उत्तराखंड परिपेक्ष म आधुनिक रसोई यंत्र/उपकरण इतिहास – भाग १
आलेख : भीष्म कुकरेती
मिक्सर ग्रिंडर वास्तव म एक तकनीक नी बल्कण म मिक्सिंग तकनीक (रळाण ) अर ग्रिंडर की मेल च। भारत म 1970 तक मिक्सर ग्रिंडर नाम का क्वी उपकरण इ नि छौ। तब भारत अर उत्तराखंड म बि (मे नि लगद उत्तराखंड म ब्लेंडर बि तब आठ दस से अधिक वर्ष म नि बिकदा रै होला ) ब्लेंडर से इ मिक्सर ग्रिंडर कु कार्य करे जांद छौ पर तन्नि। संभवतया ब्लेंडर (एल्क्ट्रिक रै ) मसूरी , नैनीताल देहरादून म होटलों म प्रयोग हूंद रै होलु 1970 तक। तब ब्लेन्डर भारत म नि निर्माण हूंद छौ ।
मुम्बई म सीमेन्स कम्पनी कु एक इंजीनियर छा ‘श्री सत्य प्रकाश माथुर। ऊंम जर्मनी म बण्यु ब्राउन ब्लेंडर छौ। आज बि ब्लेंडर दही छुळण , चटनी बणान, दाळ छुळण जन जारी हि करदो अर तब बि। श्रीमती माथुर क ब्लेंडर बिगड़ गे छौ अर श्रीमती माथुरन अपण कजै कुण ब्वाल बल ब्लेंडर सुधार द्यावो। मुम्बई म बल ब्राउन ब्लेंडर कु सेवा केंद्र नि छौ। श्री माथुर से ब्लेंडर त नि सुधर किन्तु मस्तिष्क म भारतीय मसाला आदि पिसणो मसीनो विचार आई गे।
1963 म श्री माथुरन सीमेंस का चार इंजीनियरुं दगड़ मीलि अर माथुर श्री न पावर कंट्रोल ऐंड एप्लियंसेज कम्पनी ‘ स्थापित कार।
द्वी वर्षों ऊं इंजीनियरोंन इन मोटर विकसित कर इ दे जु भारतीय मसाला जन कि हल्दी , काली मर्च , धणिया पीस सकद छौ ‘।
1970 म तौंन इन मिक्सर ग्रिंडर विकसित कर द जैक मोटर 500 – 600 वात कु छौ अर आरपीएम छौ २०,०००, जु एक जार कु छौ अर ड्राई अर वेट ग्रिंडिंग (सूखा व तरीदार ) कर सकण म सफल छौ। मिक्सर ग्रिन्डर को ब्रांड नाम सुमित रखे गे जैको संस्कृत म अर्थ हूंद ‘भलो दगड्या’ । अर सुमित इ भारत इ ना संसार कु पैलो मिक्सर ग्रिन्डर छ। नमन श्री सत्य प्रकाश माथुर तैं।
पैल निर्माण भौत न्यून ही छौ। १९८० लगभग ही निर्माणम वृद्धि ह्वे अर संभवतया ५० , ००० मिक्सर मासिक निर्माण तक पौंछ। सद्यनि सुमित महामूल्य मिक्सर राई। उत्तर भारत म सुमित न भौत न्यून ध्यान दे। निर्माण मांग से भौत न्यून छौ तो मिक्सर याने सुमित की मांग दक्षिण भारत अर पश्चिम भारत म अधिक छे किलैकि यूं द्वी क्षेत्रों म इडली डोसा क चौंळ अर दाळ आदि पिसणो शक्तिशाली मोटर वळ मिक्सर चयेंद तो यखी इ मिक्सर की मांग आज भी बिंडी च.
मांग व मिक्सर उपयोग को प्रचार व माहराज सरीखा सस्ता ब्रैंड कु आकलन करे जाव तो उत्तराखंड म सै माने म मिक्सर ग्रिन्डर उत्तराखण्डं म लगभग १९८५ म इ प्रवेश कौर होलु। हाँ तब तक दिल्ली या बढ़ शहरों से लोग मिक्सर लायी होला सया बात अलग। उत्तर भारत म मिक्सर कम वाट का बिकदन कारण उत्तर भारत व पूर्व भारत म चटनी पिसणो कुण इ मिक्सर ग्रिन्डर प्रयोग बिंडी हूंद। अब इडली डोसा क चौंळ पिसणो बि प्रयोग हूंद।
इन लगद सबसे पैल मिक्सर -ग्रिन्डर देहरादून , हरिद्वार अर नैनीताल का दुकानों म इ बिक होला।
भारत जु उद्यम म नेतृत्व प्राप्त करण चांदो तो श्री सत्य प्रकाश सरीखा अन्वेषक वळ भारतियो आवश्यकता च। नमन श्री सत्य प्रकाश माथुर तै। –
उत्तराखंड में इलेक्ट्रिक फ्रूट ज्यूस एक्सट्रैक्टर / फल रस निष्कासक का इतिहास
उत्तराखंडम केनस्टारन इ इलेक्ट्रिक फ्रूट ज्यूस एक्सट्रैक्टर से सबसे पैल परिचय कराई
उत्तराखंड परिपेक्ष म रसोई यंत्र/उपकरण इतिहास – भाग – २
आलेख : भीष्म कुकरेती
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फलों से रस निष्कासन का सामन्य विधि छे कि सिलवट म बट्टा से या कै वस्तु क दबाब फल पर बढ़ाये जाय अर रस तै बनाये जाय। भारत म १९९६ तक लोक व्यक्तिगत आयातित इलेक्ट्रिक ज्यूसर या स्मगलर्ड ज्यूसर से काम चलांद या अजंता ब्रैंड जन नॉन इलेक्ट्रिक ज्यूसर से काम चलांद छा।
अक्टोबर सन १९९६ म केनस्टार न भारत म किचन अपलियेंसेज उद्यम माँ क्रान्ति लायी दे जब केनस्टारन लीला पेंटा होटलम केनस्टार लॉन्च कार । केंटर की सबसे बड़ी विशेषता छे बल ये ब्रैंड का विपणन बड़ी विशेष छे। केनस्टार ब्रैंड वास्तव म विशुद्ध भारतीय ब्रैंड छौ किन्तु विपणन पद्धति इन अपनाये गे कि जु ये ब्रैंड का जन्मदाता छा वूं तैं बि लगद छौ कि केनस्टार विदेशी ब्रैंड च जन कि मि। मि तै गर्व च बल मि ये ब्रैंड को जन्मदाताओं मध्य एक प्रबंधक छौं। विपणन का प्रत्येक अंग का (प्रोडक्ट , पब्लिसिटी ) इन प्रयोग ह्वे कि भारतीय अबि बि सुचदन कि कैंसर विदेश ब्रैंड च। यदि केनस्टार ब्रैंड स्वामी उद्योगपति धूत बंधु लोगों तै नि बतांद तो कै पता इ नि चलद कि केनस्टार विदेशी ब्रैंड च।
केनस्टार की कई भौत सी विशेषता छन अर वां मध्ये एक च इलेक्ट्रिक ज्यूस एक्सट्रैक्टर को भारत म परिचय कराण। नवंबर तक केनस्टार ज्यूस एक्सट्रैक्टर एक हिट प्रोदटकट ह्वे गे छौ। यु प्रोडक्ट आयातित प्रोडक्ट छौ अर छै -१० मैना म केनस्टारन मोल्ड आदि निर्मित करी ये प्रोडक्ट कु भारतीय कर्ण बि कर दे छौ।
विपणन दृष्टि से केनस्टारन भारत म सबसे पािल केवल आठ शहरों म ही पदार्पण कार। तो सन १९९७ से पैल ज्यूस एक्सट्रैक्टर उत्तराखंड म इंट्रोड्यूस नि ह्वे। संभवतया उत्तराखंड म केनस्टार ज्यूस एक्सट्रैक्टर नवंबर १९९७ म इंट्रोड्यूस ह्वे होलु।
केनस्टार ज्यूस एक्सट्रैक्टर बजार म हिट हूण से भौत सा ब्रैंड बजार म ऐना। आज रूण या च सब बिसर गेन कि उत्तराखंड इ ना भारत म बि इलेक्ट्रिक ज्यूस एक्सट्रैक्टर केनस्टार इ लायी।
मि तै गर्व च कि मि केनस्टार ब्रैंड का जन्मदाता प्रबंधक राऊं।
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Copyright@ Bhishma Kukreti
SBDK
मुम्बई म डब्बा वालों इत्यास अर टिफिन को इत्यास
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उत्तराखंड परिपेक्षम पकयूं भोजन परिहवन को इत्यास
पारम्परिक भोजन पाक शैली श्रृंखला
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भीष्म कुकरेती
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इन नी च बल आज इ पकायुं भोजन तै एक स्थान बिटेन दुसर स्थान लीजाये जाणो हो। आज वर्तमान म जै भांड पर पकायुं भोजन परिहवन करे जांद वाई तै टिफिन या खाणा डब्बा बुल्दन . मुम्बई तो डब्बा वाला संस्कृति पर अनशन हूंदन .
जातक कथाओं म यात्री द्वारा सत्तू लिजाणो चर्चा च। गढ़वाल म त ग्वाठम – हौळम पुटली पर रुटि लिजाणो या जात्रा म बि रुटि /सत्तु लिजाणो सैकड़ों वर्ष पुराणो रिवाज च। बांसै /भ्यूंळै कंडी म जात्रा क भोजन धरणो रिवाज गढ़वाल म सैकड़ों वर्ष से छौ किंतु इन बुले जांद कि मिलिट्री कमांडो ओडा नोबुनेगा (१५३४ -१५८२ ) न बेंटो बॉक्स की खोज कार जां से वो अपण किला म प्रत्येक सैनिक तै अलग से भोजन दे द्यावो। अर फिर यु बांसे कंडी म भोजन परिहवन संस्कृति सिल्क रोड / रेशम सड़क से सरा जग म पसरी।
गढ़वाली कंडी या जापानीज /चीनी बेंटो बॉक्स की सबसे बड़ी कमी च यु तरीका सुखो भोजन (रुटि , स्वाळ , पक्वाड़ , सूखी सब्जी ,प्याज , फल आदि ) लिजाणो त ठीक च किन्तु तरीदार /पंद्यर साग, दाळ , पळयो भातौ कुण असहज भांड साबित ह्वे।
अरब देशोंम इनि सफरतास बुले गे अर सोळविं सदी क देन माने गे (शायद ) यु बि भारतीय भोजन लिज़ाण वळ उपकरण से प्रेरित ही छौ।
एक सिद्धांत अनुसार भारत म आधुनिक टिफिन की प्रेरणा मंदिरों से मील। भक्त लोग मंदिर भोग या भोजन घौर या धर्म शाला तक लिजाणो कुण थाली फिर एक ही आकार का कटोरा या फुळी एक का ऊपर एक धरे जांद छा अर फिर डुडड़न बंधे जांद छा
बंदरगाहों म बि एक फुळी /घंटी मथि हैंक घंटी धौरी भोजन इना उना लिजाये जांद छौ।
यूं कुछ भारतीय भोजन परवहन तकनीक की प्रेरणा से भारत म १८८० लगभग टिफिन बॉक्स निर्माण शुरू ह्वे बल।
आधुनिक काल को हिसाब से धातु टिफिन बॉक्स को इतिहास भारत म ही शुरू ह्वे अर मुख्यतः मुम्बई म १८८० का ध्वार। पािल ब्रिटिश साब लोग अपण घौर ब्रिटेन टिफिन बॉक्स म नास्ता लाण ौ बाण शुरू ह्वे। सबसे पैल पितळौ टिफिन बॉक्स की शुरुवात ह्वे कंतु गुजरती व राजस्थानी व दक्षिण भारतियों भोजन आदत म इमली , , दही कढ़ी बि शुमार छे तो पीतळ धीरे धीरे असुविधाजनक लगण लग गे।
मुम्बई व दक्षिण म टिफिन बॉक्स एकदम हिट ह्वे गे। श्रमिकों , अधिकारियों , व्यापरियों तै अपण दगड़ लंच , डिनर लिजाण म सौंग ह्वे गे तो टिफिन बॉक्स निर्माण बि बढ़ गे। भारत से प्रेरित हो टिफिन बॉक्स मलेसिया , सिंगापूर , बर्मा म बि प्रसिद्ध ह्वे गे।
टिफिन बॉक्स निर्माण से मंदिरों व होटलों से बीि भोग व भोजन लिजाण सौंग ह्वे गे।
एक समय टिफिन बॉक्स भेंट दीणो मुख्य उपकरण ह्वे गे छौ। टिफिन बॉक्स आण से दूर यात्रा म बड़ी सुबिता मील।
मुख्यतया टिफिन बॉक्स तीन डब्बा वळ ही हूंद जख्म भैर चमच आदि टंगणो सुविधा भी हूंद।
मुम्बई कि बड़ी समस्या छे कि कर्मचारी कार्यालय या फैक्ट्री से दूर रौंदन तो सुबेर सुबेर ओफिस /फैक्ट्री कुण घर से चलण शुरू करदन अर इनमा भोजन लिजाण कठिन हूंद। तो यीं समस्या तै डिब्बावाले सेवा न समाप्त कार। डब्बा वळ तुमर घर बिटेन खाणों डब्बा उठाओ अर गंतव्य स्थान म छोड़ दींदन। यु कार्य सामूहिक कार्य च। सन 1890 म माहदेव हावजी बच्चे न टिफिन लिजाणो सका शुरू कार अर कुछ कर्मचारी यांकुण दगड़म रखेन। १९३० म यूनियन बण। अब यु चेरिटेबल ट्रस्ट च।
अब टिफिन बॉक्सन धातु से प्लास्टिक म प्रवेश कर याल जांसे न्य न्य आकर अब बाजार म उपलब्ध छन अब तो इलेक्ट्रिक टिफिन बि उपलब्ध छन।
उत्तराखंड म कार्यालय या फैक्ट्री निकट हूण से कर्मचारी लंच समय म घौर ाँद छा तो टिफिन विक्री कम राई पर लगभग सं साठ से ऐल्युमिनियम का टिफ़िन उत्तराखंड का शेरोन म शहुरु ह्वेन। स्कूलों बि छात्रों म टिफिन संभवतया १९८० लगभग प्रचलन बढ़।
या बात सब जाणदन कि १९८० तक बि हौळम , गोठम या स्थानीय यात्राम उतराखंड विशेषकर पहाड़ी क्षेत्र म टिफिन प्रचलन नि ह्वे छा। टिफिन प्रचलन १९८० क बाद ही बढ़।
टिफिन निर्माण मानवीय सभ्यता म एक मील का स्तम्भ च जैन मनिखों जिंदगी सरल व सुभीताजनक बणाई। मेट्रो म , शहरों न बल्कि गावों म बि आज तफिन उपयोग बढ़ गए हां अब नया नया कंटेनर आकर समिण आयी गेन जन पिजा डेलिवरी कुण कंटेनर , होटलों से भोजन डेलिवरी वास्ता विशेष कंटेनर , रेलवे म भोजन दीणो सिस्टम आदि आदि। भविष्य का टिफिन म अति खोज हवेली अर आकलन नि करे सक्यांद टिफिन बॉक्स कनो होलु।
Copyright @ Bhishma Kukreti २०२१
भारत में डब्बा /टिफिन संस्कृति उदय , मुंबई में डब्बावाला संस्कृति का पचलन , मुंबई में टिफिन , उत्तराखंड में कब टिफिन शुरू हुआ , उत्तराखंड में टिफिन बॉक्स प्रचलन की शुरुवात
उत्तराखंडम कूल टच टोस्टर का प्रचलन इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्षम रसोई यंत्र/उपकरण इतिहास – भाग – ३
आलेख : भीष्म कुकरेती
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इलेक्ट्रिक टोस्टर को अन्वेषण १८९३ म स्कॉटलैंड म ऐलन मैक मास्टर्स न िकलिप्स नामसे करी। क्रॉम्पटन न ये उपकरण को विपणन कार। यु िकलिप्स टोस्टर एक छ्वाड़ ी पकान्द छौ तो हथन दूसर छवाड़ पलटाण पड़दो छौ।
वस्तु पेटेंट करणो अनुसार २६ मई १९ २४ कुण अमेरिकी चार्ल्स चैम्पियन न सैंड विच टोस्टर की खोज करी।
वास्तवम सन १९६० बिटेन ही टोस्टर्स की खपत बढ़ या व्यापरिक उत्पादन म वृद्धि ह्वे।
भारत म बिन बिजली टोस्टर कब शुरू ह्वे क इतिहास नि मिल्दो ना ही इलेक्ट्रिक टोस्टर को निर्माण कु बि। इन लगद टिन या क्रोमियम लग्युं धातु क सैंडविच व आप टोस्टर दिल्ली का निर्माता ही ले होला या भौत देर बाद फिलिप्स। यी टोस्टर बड़ा ही खुरदरा व भैर बिटेन गरम ह्वे जांद छा अर हथ फुकेणो डौर रौंद छौ। संभवतया इलेक्ट्रिक टोस्टर भारत म १९८० या कुछ वर्ष पैल लगभग ही ह्वे होलु।
केनस्टार न ही कूल टच टोस्टर (सैंडविच अर पॉप अप टोस्टर जौंक बॉडी बिंडी गरम नि हूंदी ) का परिचय भारत से कराई (उन तै समय मिलटन बी यूरोलाइन का नाम से आयी पर बंद बी ह्वे गे ) . अक्टूबर १९९६ म केनस्टार न मुम्बई म भौत सा रसोई उपकरण बाजार म उतारी छा। यूं माडे कूल टच सैंडविच व कूल टच पॉप अप टोस्टर व विफल मेकर बि छौ।
उत्तराखंड म केनस्टारन लगभग १९९ ७ अंत म ही टोस्टर को वितरण शुरू कौर ।
तो इतिहास हिसाबन उत्तराखंड इ ना भारत म कूल टच टोस्टर व विफल मेकर को परिचय केनस्टार न ही कार १९९६ म। पैल पैल देहरादून , हरिद्वार या नैनीताल म ही।
उत्तराखंड में स्टेनलेस स्टील बर्तन ब्रिटिश अधिकारी व प्रवासियों ने प्रचारित किया होगा
( स्टील भांड व कटलरी का सौ साल का इतहास )
उत्तराखंडौ परिपेक्षम स्टेनलेस स्टील भांडुं , कटलरी इत्यास
उत्तराखंड परिपेक्ष म रसोई यंत्र/उपकरण इतिहास – भाग – ४
आलेख : भीष्म कुकरेती
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आज सुचे इ नि सक्यांद बल भोजन बिन स्टील या स्टेनलेस स्टील का बि बण सकेंद। यिन शताब्दी को एक आश्चर्यजनक व महा लाभदायी अनशन च स्टेनलेस स्टील को अन्वेषण। इस्पातम क्रोमियम अर निकिल मिलाण से नई धातु म कुछ गुण बढ़ जांदन , ये नीव धातु स्टील पर जनक नि लगद , हवा से ओक्सीडेसन नि हूंद।
– सन १८७२ म वुड्स अर क्लार्कन बताई बल लोहा म क्रोमियम मिलाये जाव त नव धातु क्षरण /जंक/ अम्ल प्रतिरोधी ह्वे जांद।
जख तलक स्टेनलेस स्टील बर्तनों इतियासौ प्रश्न च त ब्रिटेन अर जर्मनी द्वी अपण धज गडदन . ब्रिटेन म कटलरी केंद्र म १९१३ म हरि ब्रेयरली न क्रियमियम युक्त लोहा क खोज करी। हरी ब्रेयरली वास्तव म गन बैरल म जनक लगणो समस्या तै दूर करणम व्यस्त छौ। तो इनम वास्तव म स्टेनलेस स्टील की खोज ह्वे। जर्मनी वळ बुल्दन युद्ध का कारण ही जर्मनी म स्टेनलेस स्टील की खोज १९१२ म ह्वे। १९१२ म डाक्टर बेनो स्ट्रॉस व दगड़्या वैज्ञानिक न क्रूप उद्योग म एक धातु क खोज कार जो अम्ल व जंक प्रतिरोधी छौ।
भारत म स्टेनलेस स्टील बर्तनों स्वागत गुजरात , महाराष्ट्र व दक्षिण म अधिक ह्वे कारण इख सबसे अधिक इमली , दही खाये जांद तो इन बर्तन की आवश्यकता बि छे जो बर्तन खट्टो चीज से खराब नि हो या जो बर्तन खट्टो पदार्थ खराब नि कारन।
यद्यपि भरत म वुट्ज तलवार भी कुछ हद तक स्टील की सि हूंदी छे।
१९१९ – १९२३ मध्य शेफील्ड कम्पनी न स्टेनलेस स्टील का कटलरी , टूल्स अर सर्जिकल छुर्री निर्मित ह्वेन।
१९२४ म अमेरिका म स्टील की छत बणाए गे।
१९२९ म स्टीलो पाणी टैंकर निर्मित ह्वे।
१९३३ म स्टेनलेस स्टील किचन सिंक निर्मित ह्वेन ।
१९६३ म स्टील ब्लेड निर्मित ह्वे।
भारत म फरवरी १९१२ से टाटा स्टील न स्टील निर्माण शुरू कार।
भारत व उत्तराखंड म संभवतया ब्रिटिश अधिकारी अपण उपयोग का वास्ता स्टेनलेस स्टील कटलरी ल्है होला।
भारत म स्टेनलेस स्टील वर्तनों /भांडों खुले आम प्रचलन १९७५ ७६ उपरान्त ही ह्वे जब भारत म बिहार एलॉयज कम्पनी न उत्पादन शुरू कार। टाइबर तक भद्रावती अर दुर्गापुर म इ उत्पादन हूंद छौ अर सीमित मात्रा म ही उत्पादन हूंद छौ त स्टनलेस स्टील बर्तनों बजार बि सीमित हि छौ।
विदेशी बजार से इ भारतम मॉल आंद छौ तो बजार बड़ो शहरों व धनी लोगुं मध्य सीमित छौ।
उत्तराखंड म स्तेन लेस स्टील कु प्रचलन प्रवास्यूं द्वारा ही अधिक ह्वे जब प्रवासी मुंबई , दिल्ली ब्रिटेन स्टेनलेस स्टील के थाळी यूं शहरों से अपण गाँव लिगिन। पैल पैल प्रवासी स्टेनलेस स्टील की थाळी लिगिन अर एक थाळी गांवम सामूहिक भोजन समय सूंटिया धरणो काम आण शुरू ह्वे। यांसे स्टेनलेस स्टील कु प्रचार ह्वे लोगों म स्टेनलेस स्टील घरम रखणो, प्रयोग करणो इच्छा जागृत ह्वै , पहाड़ी उत्तराखंड ही ना मैदानी उत्तराखंड म बि पैलो रिवाज कटलरी व फिर थाळी रिवाज शुरू ह्वे।
मुम्बई , दिल्ली म स्टेनलेस स्टील बर्तन बिचण वळी घर घर आंदी छे अर पुरण झुल्लों बदल बर्तन दींदा छा। यां से बि खपत व विक्री बढ़।
१९७६ उपरान्त मुंबई म प्रवासी स्त्रियों कुण एक अवसर आयी छौ कि स्टील बिक्रेता गली का दुकानदार हर मैना ५ सात रुपया लींद छौ अर फिर कुछ मैनो बाद यी स्त्री स्टेनलेस स्टील भाफ ख़रीददा छ। अर्थत इन्स्टालमेन्ट जन ही रिवाज से मुंबई म प्रावस्यूं न स्टेनलेस स्टील बर्तन खरीदेन। तब दिवाली म ही अधिकतर स्टेनलेस स्टील का बर्तन खरीदे जांद छा। बयाओं म सगा संबंधियों द्वारा वर वधु तै स्टेनलेस स्टील बर्तनों भेंट दीणो रिवाज बि १९८० बाद ही चल जु आज बि च।
उत्तराखंडम भौत वर्षों तक याने १९९० तक लोगुंम पीतल -कासो का प्रति प्रेम राय च (उन आज बी च ) तो धीरे धीरे १९९० बाद स्टेनलेस स्टील वर्तनों को प्रचलन बढ़। भिन्न भिन्न बर्तनों म विविधता व उत्पादन न बि बजार बढ़ाण युगाड़न दे। १९९० बाद स्टेनलेस स्टील कटलरी व थाली से अग्वाड़ी बढ़ अर जन भारत म स्टेनलेस स्टील भांडों कु प्रचलन म वृद्धि ह्वे तनि उत्तराखंड म बि।
अब त हम सोचि नि सकदा कि बिन स्टेनलेस स्टील बर्तनों क भि रुस्वड़ हूंद।
अर्थात १९९० का बाद ही उत्तराखंड म स्टेनलेस स्टील क्रान्ति (अधिक बजार बणन ) आयी।