प्रश्नवाचक सासु जंवै संवाद (ननि नाटिका)
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(ननि ननि नाटिका श्रृंखला)
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नौटंकी – भीष्म कुकरेती
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सासु – ये मेरी ब्वे ! ये जंवै जी ! तुम इथगा बिंडी दिनों उपरान्त ससुराल अयां छा तो कुछ विशेष भोजन पकाण पोड़ल कि ना ?
जंवै – इथगा व्याकुल होणो आवश्यकता नी। कुछ बि.
सासु – इन कन बुनै छा। बेटि बि आयीं हूंद तुमर दगड़म तो चिंता नि छे। स्या इ तुम से पूछी पकाई लेंदी। अच्छा फाणू पकायी द्यूं ?
जंवै – भलो भलो फाणु बि चौलल।
सासु – चौलल ? अर्थात मन मारिक खैल्या ?
जंवै – ना ना फाणु मि तै भल लगद।
सासु – भल लगद कि स्वादिष्ट लगद ?
जंवै – स्वादिष्ट।
सासु – अर्थात भल नि लगद।
जंवै – न्है न्है। जब स्वादिस्ट लगद त भल बि लगद।
सासु – औ यु तो भलो च कि तुम तैं फाणु स्वादिस्ट बि लगद अर भल बि लगद। उन भल लगण अर स्वादिस्ट लगण म तुमर अनुसार क्या अंतर हूंद ?
जंवै – स्वादिस्ट अर्थात जिव व मन तै तृप्ति। अर भल लगण जु स्वास्थ्य अनुसार बि सही हो।
सासु – जनकि ?
जंवै – जनकि … जनकि … जनकि शराब ! पीण म आनंददायी किन्तु समाज व शरीर दृष्टि से सही ना।
सासु – तुम शराब बि पीण लग गेवां ? तुमर ससुर तरां तुम बि ?
जंवै – ह्यां ! मीन उदारण दे।
सासु – तब भलो च। मीन समज तुम ससुर क प्रभाव म आयिक शराबी ह्वे गेवां।
जंवै – ना ना।
सासु – तो फाणु चौलल ?
जंवै – हां।
सासु – भलो अबि फाणु अर स्याम कुण तुराणी।
जंवै – ठीक च
सासु – अच्छा फाणु क्यांक ?
जंवै – जो बि तुम तैं भल लगद सि बि मैं भल लगल।
सासु – तो भट्ट भिगायी द्यूं ?
जंवै – ना ना भट्ट क फाणु ? ना।
सासु – पर तुमन किलै ब्वाल ?
जंवै – तुमर मन रखणो बान।
सासु – चलो गहथ भिगायी द्यूं ? या मूंग भिगाइ द्यूं ?
जंवै – ठीक च गहथ इ।
सासु – अच्छा फाणुम पकोड़ी मनोकूल राल या पटूड़ी ?
जंवै – पटूड़ी चल जाल।
सासु – किन्तु पटूड़ी पकाणम मैं औसंद बि आंद अर पटूड़ी टूट बि जांदन।
जंवै – तो पकोड़ी चल जाल।
सासु – तुम पर तुमर ससुर जी को पूरो प्रभाव पड़ गे। विकल्प तैयार। पकोड़ी ! किन्तु मि तैं उचित नि लगणु कि मि जंवै कुण गहथ क पकोड़ी पकाऊं। उड़द क पकोड़ी तो उचित किन्तु गहथ की पको !
जंवै – रण द्यावो पकोड़ी सकोड़ी रण द्यावो। बिन पकोड़ी , बिन पटूड़ी क इ फाणु पकाई ल्यावो।
सासु – भलो भलो। अच्छा फाणुम सागक पत्ता सत्ता बि डळण ?
जंवै – हां ! हां ! पत्ता डाळ द्यावो।
सासु – औ , भलो , भलो ! अच्छा ! क्यांक पत्ता ? राई क पत्ता ? पळिंग ? मूळा क पत्ता या लया क पत्ता या प्याज क पत्ता ?
जंवै – प्याजक पत्ता बि चल जाल।
सासु – पर अजकाल प्याजक मौसम कख च ?
जंवै – तो राई , लया क पत्ता बि चल जाल निथर मूळाक पत्ता बि। या पळिंग इ सै।
सासु – किन्तु तुम जणदा इ छा हमर गाँव म पळिंग जमदो इ नी।
जंवै – तो राइ , मूळा या लया इ सै।
सासु – यूँ तीनों मदे तुम तै सबसे भल क्या लगद ?
जंवै – तिनि भल लगदन।
सासु – किन्तु म्यार सग्वड़ म हरो पत्तो वळ भुज्जी कुछ नी। मीन तो अल्लू बुयां छन। ह्यां ! अल्लू क थिंच्वणि पकाई द्यूं ?
जंवै – किन्तु घर म एक दाणी बि अल्लू नी।
सासु – अल्लू , हरा पत्ता मंगणो मि जै सकुद गाँव म किन्तु सब महिला में से जळदा छन कि मि तर्क भौत करदो, देखि भाज जांदन । अरे हां ! मि खाणो चक्कर म बिसरि ग्यों पुछद कि तुम अचाणचक किलै ?
जंवै – ससुर जी …
सासु – कनो तुमर ससुर जीक स्वास्थ्य भल नी ? अवश्य ही मेरी बेटी न ध्यान नि दे होलु।
जंवै – ना ना स्वास्थ्य तो भल च।
सासु – तो ?
जंवै – वु सुचणा छन कि वापस ऐ जावन।
सासु – कब बिटेन सुचण शुरू कार ?
जंवै – हूं ! हूं ! चार वर्ष बिटेन।
सासु – अर्थात जब बिटेन घर छोड़ि बेटि घर गेन ?
जंवै – हां ! हां।
सासु – पर आयी जला तो पुनः ऊंको रूण शुरू ह्वे जाल मि प्रश्नों की झड़ी लगाई दींदो।
जंवै – अच्छा अब मि चलदो छौं।
सासु – भोजन ?
जंवै – मि अपर दीदी क गाँव बिटेन जान्दो तखि खै ल्योलु।
सासु – अपर ध्यान रखिन। तुमर दीदी क घर म फाणु पकदो च कि ना ?
जंवै – तखि पुछलु।