भोजन पर्यटन के कुछ उदाहरण
Examples of Food Tourism
भोजन पर्यटन विकास -3
Food /Culinary Tourism Development 3
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना – 389
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -389
आलेख – विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती
कभी कभी सामन्य पर्यटन व भोजन पर्यटन एक दूसरे से इस तरह मिल जाते हैं कि निखालिस भोजन पर्यटन को सामन्य पर्यटन से अलग करना कठिन हो जाता है। बिखोत मेले में जाया जाता था गंगा स्नान हेतु किन्तु ध्यान होता था जलेबियों व रिस्तेदार द्वारा लाये गए स्वाळ भूडों पर। गेंद मेला देख कर आया यात्री गेन के बारे में कम छ्वीं लगाता दिखता था अपितु जलेबी , अंदरखी , बूढ़ी के बाल के स्वादों की प्रशंसा अधिक करता था। नव भोजन या सामन्यतया अपने रहने के स्थान में अप्राप्य भोजन की इच्छा से भी पर्यटन किया जाता था जो सामन्य धर्मी , मेला पर्यटन भी था व भोजन पर्यटन भी।
आलू प्याज खरीदने दूसरे गाँव जाना भी भोजन पर्यटन उदाहरण है
उत्तराखंड के पहाड़ी गावों की विशेषता है कि एक ही छोटे क्षेत्र में जल या मिट्टी उपलब्धि के कारण अलग अलग गाँवों में विशेष फसल या सब्जी होती हैं। आलू प्याज वहीँ होता था जहां स्यारों में प्रचुर जल उपलब्ध हो। जब एक गाँव निवासी आलू , प्याज , दाल, पौध , बीज क्रय हेतु दूसरे गाँव जाते हैं तो वह भोजन पर्यटन ही है।
मैदानों में साप्ताहिक हाट आयोजन भी भोजन पर्यटन है
भारत ही नहीं अन्य देशों में कस्बों या शहरों में किसी निश्चित दिन /वार को भोजन /अनाज हाट आज भी लगते हैं। महाराष्ट्र के पुणे शहर में वार के नाम से गलियां या बजार हैं जैसे बुधवार पेठ , गुरूवार पेठ , मंगल पेठ या शनिवार वाड़ा। इन पेठों /बजारों में निश्चित वार को हाट लगता था। इन हाटों में निकटवर्ती या दूरस्थ स्थलों से किसान अपनी फसल , सब्जी , फल , पालतू जंतु जैसे बकरी , बैल , मुर्गियां , अंडे , चकोर , शहद , जंगली सब्जी , जंगली फल , कृषि यंत्र , कृषि सहयोगी वस्तुएं बेचने आते थे व व निकटवर्ती उपभोक्ता अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु आवश्यक वस्तु क्रय करते थे। कुछ काल पहले हाटों का मुख्य उद्देश्य अनाज व सब्जी क्रय विक्रय होता था और अब अन्य वस्तुएं भी क्रय -विक्रय होती हैं। जड़ी बूटी भी क्रय विक्रय होते थे।
मुम्बई में शनिवार को अँधेरी पूर्व में मरोल जे बी नगर मध्य सब्जी बजार लगता है और उपभोक्ता क्रय हेतु आते हैं।
आढ़त सब्जी मंडी तो आधुनिक भोजन पर्यटन का उम्दा उदाहरण है।
राशन दूकान भी भोजन पर्यटन उदाहरण है
कुछ समय पहले भारत में राशन मिलना कठिन थे उत्पादन मांग से कहीं कम था तो सरकारी गल्लों की दुकाने भी कम थी तो जिस गाँव में राशन की दुकान होती थी दूसरे गाँव वाले राशन क्रय हेतु आते थे यह भोजन पर्यटन ही था।
मुंबई के निकट बसई में भोजन पर्यटन
सन 80 लगभग , एक समय था जब चावल , अनाज एक प्रदेश से दूसरे पदेश में लाने हेतु पाबंदी थी। मुंबई में चावल नहीं मिलता था। मुम्बई निकट बसई में चावल की खेती अच्छी होती थी। मुम्बई वासी हर हफ्ते बसई चावल खरीदने बसई जाते थे। ट्रेन में 5 किलो से अधिक चावल नहीं लाया जा सकता था तो परिवार के दो तीन जन चावल खरीदने वसई जाते थे। साथ में बसई से स्थानीय सब्जी भी खरीदते थे। भोजन पर्यटन का अच्छा उदाहरण है। सन 1974 में मेरी बहिन की शादी थी हमारे परिवार वाले लगभग हर सप्ताह बसई से चावल लाने जाते थे। हर बार एकाद सब्जी भी लाते थे।
पहाड़ों में ढाकर
उत्तराखंड के पहाड़ों में लूण -गुड़ , उत्पाद नहीं होता व तेल की भी कमी होती थी। सूती वस्त्र भी अनुपलब्ध थे। तो पहाड़ के लोग स्वतंत्रता या मोटर सड़क अनुपलब्ध तक लूण -गुड़ , तेल , आदि क्रय हेतु दुगड्डा , रामनगर , हल्द्वानी , ऋषिकेश , देहरादून जाते थे। तब पैसों का भी अकाल था तो जाते समय हल्दी , अदरक , मरसु , तैड़ू , शहद , वन खाद्य पदार्थ , वन मसाले व औषधि पादप, रेशे दुग्गड्डा आदि ले जाते थे व बदले में लूण , गुड़ , काली मिर्च , इमली , कृषि यंत्र , लोहा , पीतल आदि मुंड में ढोकर लाते थे। यह ढाकर संस्कृति भोजन पर्यटन का बहुत ही नायब उदाहरण है।