(ननि -ननि नाटिका श्रृंखला, Short Skits )
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नौटंकी – भीष्म कुकरेती
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पात्र
मरदो भ्यूं पड्यूं रावण
राम
लक्ष्मण
बानर-रीछ सेना क कुछ सदस्य
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बानर सेना (उत्साहित ह्वेका ) – रावण वध ह्वे गे। रावण वध ह्वे गे। भगवान राम न रवां वध कौर याल। हमारी जित ह्वे गे।
(कुछ दूर )
राम (लक्ष्मण से ) भुला लक्ष्मण ! देख ! लंकाधिपति क दशा बताणि च कि रावण श्री कुछ समय का इ पौण छन। कुछ इ समय उपरान्त रावण का प्राण सोराग जोग ह्वे जाला।
लक्ष्मण – भैजि ! शत्रु छौ। मरणु च। वैकि चिंता हम क्यांकि करला ?
राम – भुला एक बात कंठ लगैक ध्यान रख। शत्रु तब तक हूंद जब तक जीवित च। मरदो या मर्यूं मनिख शत्रु नि रै जांद वै तैं पुरो सम्मान दिए जांद। सनातन धर्म अनुसार मृत शत्रु की डाह क्रिया वाइको पंथ अनुसार इ करे जाण चयेंद। मृत शत्रु पर ठोकर नि मरण चयेंद व मृत शत्रु की अवमानना, अपमान , तिरस्कार कदापि नि हूण चयेंद।
लक्ष्मण – भैजी ! उचित च हम रावण का अंदर नि करणा छा।
राम – अच्छा ! सूण ! रावण महान विचारक व ज्ञाता बि च तो तुम वै मन कुछ सीख लेकि आ।
लक्ष्मण – हैं ? शत्रु से ज्ञान प्राप्ति ? अर मि ?
राम – ज्ञान लीण म शत्रु , मित्र , आयु , आय व समय -कुसमय क दृष्टि मध्य म नि आण चयेंद।
लक्ष्मण – पर कुछ समय पैल तक हम एक हैंका वास्ता कुबचन बुलणा छा। अर अब मि सीख लीणो जौं
राम – हां ! वर्तमानम रावण श्री से बड़ो ज्ञाता ये जग म नी। वै से बड़ो धनी क्वी राजा महारजा नी। तो ज्ञाता से ज्ञान प्राप्ति म क्वी संसय नि हूण चयेंद।
लक्ष्मण – किन्तु रावण से सीख ?
राम – हां ! जा रावण श्री से सीख लेकि आ।
लक्ष्मण – तुमर आज्ञा शिरोधार्य।
)लक्ष्मण भ्यूं पड्युं रावण का मुंड जिना खड़ हूंद )
लक्ष्मण – हे रावण श्री ! मि तैं ज्ञान दे !
( भ्यूं पड़्युं रावण क शरीर पर क्वी गति नि हूंदी )
लक्ष्मण – हे रावण श्री ! म्यार भैजि न भेज। मि तैं ज्ञान दे !
( भ्यूं पड़्युं रावण क शरीर पर क्वी गति नि हूंदी )
(लक्ष्मण बौड़ी राम का निकट आयी जांद )
लक्ष्मण – भेजी ! रावण अबि बि दर्प या अभिमान से भरपूर च। अभिमान म वु मै तैं ज्ञान नी दीणु च।
राम – रावण श्री का प्रति सम्मान जनक शब्द प्रयोग हूण चएंदन।
लक्ष्मण – हां किन्तु मीन कत्ति समय प्रार्थना कार किन्तु रावण श्री न उत्सुकता इ नि दिखाई।
राम – प्रिय लक्ष्मण ! रावण श्री पिता तुल्य छन , तुम से महा ज्ञानी छन , श्री लंका क महारज छन। त तुम ज्ञान लीणो कखम खड़ा छा ?
लक्ष्मण – रावण श्री क मुंड जिना।
राम – ज्ञान लीणो कुण खुट हूंद या मुंड जिना ?
लक्ष्मण – खुट म शीश।
राम – त अर शिष्य सामान गुरु से शिक्षा ल्यावो।
(लक्ष्मण पुनः रावण का पास जांद। अब भ्यूं पड़्युं रावण क खुटम मुंड धौरद )
लक्ष्मण – हे सरा जग म महा ज्ञानी , महा प्रतापी , शिव भक्तों का मुकुट, महान ब्राह्मण श्रेष्ठ ! मि एक छूट बालक तुम से कुछ शिक्षा की भिक्षा चांदो। शिक्षास्य भिक्षाम देहि ! भिक्षाम देहि !
रावण – हे राम भ्राता ! चिरंजीवी भवः ! शिक्षा ? मरदो समय क्या क्या शिक्षा दे सकदो मि ?
लक्ष्मण – हे शिक्षा भंडार ! जु बि मैकुण सही हो वी एक बात बतै द्यावो।
रावण – हूं। मि अपर समय म सबसे शक्तिशाली व वैभवशाली छौ। मीम इथगा शक्ति छे कि मि जब चांदो तब धरती बिटेन स्वर्ग तक पैड़ी निर्मित कौर सकुद छौ। किन्तु सदा इ आज ना भोळ करलु क अळगस न मि स्वर की पैड़ी निर्मित नि कौर साको अर प्रति दिन गयेळी करणु रौं , भोळ भोळ का चक्कर म गयेळी करदो ग्यों व पैड़ी निर्मित नि ह्वे। जु वर्तमान म स्वर्ग की पैड़ी तो मेकुण मृत्यु इ नि आंदि। भोळ आयी नी। तो यांसे हे प्रिय वत्स क्या सीख ?
लक्ष्मण – मुख्य कार्य म गयेळी कदापि नि करण। भोळ पर क्वी कार्य नि छुड़न किलैकि भोळ कबि आंद इ नी ।
(प्रसन्नता वस् रावण न अपर आँख बंद कर देन )
)लक्ष्मण धीरे धीरे राम जिना आंद। )