लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
—
दुष्यंत -शकुंतला प्रकरण के बारे में सर्व प्रथम विवरणमहाभारत के आदिपर्व में मिलता है। दुष्यंत को इक्ष्वाकु वंश के सगर से दो तीन पीढ़ी बाद का राजा माना जाता है और जिसकी रजधानी आसंदीवत (हस्तिनापुर क्षेत्र ) थी। दुष्यंत के राज में कहा गया है कि किसी को रोग व्याधि नहीं थी (आदि पर्व 68 /6 -10 ) . इससे पता चलता है कि उस काल में रोग , निरोग , व्याधि व चिकित्सा के प्रति लोग संवेदन शील थे। राजा दुष्यंत आखेट हेतु कण्वाश्रम (भाभर से अजमेर -हरिद्वार तक ) आया था।
आश्रम याने चिकित्सा वार्ता केंद्र
शकुंतला -दुष्यंत प्रकरण में उत्तराखंड कण्वाश्रम , विश्वामित्र आश्रम का व्रर्णन है. उस समय आयुर्वेद की पहचान अलग विज्ञान में नहीं होती थी अपितु सभी ज्ञान मिश्रित थे। आश्रमों में कई ज्ञानों -विज्ञानों पर वार्ता व शास्त्रार्थ होते थे। उनमे अवश्य ही रोग चिकित्सा पर भी वार्ताएं व शास्त्रार्थ होते ही होंगे। चिकित्सा पर वार्ता व शास्त्रार्थ का सीधा अर्थ है चिकित्सा के प्रति जागरूकता। आश्रमों में कई अन्य स्थानों से पंडित व ऋषि आते थे। इसका अर्थ भी सीधा है कि मेडिकल विषय पर कॉनफ़्रेंस। मेडिकल कॉन्फ्रेंस से जनता में शरीर , व्यवहार विज्ञान , सामाजिक विज्ञान , चिकित्सा के प्रति संवेदनशीलता विकसित होती है तो वार्ताओं से चिकित्सा (मानसिक , व्यवहार विज्ञान , शरीर शास्त्र आदि ) विज्ञान ज्ञान का आदान प्रदान सिद्धि होती है. उत्तराखंड में आश्रमों के होने का अर्थ है कि चिकित्सा ज्ञान का आदान प्रदान। दुष्यंत या अन्य ऋषि जब उत्तराखंड आये होंगे तो यह निश्चित है कि आगंतुकों हेतु चिकित्सा व्यवस्था व वैद या विशेषज्ञ भी उत्तराखंड में उपलब्ध रहे होंगे। मेडिकल टूरिज्म कैसे रहा होगा इसकी हमें कल्पना करनी होगी।
बलशाली भरत का जन्म व लालन पोषण
महाभारत के आदिपर्व (74 /126, 74 /304 ) व फिर शतपथ ब्राह्मण 13 /5 /4 ; 13 /11 /13 ) में शकुंतला -दुष्यंत पुत्र महा बलशाली भरत का वणर्न मिलता है जिसका जन्म कण्वाश्रम में हुआ और चक्रवर्ती सम्राट बना व भरत के नाम से जम्बूद्वीप का नाम भारत पड़ा। आदि पर्व में उल्लेख है कि दुष्यंत पुत्र शकुंतला के गर्भ में तीन साल तक रहा। और वह जन्म से ही इतना बलशाली था कि उसका शरीर स्वस्थ , सुडौल शरीर गठन परिपक्व मनुष्य जैसे था। तीन साल गर्भ में रहने पर वाद विवाद इतिहासकार व चिकित्सा शास्त्री करते रहेंगे। जहां तक मेडिकल साइंस , सोशल साइंस व मेडिकल टूरिज्म का प्रश्न है -महाभारत का यह प्रकरण कई संदेश देता है। गर्भवस्था में महिला का पालन पोषण अच्छी तरह से होना चाहिए जिससे कि स्वस्थ बच्चे पैदा हों। जिस समाज में स्वस्थ बच्चे पैदा होंगे उस समाज में हर तरह की सम्पनता आती है।
फिर आदि पर्व में ही उल्लेख है कि कण्वाश्रम में ही भरत के लालन पोषण ऐसा हुआ कि बालक सर्वदमन छः वर्ष में ही वह बालक शेर की सवारी कर सकता था. बारह वर्ष की अवस्था में ऋषियों की सहायता से बालक सर्वदमन समस्त शास्त्रों व वेदों का ज्ञाता बन चुका था। पैरेंटिंग का सुंदर उदाहरण यहां मिलता है। मेडिकल टूरिज्म आकांक्षियों व समाज शास्त्रियों हेतु सीधा संदेस है कि बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास हेतु माता- पिता व समाज को पूरा इन्वॉल्व होना आवश्यक है।
भारद्वाज आश्रम
गंगा तट पर गंगाद्वार (आज का हरिद्वार ) में भारद्वाज का आश्रम भी था जिनका पुत्र द्रोण हुआ। महाभारत में द्रोण का जन्म द्रोणी (कलस ) से हुआ कहा गया है ( लगता है तब टेस्ट ट्यूब बेबी की विचारधारा ने जन्म ले लिया था ) (आदि पर्व 129 -33 -38 ) . याने उत्तराखंड में इस क्षेत्र में भी चिकित्सा विज्ञान पर वार्ताएं व चिकित्सा ज्ञान का आदान प्रदान हुआ ही होगा। याने चिकित्सा विज्ञान के ज्ञान का आदान प्रदान से आम जनता में भी मडिकल नॉलेज फैला ही हुआ होगा। जनता के मध्य मेडिकल नॉलेज अवश्य ही मेडिकल टूरिज्म को बड़ा बल देता है या उत्प्रेरक का काम देता है।