri Mandal Mumbai
1970- Member of the organizing body of Sharad Utsav Mussoorie
1972-Led the cultural team of Dehradun for Garhwal Sabha Moradabad
1976- Trained the local Mumbai performing team for the cultural show of Garhwal Bhratri Mandal Mumbai. In Garhwali society, this is a historic moment when local performers Mumbaikars came out on the stage
1979- Led the cultural team at the occasion of the inauguration of the Door Darshan TV tower in Mussorie
1979-Particpated by staging a cultural program in Central Defence Account Sahtabdi celebration, Dehradun
1979-led the Garhwali cultural team for Sharadotsava in Mussorie
1980-Staged a Garhwali cultural show in Chandigarh for Garhwal sabha
Organized piratical Kala Manch Dehradun and staged four Garhwali cultural shows in that year
1982-Staged a cultural show in Chandigarh
Selected secretary of piratical kala manch
1986 Presided Garhwali Kavi Sammelan Kanpur
1987 led the Garhwali cultural team for participating in Uttar Madhya Sanskrit sammelan of Government of India in Allahabad
One of the organizer of cultural program in Rashtriya Drishtibadharth sans than Dehradun
रचनाएं (गढ़वाली में)
प्रकाशित
गीत गंगा, जौंल मगरी, छम घुंघुरू बाजला (गीत संग्रह), मलेथा की कूल (गीत नाटिका), भारी भूल (सामाजिक नाटक)
अप्रकाशित
जीतू बगड्वाल (नाटक मंचन हुआ ) और रामी ( मंचित हुआ है , गीत नाटिका), पतिव्रता रामी (हिंदी नाटक), राजू पोस्टमैन ( गढ़वाली में मंचित एकांकी हिंदी रूपातंर)
गढ़वाली सिनेमा में योगदान
‘मेरी प्यारी ब्वै’ के संवाद और गीत लिखे
एलबम में योगदान
रवांई की राजुला
सम्मान
लोकरत्न (1962), गढ़ रत्न (1990),
दूनरत्न (1995), मील का पत्थर (1999), मोहन उप्रेती लोक संस्कृति पुरस्कार (2000), डॉ. शिवानंद नौटियाल स्मृति सम्मान (2011)
नेगी जी ने देहरादून के धर्मपुर स्थित अपने आवास पर इंतिम सॉस ली. उस समय उनके पास पत्नी मनोरमा नेगी, बेटा ललित मोहन नेगी और बहू थे. उनकी एक बेटी मधु नेगी दिल्ली में और दूसरी बेटी मंजू नेगी फरीदाबाद में हैं. बहुआयामी प्रतिभा वाले गीतकार, गायक, कवि, निर्देशक व रंगमंच के कलाकार जीत सिंह नेगी को उत्तराखण्ड के लोक गीत/संगीत में हमेशा याद रखा जाएगा.