मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन- Part 3
सम्पादन : भीष्म कुकरेती
१- व्यक्तिवाचक संज्ञायें:
अबोध बंधु बहुगुणा अनुसार गढ़वाली में व्यक्तिवाचक संज्ञाए प्राय: किसी आधार को लिए होती हैं . यथा
अ- कोई शिशु जिस मास , मौसम, परिस्थिति या समय में पैदा होता है तो उसका नाम उसी अनुसार रखा जाता है, जैसे –
महीने के अनुसार नाम :-चैतु, बैशाखू,जिठवा, असाडु, सौणा, भद्वा, कतिकु , फगुण्या
वार अनुसार ; स्वांरु , मंगल़ू , मगला नन्द , बुधि सिंह/बुद्धू आदि
मौसमअनुसार नाम : हिंवां
शारीर बनावट अनुसार नाम ; पुन्वां, डंफ़्वा, डंफा
शारीरिक आचरण/प्रकृति अनुसार – मुताडु, हगाड़ू, हुकमु , उजलू, काळया, भूर्या, भूरी गौड़ी , चौंरी (गाय का नाम ) आदि
यद्यपि प्राचीन समय में जातियों के नाम से जाती का पता चलता था जैसे रामप्रसाद, राम सिंह, या राम दास जाती सूचक नाम थे. अब नाम जाति सूचक कम पाए जाते हैं
नेपाल की श्रीमती शकुंतला देवी व भरत सिंग व कुमाऊं की श्रीमती हीरा देवी की बातचीत से पता चलता है कि नेपाल व कुमाऊं में भी नाम रखने का संस्कार नेपाल व कुमाऊं में गढ़वाली जैसे ही था
२- जातिवाचक संज्ञाएँ :
जिन शब्दों से एक प्रकार के प्रत्येक पदार्थ का बोध हो उसे जाती वाचक संज्ञां कहते हैं . गढ़वाल में अन्य बहुत से क्षेत्रों की तरह जातिवाचक संज्ञाएँ स्थान से सम्बन्धित भी है जैसे थापली से थपलियाळ , पोखरी से पोखरियाळ.
यथार्थवाची जाती वाचक संज्ञाएँ – जैसे भरोई, भुर्त्या , मुंडखा ९पेद के ताने को काटने के बाद जमीं के अन्दर वाला भाग ना ही तना है ना ही जड़ इसलिए उसे मुंडखा (मुंड खंडित ), कुंडको (धान की लवाई के बाद कुंडलित ढेर ), अपनाई (हुक्के की नली, याने पानी ल़े जाने वाली नली )
३- भाववाचक संज्ञायें :
जिन शब्दों से गुण दशा, या व्यापर का बोध होता है . आण, आली, ळी आदि प्रत्यय लगाने से इस प्रकार की संज्ञाएँ बन जाती है
भाववाचक संज्ञाएँ बनाने के उदाहरण
१- जातिवाचक संज्ञाएँ ——————————
पंडित ——————————
दुस्मन ——————————
छोकरा/छुकरा ——————————
मौ ——————————
भै ——————————
हल्दु ——————————
२- सर्वनाम ——————————
अपणो————————–
३-विशेषण ——————————
मूर्ख ——————————
लाटो ——————————
काचो————————–
गिजगिजो———————–
चकडैत ——————————
कडु /कड़ो ——————————
निवतु————————-
चचगार————————-
४-क्रिया ——————————
हिटणो————————-
बर्जण————————-
झुन्नो (झुरण/णो )—————————–
मरोड़नी————————
५-अव्यय ——————————
बराबर ——————————
ढीस ——————————
उंदी /उन्दों ——————————
अबोध बंधु लिखते हैं – बिखल़ाण , परज, कतोल़ा-कतोळ, पाण, गाणी, स्याणी, जकबक , टंटा,रौंका-धौंकी, खैरी , क ळकळी, रगुड़ात, फिरड़ाफिरड़ी, गब्दाट आदि भाववाचक शब्द गढवाली में विशेष हैं
गढ़वाली भाषा में लिंग विधान
हिंदी की भांति गढ़वाली में दो लिंग होते हैं . यद्यपि बहुगुणा व रजनी कुकरेती उभय लिंग की भी वकालात करते हैं.
१- एक ही वस्तु का समय, काल, वर्ग (प्यार में, गुस्से में आकार में ) लिंग परिवर्तन विधान
स्त्रीलिंग ——————————
गौड़ी (लघु इ ) ——————————
आंखि————————–
ओंठडि (ड़+ लघु इ ) ——————————
भूज्जि————————
बंठी ——————————
थकुलि ——————————
२- पुल्लिंग से स्त्रीलिंग परिवर्तन विधान
२अ- पुल्लिंग अकारांत, इकारांत, इकारांत के अ, ए, इ, को हटाकर ‘आण’ .’याण ”, वाण’, प्रत्यय लगाने से
पुल्लिंग———————-
द्यूर ——————————
सेठ ——————————
कजे/कजै ——————————
बामण ——————————
जिठणु ——————————
२ब- अकारांत , आकारांत, उकारांत शब्द से अ, आ, उ हटाकर इ लगाने से पुल्लिंग स्त्रीलिंग में बदल जता है
पुल्लिंग———————-
देव ——————————
दास—————————
बोडा ——————————
काका————————–
घ्वाडा————————
नौनु ——————————
भादु ——————————
भदलु/भद्यल——————–
प्यारु ——————————
कणसु (ऊम्र में छोटा )—————————–
२स – पुल्लिंग शब्दों में अ, इ, ए, को बदलकर ‘एण’ लगाना
पुल्लिंग———————-
नाती ——————————
मनखि (मनुष्य) ——————————
बद्दि (बादी ) ——————————
समदि (समधी )—————————–
कुमै (कुमाउंनी जाती का पुरुष) ———————–कुमैण /कुमैणि
२द – ओकारांत पुल्लिंगी के ओ को इ में परिवर्तन करने से
पुल्लिंग———————-
स्यंटुल़ो ——————————
नौनो ——————————
घोड़ो ——————————
स्याल़ो———————–
छोरो ——————————
२इ- रकारांत में ‘नी’ लगाकर
पुल्लिंग———————-
ग्वेर (ग्वाला) ——————————
सुनार ——————————
मास्टर ——————————
डाक्टर ——————————
३- किन्ही प्राणीवाचक संज्ञाओं में पुल्लिंग व स्त्रीलिंग पृथक पृथक होते हैं
पुल्लिंग———————-
बुबा /बाबा (पिता) ——————————
ढडडू (बिल्ला ) ——————————
डंडवाक् , चुड़ोऊ————————
ब्योला (दुल्हा) ——————————
गदनो (नद ) ——————————
दिदा (भाई ) ——————————
ससुर ——————————
४- वस्तुओं के परिमाण , आकार के अनुसार लिंग भेद भी होता है
पुल्लिंग———————-
चौंरो(चत्वर ०—————————–
दाण/ दाणो ——————————
दाण ( bigger testicle )———————दाणि (smaller testicle )
नाक ——————————
मट्यंळ (बड़ा छलना ), चंल़ू (मध्यम आकार )—– छणि (छलनी)
५- कुछ अप्राणीवाचक संज्ञाए केवल पुल्लिंगी होते हैं
कोदू, झंग्वरु ,
ल़ूण , खौड़ , ब्वान
आम, बेडु, तिमलू
गिलास, चिमटा
६- कुछ अप्राणीवाचक संज्ञाए केवल स्त्रीलिंग होती है
मुंगरी , मसूर, उड़द , चंडी, चूड़ी, हंसुळी , मर्च, हळदि, दै, हैजा
७- कुछ संज्ञाए दोनों लिंगों में एक जैसे रहते है
काखड़, जुंवो, इस्कुल्या, घसेर
८- वो, यो, को, स्यो, जो आदि पुल्लिंग वा, या, क्वा, स्या, ज्व़ा आदि स्त्रीलिंग रूप धारण कर लेती हैं.
किन्तु विकारी रूपों में कभी कभी अंतर आ जाता है यथा – जैन पुल्लिंग जेंन (जै+ ञ + न) व वैन पुल्लिन्ग वींन स्त्रीलिंग में बदल जाता है.
गढ़वाली भाषा वचन विधान
संज्ञा या अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप में उसके वाच्य पदार्थ की संख्या का ज्ञान होता है उसे वचन खते हैं .
हिंदी की भांति गढवाली में भी वचन दो प्रकार के होते हैं- एकवचन व बहुवचन
१- विभक्ति रहित उकारांत , इकारांत ओकारांत पुल्लिंग शब्दों के अन्त्य उ, इ ‘ओ’ को ‘आ’ कर देने से बहुवचन बन जाता है
एकवचन————————-
पुंगड़ो ——————————
ड़ाल़ो————————
कैंटो ——————————
हँसुळी ——————————
बंसथ्वल़ू ——————————
नथुली ——————————
किन्तु कर्मकारक में एक वचन में उनका बहुवचन रूप ही रहता है जैसे ‘तै ठन्गरा घौट)
२- जिन शब्दों के अंत में अ, आ, इ, उ और ओ हो तो उनके रूप प्राय: दोनों वचनों में एक से ही रहते हैं
भेळ , अदाण, परेक, खल्ला, माल़ा, डून्डी, मल्यौ, सलौ
२अ- कुछ अनाज बहुवचन की भांति प्रयोग होते हैं – चौंळ, ग्यूं
२ब- कुछ अनाज जैसे कोदू, मर्सू, झंग्वरु एक वचन जैसे प्रयोग होते हैं isi tarh कुछ dhatuyen एक वचन में प्रयोग hoti
३- इकारांत में इ को ए में बदलने से
एकवचन————————-
दरि—————————
ब्वारी ——————————
कीडि (ड़ ) ——————————
फैडि (सीढ़ी) ——————————
४- उपसर्ग लगाने से वचन परिवर्तन
एकवचन————————-
एक- माबत ——————————
५- आदर सूचक वाक्यों में संज्ञा बहुवचन होते हैं यथा मास्टर जी आणा छन
६- कौंक से कौंका परिवर्तन से एक वचन बहुबचन में बदल जाता है यथा सुदामा कौंक ड़्यार, सुदामा कौंका पुंगडा
७- औरु : औरु शब्द भी वहुवचन द्योतक है – भैजी औरु
८ ‘करौं ‘ शब्द भी बहुवचन द्योतक है जैसे घ्याल़ू करौं .
संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल
३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून
५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून
७- श्री एम्’एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत
९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ