(महाभारत काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) १०
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
महाभारत महकाव्य अनुसार पण्डवों द्वारा राजसूय यज्ञ निहित सैकड़ों देशों को जीतने के बाद चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर ने यज्ञ किया (सभापर्व )
. चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर ने यज्ञ में सम्मलित होने कुलिंद नरेश सुमुख (सुबाहु ) खस , जोहरी, दीर्घ वेणिक , प्रदर , कुलिंद आदि जाति के नायकों को भी आमंत्रण दिया था।
उत्तराखंड राजा सुबाहु ने एक रत्न जड़ित दिव्य शंख दिया था जो अपने आप में अति विशेष था (सभा पर्व 51/ 5से 7 व आगे ) .
राजा दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को सूचना दी कि हिमय राजा अथवा उत्तराखंड के खस , जौहरी , कुलिंद , दीर्घ वेणुक , प्रदर , जौहरी , तंगण , परतंगण जातियों के नायकों ने चींटियों द्वारा निकाले स्वर्ण चूर्ण (दूण के दूण थैलों में भर कर ) युधिष्ठिर को भेंट दिए। (सभापर्व 52 /4 -6 )
दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को यह भी बताया कि उपरोक्त नायक सुंदर काले चंवर व स्वेत चामर , हिमालयी पुष्पों से उत्तपन स्वादिस्ट मधु भी प्रचुर मात्रा में लाये थे। उत्तर कुरु देश से गंगाजल और कई रत्न लाये थे। दुर्योधन ने अपन पिता को आगे सूचित किया कि उन्होंने उत्तर कैलास से प्राप्त अतीव बल सम्पन औषधि व अन्य पदार्थ भी भेंट के लिए लाये थे
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उत्तरादपि कैलासादोषधी: सुममहाबला। … (सभापर्व 52 , 5 -7 )
वास्तव में दुर्योधन ने यह बातें धृतराष्ट्र को ईर्ष्या बस कहीं कि उत्तराखंड के विभिन्न नायकों ने , गंगाजल , मधु , महाबल सम्पन ओषधियाँ आदि वस्तुएं युधिष्ठिर को भेंट में दीं।
हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि दुर्योधन -युधिष्ठिर काल में मैदानों में प्रभावयुक्त माहबली हिमालयी औषधियां दुर्लभ थीं और तभी एक राजा इन औषधियों का वर्णन इतनी तल्लीनता से करता पाया गया है।
सभा पर्व के वर्णन से साफ़ है कि गंगाजल का भी दुर्योधन -युधिष्ठिर काल में बड़ा महत्व था।
हिमालयी वनस्पतियों के फूलों से विशेष शहद की भी मैदानों में विशेष छवि व मांग थी। शहद केवल मीठे के लिए ही उपयुक्त न था अपितु औषधि निर्माण व चिकित्सा उपचार में हिमालयी शहद का बड़ा महत्व था।
दुर्योधन ने हिमालयी औषधियों को एक विशेष नाम दिया है – ‘ कैलासादोषधी: सुममहाबला’ । या तो दुर्योधन ने यह नाम दिया है या उत्तराखंडी औषधियों की ख्याति ‘ कैलासादोषधी: सुममहाबला’ नाम से जन में प्रचलित थी ।
सभापर्व में उत्तराखंड के कुलिंद राजा सुमुख (सुबाहु) द्वारा शंख भेंट व अन्य नायकों द्वारा औषधि समेत अनेक तरह की भेंट आज की परिस्थिति में स्थान छविकरण (प्लेस ब्रैंडिंग ) में प्रासंगिक हैं। सभापर्व के इस प्रकरण से साफ पता चलता है कि उत्तराखंड की औषधि प्रसिद्ध थीं व इनका निर्यात भी होता था। औषधि निर्यात या चिकित्सा निर्यात भी मेडिकल टूरिज्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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राजनैयिक विशेष उपहार का औचित्य स्थान छविकरण /प्लेस ब्रैंडिंग हेतु आवश्यक है
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प्लेस ब्रैंडिंग में राजनायकों द्वारा दूसरे राजनायकों को अपने स्थान की विशेष उपहार वास्तव में राजनैतिक चातुर्य हेतु ही आवश्यक नहीं है अपितु स्थान छविकरण , स्थान छविवर्धन या प्लेस ब्रैंडिंग के लिए भी अत्त्यावस्यक है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में विभिन्न देशों से सैकड़ों शीर्ष राजनैयिक उपस्थित थे। हिमालयी नायकों द्वारा गंगाजल , शहद व महाबली औषधियों का उपहार देकर उन नायकों ने हिमालयी औषधि अथवा हिमालयी चिकित्सा का समुचित प्रचार प्रसार किया। प्लेस ब्रैंडिंग में भी प्रभावशाली व्यक्तियों को स्थान विशेष वस्तु उपहार प्लेस ब्रिंग हेतु कई प्रकार के लाभ पंहुचाता है। प्रभावशाली को दी गयी भेंट से वर्ड – ऑफ़ -माउथ पब्लिसिटी का लाभ मिलता है।
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उपहार देने में नाटकीयता आवश्यक है
महाभारत के सभापर्व के इस प्रकरण में दुर्योधन द्वारा उत्तराखंडी औषधियों व अन्य उपहारों का इस तरह से वणर्न करता है कि जैसे सभा में उत्तराखंडी नायकों ने उपहार देते समय उच्च सौम्य नाटक किया थे कि दुर्योधन को हर पल का वर्णन धृतराष्ट्र से करना पड़ा। उच्च -सौम्य नाटक प्लेस ब्रैंडिंग के लिए एक आवश्य्क अवयव है। उपहार देते समय हाइ ड्रामा किन्तु सफोस्टीकेटेड ड्रामा आवश्यक है।
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पत्रकार अथवा लेखकों को स्थान वस्तु की सूचना व्यवस्था
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महाभारत दुर्योधन या युधिष्ठिर ने नहीं रचा अपितु लेखकों द्वारा रचा गया था। यदि इन रचनाकारों (विभिन्न व्यास जिन्होंने महाभारत की रचना की ) को उत्तराखंड की औषधियों के बारे में सूचना नहीं होती तो वे व्यास उत्तराखंड की औषधियों का वणर्न करते ही नहीं। इसलिए उस समय भी और आज भी स्थान छविकरण’प्लेस ब्रैंडिंग हेतु यह आवश्यक है कि लेखकों , सम्पादकों व पत्रकारों को स्थान की विशेष वस्तुओं की पूरी सूचना का प्रबंध हो।