गढ़वाली नाटक नाट्य शिल्पी श्रृंखला – 3
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संकलन – भीष्म कुकरेती
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आचार्य कृष्णा नंद नौटियाल का नाम गढ़वाली नाटकों में योगदान हेतु सदा स्मरणीय रहेगा। गढ़वाली नाटकों को खुले मंच में भव्य ढंग से मंचन पवाण लगाने व लोक नाटकों को भव्यता व आधुनिकता देने में आचार्य नौटियाल को सदा यद् किया जायेगा।
उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
पिता का नाम -स्व० श्री महिधर नौटियाल.
माता का नाम-स्व०श्रीमती माहेश्वरी देवी.
जन्मतिथि-13 अप्रैल 1957
जन्म स्थान- पितृछाया निकेतन,
ग्राम व पोस्ट- गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग) उत्तराखण्ड,
पिन- 246439
शिक्षा -एम ए- (हिंदी-संस्कृत) साहित्याचार्य, डीपीएड. (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, शासकीय सेवा से)
साहित्यिक अभिरुचि एवं लेखन–
हिन्दी-गढ़वाली कविताएं, लघु कथा, लघु फिल्म, लोक नाटकायें, लोक महानाट्य,
अभिनय- 6(छः) वर्ष की आयु में अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाटक में शकुन्तला-पुत्र भरत के अभिनय से रंगमंच का शुभारम्भ. बाद के दिनों में रामलीला के अंतर्गत भरत, सीता, श्रीराम, दशरथ, जनक आदि पात्रों का अभिनय. विद्यालय एवं विश्वविद्यालय के मंचों पर अभिनय. महानाट्यों में आचार्य द्रौण एवं लघु फिल्मों में प्रधान जी,समाजसेवी आदि का अभिनय.
विशिष्ट -लेखन-वर्ष 1994 में उत्तराखण्ड की केदारघाटी में मंचित होने वाले लोक महानाट्य चक्रव्यूह का गढ़वाली में लेखन और चक्रव्यूह महानाट्य का अखिल गढ़वाल सभा-देहरादून द्वारा आयोजित कौथिक -95 में 25 फरवरी 1995 को स्वयं के लेखन एवं निर्देशन में पहला मंचन.
कमलव्यूह महानाट्य महाभारत युद्ध के 14 दिन, जयद्रथ की रक्षा के लिए आचार्य द्रोण द्वारा रचित, महाभारत युद्ध के सबसे बड़े और महाविकट व्यूह कमलव्यूह का वर्ष 2009 – 10 में गढ़वाली-लेखन एवं 25 जनवरी 2010 को स्वयं के निर्देशन में गुप्तकाशी में पहला मंचन.
मकरव्यूह- महाभारत युद्ध के 16 दिन उस दिन के सेनापति महारथी कर्ण द्वारा अर्जुन को पराजित करने के उद्देश्य से रचित मकरव्यूह महानाट्य का वर्ष 2016 में लेखन एवं 3 अक्टूबर 2016 को स्वयं के निर्देशन में नागनाथ पोखरी में पहला मंचन.
विन्दुव्यूह(जलाशय व्यूह)–
महाभारत युद्ध के 18 वें दिन स्वयं की रक्षा के लिए जिस जलबिंदु के अंदर दुर्योधन ने अपना बचाव सुनिश्चित किया था, उस विन्दुव्यूह में श्री कृष्ण, अर्जुन,भीम एवं दुर्योधन के मध्य संपादित होने वाले संवाद, भीम दुर्योधन के युद्ध, भीम द्वारा दुर्योधन की जंघा पर प्रहार और महाभारत युद्ध की समाप्ति की घोषणा पर आधारित विन्दुव्यूह का लेखन पूर्ण हो चुका है। इसका मंचन पारंपरिक रूप से केदारघाटी में हाथि-दुर्जोध के नाम से होता आया है।अत: विन्दुव्यूह (हाथि-दुर्जोध) के नाम से इसका मंचन शीघ्र ही प्रस्तावित है।
साहित्य लेखन के लिए लगभग 40 से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित.
महानाट्यों के लेखन,निर्देशन के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली के साथ-साथ विभिन्न नाट्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित.
माता का नाम-स्व०श्रीमती माहेश्वरी देवी.
जन्मतिथि-13 अप्रैल 1957
जन्म स्थान- पितृछाया निकेतन,
ग्राम व पोस्ट- गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग) उत्तराखण्ड,
पिन- 246439
शिक्षा -एम ए- (हिंदी-संस्कृत) साहित्याचार्य, डीपीएड. (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, शासकीय सेवा से)
साहित्यिक अभिरुचि एवं लेखन–
हिन्दी-गढ़वाली कविताएं, लघु कथा, लघु फिल्म, लोक नाटकायें, लोक महानाट्य,
अभिनय- 6(छः) वर्ष की आयु में अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाटक में शकुन्तला-पुत्र भरत के अभिनय से रंगमंच का शुभारम्भ. बाद के दिनों में रामलीला के अंतर्गत भरत, सीता, श्रीराम, दशरथ, जनक आदि पात्रों का अभिनय. विद्यालय एवं विश्वविद्यालय के मंचों पर अभिनय. महानाट्यों में आचार्य द्रौण एवं लघु फिल्मों में प्रधान जी,समाजसेवी आदि का अभिनय.
विशिष्ट -लेखन-वर्ष 1994 में उत्तराखण्ड की केदारघाटी में मंचित होने वाले लोक महानाट्य चक्रव्यूह का गढ़वाली में लेखन और चक्रव्यूह महानाट्य का अखिल गढ़वाल सभा-देहरादून द्वारा आयोजित कौथिक -95 में 25 फरवरी 1995 को स्वयं के लेखन एवं निर्देशन में पहला मंचन.
कमलव्यूह महानाट्य महाभारत युद्ध के 14 दिन, जयद्रथ की रक्षा के लिए आचार्य द्रोण द्वारा रचित, महाभारत युद्ध के सबसे बड़े और महाविकट व्यूह कमलव्यूह का वर्ष 2009 – 10 में गढ़वाली-लेखन एवं 25 जनवरी 2010 को स्वयं के निर्देशन में गुप्तकाशी में पहला मंचन.
मकरव्यूह- महाभारत युद्ध के 16 दिन उस दिन के सेनापति महारथी कर्ण द्वारा अर्जुन को पराजित करने के उद्देश्य से रचित मकरव्यूह महानाट्य का वर्ष 2016 में लेखन एवं 3 अक्टूबर 2016 को स्वयं के निर्देशन में नागनाथ पोखरी में पहला मंचन.
विन्दुव्यूह(जलाशय व्यूह)–
महाभारत युद्ध के 18 वें दिन स्वयं की रक्षा के लिए जिस जलबिंदु के अंदर दुर्योधन ने अपना बचाव सुनिश्चित किया था, उस विन्दुव्यूह में श्री कृष्ण, अर्जुन,भीम एवं दुर्योधन के मध्य संपादित होने वाले संवाद, भीम दुर्योधन के युद्ध, भीम द्वारा दुर्योधन की जंघा पर प्रहार और महाभारत युद्ध की समाप्ति की घोषणा पर आधारित विन्दुव्यूह का लेखन पूर्ण हो चुका है। इसका मंचन पारंपरिक रूप से केदारघाटी में हाथि-दुर्जोध के नाम से होता आया है।अत: विन्दुव्यूह (हाथि-दुर्जोध) के नाम से इसका मंचन शीघ्र ही प्रस्तावित है।
साहित्य लेखन के लिए लगभग 40 से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित.
महानाट्यों के लेखन,निर्देशन के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली के साथ-साथ विभिन्न नाट्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित.