Edited by : Bhishm Kukreti
संज्ञा की भांति कुमाउंनी में विशेषण दो वचनों व लिंगो से प्रयुक्त होते हैं
कुमाउंनी में विशेषण निम्न प्रकार से पाए जाते हैं
१- गुणवाचक विशेषण
२- प्रणाली वाचक विशेषण
३-परिमाण वाचक विशेषण
४-संख्यावाचक विशेषण
५- सार्वनामिक विशेषण
कुछ विशेषण रूपान्तरयुक्त होते हैं व शेष रूपांतर मुक्त होते हैं
१- कुमाउंनी में गुणवाचक विशेषण
१ अ- रूपांतरमुक्त गुण वाचक विशेषण
रूपांतरमुक्त गुण वाचक विशेषण मूल प्रतिवादक व व्युत्पुन प्रतिपादक दोनों होते हैं
मूल प्रतिपादक रुपंतारमुक्त गुण वाचक विशेषण : मूल प्रतिपादक गुण वाचक विशेषण अधिकतर व्यंजनान्त तथा लिंग-वचन से अप्रभावित होते हैं
दक्ष (चतुर )
च्ल्लाक (चालाक )
शुन्दर (सुन्दर)
व्युत्पन्न प्रतिपादक रुपंतारमुक्त गुण वाचक विशेषण
गुलिया (मीठा)
मरियल ( दुर्बल )
१ब- रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण
रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण लिंग व वचन अनुसार परिवर्तित होते हैं
1 रूपांतरयुक्त गुण वाचक विशेषण में पुल्लिंग एकवचन अविकारी कारक में ओ (उड़- निको, शारो ) , पुल्लिंग बहुवचन में आ ( निका, शारो ) , तथा स्त्रीलिंग में इ (निकी, शारी ) जुड़ता है
१स- गुणवाचक विशेषण की तीन अवस्थाएं
१- सामान्य – निको (अच्छा)
२- अधिक्य वोधक- वी है निको (उससे अच्छा)
३-अतिशय वोधक – शब् है निको (सबसे अच्छा )
२- कुमाउंनी में प्रणाली वाचक विशेषण
कुमाउंनी में प्रणाली वाचक विशेषण में दो प्रकार के विशेषण होते हैं
१- पुल्लिंग प्रणाली वाचक विशेषण – पुल्लिंग प्रणाली वाचक विशेषण के रूप एक वचन व कारको के अनुसार व्यवहार करते हैं
पुल्लिंग एक वचन में इस प्रकर के विशेषणों में अंत में -ओ तथा बहुवचन में -आ प्रत्यय लगता है . जैसे
इशा (ऐसा), इशा (ऐसे);
उशो (वैसा) , कशो
उशा (वैसा) , कशा
२- स्त्रीलिंग प्रणाली वाचक विशेषण – स्त्रीलिंग प्रणाली वाचक विशेषण दोनों वचनों व कारकों में अपरिवर्तित रहते हैं
इशी (ऐसी)
उशी (वैसी)
कशी (कैसी)
३- कुमाउनी में परिमाण वाचक विशेषण
कुमाउनी में परिमाण वाचक विशेषण दो प्रकार के पाए जाते हैं
३ अ पुल्लिंग परिमाण वाचक विशेषण
३ ब – स्त्रीलिंग परिमाण वाचक विशेषण- स्त्रीलिंग परिमाण वाचक विशेषण मूल प्रतिपादक के अतिरिक्त व्युत्पन्न प्रतिपादक भी है
मूल प्रतिपादक परिमाण वाचक विशेषण – शब , कम, भौत
व्युत्पन्न प्रतिपादक परिमाण वाचक विशेषण –
अत्थ्वे (पूरा का पूरा) ,
शप्पै (सब के सब )
मनें (थोड़ा ), मणि (थोडा ) आदि .
इस प्रकार के विशेषण रूपान्तर मुक्त हैं . किन्तु रूपान्तर युक्त परिमाण वाचक विशेषण में लिंग, वचन व कारक के अनुसार परिवर्तन का विधान है .यथा
इतनो (इतना )
इतना (इतने )
इतुनी (इतनी )
उतुनो (उतना )
उतुना (उतने )
उतनी (उतनी )
४- कुमाउनी में संख्या वाचक विशेषण
संख्या वाचक विशेषण के दो भेद हैं
४अ- अनिश्चित वाचक संख्या वाचक विशेषण – गणनात्मक संख्यावाचक विशेषण के साथ विशेषण व्युत्पादक पर प्रत्यय लगाकर अनिश्चय संख्या वाचक विशेषण की प्राप्ति होती है
शैकड़ों
एकाध
दशेक
शौएक
कुमाउंनी में कभी कभी गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण की जगह संज्ञा का प्रयोग होता है . जैसे
बर्शेक
दिनेक
कुछ केवालात्मक विशेषण भी संख्या वाचक विशेषण की कोटो में पाए जाते हैं . यथा
एकोलो-दुकोलो
एकाला-दुकाला
इकली- दुकली
४ब- निश्चय संख्या वाचक विशेषण
निश्चय संख्या वाचक विशेषण सात कोटि के होते हैं १- गणना वाचक, २- क्रम वाचक विशेषण , ३- गुणात्मक वोधक , ४- समूह वोधक, ५- ५- प्रत्येक बोधक ६-ऋणात्मक बोधक ७- केवालात्मक
१- गणना वाचक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
गणना वाचक निश्चय संख्या वाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं
१अ -पूर्णांक बोधक : पूर्णांक बोधक दो प्रकार के होते हैं
क- मूल प्रतिपादक – एक, द्वी, तीन. चार, पाँच, छै शात
ख- व्युत्पन्न – उन्नीश , उन्तीश , द्वी शौ, दश हजार
१ब- अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण – अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण दो प्रकर के होते हैं
ब क- मूल प्रतिपादक
पौ
आद्धा
पौन
शवा
डेढ़
बख- व्युत्पन्न अपूर्णांक वोधक गणना वाचक विशेषण
पौनेद्वी
शवाद्वी
शाढ़े तीन
२- क्रम वाचक विशेषण
क्रम वाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं
२अ- रूपांतर उक्त क्रम वाचक विशेषण
पैञलि (पहली ) ,पैञलो (पहला ),पैञला (पहले )
दुशरि, दुशोरी , दुशारा
तिशरि , तिशोरी, तिशारा
चौथि , चौथो, चौथे
२ब् रूपान्तर मुक्त क्रम वाचक विशेषण
रूपान्तर मुक्त कर्म वाचक विशेषण मे पाञ्च के बाद कर्म द्योतक विशेषणों मे कर्म द्योतक पर-प्रत्यय के रूप मे ऊँ रहता है व दोनों लिंगों, कारकों व वचनों में अपरिवर्तित रहता है
पंचुं
छयुं
शतुं
अठुं
नवुं
दशुं
शौउं
हजारूं
३- गुणात्मकता वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
गुणात्मकता वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण में पूर्णांक गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण के साथ गुणात्मकता बोधक प्रत्यय -गुन तथा लिंग वचन द्योतक प्रत्यय -ओ (पुल्लिंग एक वचन) , -आ, (पुल्लिंग बहुवचन ) तथा -इ (स्त्रीलिंग) संलग्न रहते हैं .
दुगुनो, दुगुना ,दुगुनि
तिगुनो,तिगुना, तिगुनि
स्त्रीलिंग एक वचन व बहुवचन में एक रूप होता है और -इ प्रत्यय ही रहता है
४- समूह वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
पूर्णांक गणनात्मक संख्या वाचक विशेषण के साथ प्रत्यय -ऐ तथा ऊँ जोड़ने से समूह वोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण रूप बनता है
दिय्यै
तिन्नें (न्न + ऐं )
पचाशें
द्शुं
बीशुं
५- प्रत्येक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
५- प्रत्येक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण में कुछ मूल प्रतिपादक हैं तथा शेष व्युत्पन्न प्रतिपादक हैं
मूल प्रतिपादक – हर (प्रत्येक) , हर मैश (प्रत्येक व्यक्ति )
व्युत्पन्न प्रतिपादक – पूर्णांक गणनात्मक वाचक विशेषणों की द्विरुक्ति से व्युत्पन्न प्रतिपादक बनते हैं – एकेक, चार- चार
अपुर्नात्मक गन्ना वाचकों की द्विरुक्ति से भी ब्युत्पन्न प्रतिपादन बनते हैं – आधा -आधा , पौवा -पौवा
६- ऋणात्मक बोधक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
इस प्रकार के विशेषणों दो गणनात्मक संख्या वाचक विशेषणों के मध्य काम लगाने से बनते हैं . यथा द्विकम पचाश, पांच कम शौ
७- केवालात्मक निश्चय संख्या वाचक विशेषण
केव्लात्मक विशेषण दो प्रकार के होते हैं
रूपांतर युक्त – एकोलो , एकाला , एकली
रूपांतर मुक्त – इन विशेषणों के साथ -ऐ प्रत्यय जुड़ा होता है पर समूह बोधक से भिन्न भी है जैसे -एक्कै (केवल एक ), द्विय्ये (केवल दो), तिन्नैं
विशेषण रूप सारिणी
चूँकि विशेषणों के लिंग बोधक पर प्रत्यय विशेष्य के लिंग बोधक पर प्रत्ययों के अनुसार रुपतारिंत होते हैं इसलिए रूपांतरणो पर वाक्य स्तर पर विचार किया जाता है.
१- ओकारांत संज्ञाओं की भांति ही वाक्यन्तार्गत ओकारांत विशेषण सर्वत्र पुल्लिंग बोधक होते हैं
२- इकारांत विशेषण सर्वत्र स्त्रीलिंग होते हैं
३- व्यंजनान्त पुल्लिंग संज्ञाएँ एकवचन में -ओ तथा बहुवचन में – आ प्रत्यय्युक्त विशेषणों द्वारा पुर्वगामित होती हैं
४- आकारांत , एकारांत तथा ऐकारांत संज्ञाओं (दोनों लिंग) के विशेषणों में पुल्लिंग में -ओ व आ और स्त्रीलिंग में -इ हो जाते हैं
५- यद्यपि बहुत थोड़ी ही पुल्लिंग संज्ञाएँ इकारांत होती हैं इस प्रकार की इकारांत संज्ञाओं के विशेषण में अन्त्य -ओ व -आ पुल्लिंग में होता है
६- -उ, -ए, -औ अन्त्य्युक्त संज्ञाएँ जो केवल पुल्लिंग होती हैं इनके साथ भी विशेषणों में – एकवचन -ओ तथा बहुवचन में -आ रहता है
प्रातिपदिक मूल——-एक वच.पु.———-बहु .वच.पु. ————- स्त्रीलिंग , एक.बच, तथा बहु.वच.
काल ——————-कालो —————काला ———————-कालि
नान———————नानो —————–नाना ———————-नानि
निक ———————-निको ————निका ————————निकि
७- पुल्लिंग ओकारांत , इकारांत, उकारांत , इकारांत , ऐकारांत , औकारांत संज्ञाओं के पूर्व विशेषण ओकारांत रहते हैं
८- पुल्लिंग बहुवचन में आकारान्त तथा स्त्रीलिंग दोनों वचनों में व्यंजनान्त आकारान्त, एकारांत, ऐकारांत, तथा ऐकारांत संज्ञाओं के पूर्व विशेषण इकारांत होते हैं
निकि बात
निको घर
ठुलि माला
ठुलो ब्याला
नानि चेलि
नानो आदिम
काचो आरू
ठुलो चौबे
नानि मै
निको दै
ठुलि शै
पाको केलो
मंदों द्यौ
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि —
कुमाउनी में विशेषणों के पुल्लिंग व स्त्रीलिंग संज्ञाओं के साथ रूपान्तर युक्त आबद्ध रूपों -ओ, -आ, (क्रमश: पुल्लिंग व स्त्रीलिंग एक वचन व बहुबचन ) एवम -इ (स्त्रिलिन्ग एक वचन में ) से युक्त होते हैं
विशेषण लिंग बोधक रूपिम
{-ओ} – विशेषण पुल्लिंग बोधक रूपिम के दो रूप होते हैं -ओ व -आ
क- -ओ : विशेषण पुल्लिंग बोधक ; एक वचन ओकारांत विशेषण के अन्त्य रूप में आता है
कालो
नानो
शारो
ख- – आ: विशेषण पुल्लिंग बोधक अन्त्य रूप में अन्यत्र आता है
श्याता
ठुला
चुकिला
क्यारा
{-इ} – इ विशेषण स्त्रीबोधक है . इ केवल स्त्रीबोधक है जो स्त्रीवाचक विशेषणों में अन्त्य रूप में अन्यत्र आता है
ठुलि
निकि
कालि
शारि
विशेषण , वचन व कारक रूप
कुमाउंनी में वचन, प्रत्ययों का लिंग वाचकों से सम्बन्ध होता है
१- अविकारी करक में -ओ युक्त प्रत्यय एक वचन का बोधक है , यथा निको और -आ प्रत्यय युक्त बहुवचन का बोधक है , यथा निका
२- -इ प्रत्यय लिंग निर्णय स सम्बंद्ध है और एक वचन व बहुवचन दोनों में समरूप प्रयुक्त होता है , यथा निकि
लुप्त विशेषणों में कारक
विशेषण प्रातिपदिक ——————————
——————————
ओकारांत —————————–
इकारांत ——————————
उदहारण
——————————
——————————
——————————
——————————
प्रतिपादक ——————————
निको ————————-एक वचन ——————–बहुवचन
कर्ता कारक (ले)—————निकाले ——————–निकानले
कर्मकारक (आश )———-निकाश ——————-निकान
करण ———————-निकाक्पि
सम्प्रदान —————–निकाखिन——
अपादान ——————–निकाबटे —————-निकानबटे
छटी ————————-निका
अधिकरण ——————निका ——————–निकान में
सम्बन्ध ——————–निक-आ ! —————निकौ !
इसी प्रकार व्यंजनान्त विकारी बहु वचन में ऊन के पश्चात् कारक परसर्ग जुड़ते हैं
ञ = अनुस्वरीक बिंदु
संदर्भ :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल
३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून
५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून
७- श्री एम्’एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत
९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० – भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल
११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल