तिमल की खेती क कथा
कथा संकलन : भीष्म कुकरेती
उड़्यार युग की छ्वीं छन। बौण म बड़ी आग लग गे । लोकुं भूकन मरणो दशा ऐ गे छे । बच्चा अर बुड्या सबसे बिंडी विकट स्थिति म छया। एक उड़्यारम एक घासक दिसाणम एक बुडड़ी पड़ीं छे , स्या कसणी छे खान खां। एक छूती नौनी आयी अर बुडड़ि तैं एक जलड़ दींद बुलण लग गे – “ददि ! ले जलड़ चबा थोड़ा भूक हीन ह्वे जाली।”
ददि न बंद आंख्युं न इ उत्तर म बोल ,” ये ननि ! ये जलड़न हम दुयुंक पुटुक नि भरेण। मीन त आज ना भोळ चल जाण। तीम त लम्बो जीवन पड्युं च तू इ चबा। “
बच्ची दौड़ि उड़्यार से भैर आयी अर सरग जिना बुलण मिसे – हे सरग ! मेरि ददि तैं बचा, मेरि ददि तैं बचा। ” नौनी क प्रार्थना बड़ी शक्तिशाली व करुणामय छे कि तिमल परी तै प्रार्थना सुणै गे। तिमल परी सरग क उद्यान बिटेन दौड़ दौड़ि बच्ची से मिलणो आयी।
तिमल परीन बच्ची कुण ब्वाल – म्यार पैथर आ।
बच्ची परी क पैथर पैथर भाग। तख दुसर जंगळम परी उखम रुक जखम तिमलक डाळ छौ। परी न कुछ तिमल क फल तोड़िन अर फलोंन बच्ची क ठुपरी भौर अर ब्वाल – जब बिटेन मीन होस समाळ तब बिटेन मि तिमल उगांदु। जा अपण ददि तै खला। “
बच्ची दौड़ि अपर उड़्यार आइ अपण ददि तैं वींन तिमल क फल कहलायी। ददि क आँख खुल गेन अर बुडड़ी पर टपटपी बि ऐ गे।
ददि न पूछ – कख बिटेन लै तु अमृत जन फल ?
बच्ची न परी दगड़ की कथा सुणाई।
बात चलदी चलदी जनजाति क प्रधान म पौंछ। जनजाति क क प्रधान न बोलि – मीन खायी छे किन्तु यी फल कडुवा व कसैला हूंदन अर सफेद दूध बि आंद जै से चिर्री पड़द ।
हैंक न हाँ हाँ म हाँ मिलाइ अर ब्वाल – अर भितर कीड़ बि हूंदन।
बच्ची रुणफति ह्वे गे अर सरग जिना दिखण लग गे अर बुलण मिसे – हे परी ! हे परी ! हमर प्रधान तैं बता।
परी पुनः प्रकट ह्वे। परी न प्रधान व हौरु तैं समजायी कि यदि तिम्लाक फल कच्चा होला तो कडुवा अर कसैला होला किंतु पकण पर तिम्लों स्वाद अमृत जन हूंद अर दूध बि नि आन्दो। कीड़ा बि हानिकारक नि हून्दन। परी न सब तै पक्यां फल खलैंन।
जनजाति क प्रधान व सयाणा प्रसन्न ह्वेन अर तौन परी से तिमल की उगाण सीख। तब बिटेन मनुष्य तिमल की खेती करण मिसे गे ,
इन बुले जांद बल मनुष्य न फलों म सबसे पािल तिमल की खेती ही शुरू कार।