ब्योली( रूसी कथा)
कथा:आंतोन चेखव
अनुवाद-सरोज शर्मा
राति क दस बजणा छन बग्यचा म जून चमकणी च। शूमिन परिवार ददि मार्फा मिखाइलोव्ना कि आज्ञा से आयोजित बय्खुन दा कि प्रार्थना अभि अभि खत्म ह्वै ,और नाद्या जु एक मिनट पैल बग्यचा म गै छै दयखणि छा कि खाणक कमरा म राति कु खाण लगणु छा, वींकि ददि फुलयीं, फुलयीं रेशमि पोशाक पैरिक मेज क चरि ओर मंडलाणी छै, पादरी अंन्द्रर्ई नाद्या कि ब्वै इवानोव्ना से बथा कनु छा खिड़कि क पिछनै से वा बत्ती क उज्यल मा जंणि किलै वा ज्वान दिखेणी छै। ब्वै क पास पादरी क नौन भि खड़ छा और ध्यान लगैकि बथा सुनणु छा।
बग्यचा मा ठंडक और शांति छै, भौत दूर बटिक, मिंढको कि अवाज आंणी छै, हवा मा भि ताजगी और उमंग छै। यन्न लगणु जनकि शहर से भौत दूर असमान क ताल, डालों क ऐंच और खेतूं मा रहस्यमय और अमूल्य जीवन शुरू हूंणु ह्वा जु कमजोर, पापी मनिखों कि पौंछ से भैर च। झंणि किलै रूंणकु ज्यू हूणू छा।
नाद्या तेईस बरसा कि ह्वै गै छै, सोलह साल कि उम्र बटिक वा व्यग्र ह्वै कि ब्यो का सुईणा देखणीं छै, और अब खाण वला कमरा मा खड़ु ज्वान नौना अन्द्रई अद्रेईच से वींक मांगण ह्वै गै छै। वा अनद्रेई थैं पसंद करदि छै, ब्यो कि तारीख भि सात जुलाई छै पर वीं क्वी खुशी नि महसूस हूंणी छै, न राति निंद आणी छै वींकि सरया उमंग गैब ह्वै ग्या…..ताल रस्वड़ बटिक छुरि कांटों कि अवाज आणी छै, मुर्गा भुनैण कि और मसलादार चेरी कि बास आंणी छै, इन लगणु छा जनकि अनन्तकाल तक इनि चलणु रालु!
भितर से क्वी निकलिक ओसारा मा खड़ ह्वै ग्या। ई अलेक्सान्द्र तिमोफेइच छा, वै ऐ नौ से ही सब बुलांदा छा,साशा छा जु मास्को से करीब दस दिन पैल ऐ छा। भौत दिन ह्वीं नाद्या कि ददि कि दूर पार कि रिश्तेदार, छवटा कद कि दुबल पतल, रोगि विधवा मरीया पेत्रोव्ना ददि से मदद मंगण खुण आंदि छै वींकु ही एक नौन छा साशा। लोगों क ब्वलण छा कि वु एक बेहतरीन कलाकार च और जब वैकि ब्वै मोरि, त ददि न हि पुण्य कैरिक वै मास्को क कोमिसारोव तकनीक स्कूल मा भेज द्या। एक द्वी साल बाद वैन अपणु तबादला चित्रकला विद्यालय म करा द्या। जख वु पंद्रह साल रै, वैन वास्तुशिल्प कि परीक्षा भि पास करि पर वैन शिल्पी कि हैसियत से कभि काम नि करि, बल्कि मास्को म छापाखाना मा नौकरी करि।वु हर मैना गर्मियो मा बिमार ह्वैकि ददि क यख अराम कनकु और स्वास्थ्य लाभ खुण आंद छा।गौल तक बटन लगयूं एक लम्बू कोट और किरमिच कि पतलून पैरीं छै वैन, और कमीज मा इस्त्री भि नि करीं छै वैक मुख मा ताजगी भि निछै दुबल पतल बड़ बड़ आंखों, लम्बी बिना मांस कि उंगला और दाढ़ी वल सौंला रंग कु पर सुंदर नौन छा। शूमिन परिवार क बीच वै इन लगदु छा जनकि वु अपणों क बीच ही च।वैक ठैरणा क कमरा भि साशा क कमरा हि ब्वलेजांद छा, ओसरा बटिक वैन नाद्या थैं देखि और वींक पास चल ग्या।
यख भौत सुंदर मौसम च, वैन बोलि।
हां तुम थैं पतझड़ तक यखि रैंण चैंद।
हां लगणु च कि ठैरण ही प्वाड़लु, मि शैद सितम्बर तक यखि छौं।वु बिना बात हैंसि और वींक बगल म बैठ ग्या।
मि यख बैठिक ब्वै थैं द्यखणु छौं, नाद्या न बोलि। यख बटिक वु भौत ज्वान लगणीं च, ई ठीक च मेरि ब्वै मा कुछ कमजोरी भि छन पर फिर भि वा अनूठी च।
हां वु भौत भलि छन…साशा न बोलि। अपणि तरा से वा भौत दयालु छन पर मि कन समझौं?मि आज सुबेर रस्वड़ मा गौं और मिन वख चार नौकरों थैं जमीन म सींद देखि, बिन बिस्तरा का, बिछाण खुण बस चिथड़ा….गन्दी बास, खटमल, तिलचट्टा,…..बिल्कुल बीस साल पैल जन, कुछ भि नि बदल,।ददि थैं दोष नि दीण चैंद किलैकि वा बुढ्ड़ी च पर तेरि ब्वै जैंथैं फ्रेंच भाषा भि आंद और जु नाटको मा भि भाग लींद…वीं त समझण चैंद।साशा कि आदत छै कि ब्वलदं दा सुनणवला क जनै अपणि द्वी अंगुलि उठांद छा। यख मी हरेक चीज अजीब लगद, वैन बोलि कि मि यूं कि आदत नि, यख कभि क्वी काम नि करदु। तेरी ब्वै महाराणि जन बस टैलणी हि रैंद और कुछ नि करदि, ददि भी कुछ नि करदि और ना तू। और वु त्यार मंगेतर वू भि कुछ नि करदु।
नाद्या न पिछल साल भि ई सब सुणि ।नाद्या थै पता छा कि साशा इन्नी सोच सकद। एक टैम छा कि नाद्या थै इन चुहलबाजी भलि लगदि छै, पर अब वा चिढ़ण लगि
ई पुरण पचड़ा च मि सुणद सुणद ऊब ग्यूं, नाद्या उठकि बोलि क्या तु नै बात नि करि सकदि?
वु हैंसिक उठि ग्या और द्विया घौर मा वापस चल गिन। सुंदर, लम्बी, और छरैरी वा साशा क बगल मा सजीं धजीं चलणी छै, वै ई बात क अहसास छा और साशा खुण अफसोस वे झंणि किलै झेंप लगणी छै।
तु भौत बेकार बथा करदि, अभि तिन म्यांर अनद्रेई क बारा मा बोलि , पर तु वै बिल्कुल भि नि जंणदि।
म्यांर अनद्रेई….त्यार अनद्रेई कि चिन्ता नि मी, तेरि ज्वनि कि फिक्र च। जब वु हाल मा पौंछिन वै बगत सब खाणकु बैठणा हि छा। नाद्या कि ददि-दोरा बदन कि, मोटी भौं और जूंगावलि बदसूरत ब्यठुल छै जोर जोर से बथा कनी छै। ददि कि बथा से पता चलणू छा कि वा हि घौर कि असलि मालकिण च।बजार मा कै दुकनि छै वूंकि, और खंभा और बग्यचा वल मकान भि वूंक ही छा।पर वा रोज सुबेर रवैकि भगवान से प्रार्थना करदि छै कि भगवान सर्वनाश से वूंकि रक्षा कौर, नाद्या कि ब्वै गेंहुआ रंग कि छै,कमर मा टैट पोशाक पैरीं ,बिना कमानि क ऐनक लगैक और सब्या अंगलो मा हीरा क गुंठी पैरीं छै, पादरी अन्द्रेई ,पोपला मुख कु दुबल ,पतल और मजाकिया जन लगदु छा, और वैक नौन अन्द्रेई अनद्रेईच-नाद्या क मंगेतर-तगड़ु, सुंदर, घुंघर्यला लटलों वल एक अभिनेता या कलाकार ज्यादा लगदु छा, ई तिन्या सम्मोहन विद्या क बारा म बथा कना छा।तु यख एक हफ्ता म भल चंगु ह्वै जैल, ददि न साशा से बोलि, पर त्वै ज्यादा खाण चैंद, जरा अपण जनै देख, ऊंन आह भोरि क्या शक्ल बणयीं च अवारा छ्वारा छै न,
कुकर्म मा अपणि संपति उडै द्या….और कंगाल ह्वै ग्या…पादरी अन्द्रेई न धीमा धीमा शब्द बोलिक बाईबल क शब्द बोलिन। वूंका आंखां हैंसणा छा।
मि अपण बुबा से प्रेम करदु,
अन्द्रेई न अपण बुबा का कंधा छूयेकि बोलि।
कैन कुछ नि बोलि। साशा अचानक हैंसण लगि और वैन नैपकिन न अपणा होंठ दबै दिनि।
त आपथैं सम्मोहन म विश्वास च?पादरी न नीना इवानोव्ना से पूछि। मि नि बोल सकदु कि मि यूं बातु मा यकीन करदु,नीना इवानोव्ना न गंभीर और लगभग कठोर भाव दरशै कि जवाब दे। पर मनण प्वाड़लु कि प्रकृति मा कुछ अगम्य और रहस्यमय च।
मि सहमत छौं त्वै से,हालांकि धार्मिक आस्था रहस्य क क्षेत्र काफी कम कैर दिंद।
एक भौत बड़ मुर्गा मेज म परोसे ग्या, पादरी और नीना बथा कनमा मशरूफ छाया,नीना इवानोव्ना क हथों म हीरा कि गुंठी चमकणी छै, और आखिंयू मा आंसु भि चमकण लगीं वा भावुक ह्वै ग्या।
मि तुम दगड़ तर्क कनकु साहस त नि करि सकदु, पर तुम सहमत हवैला त जिंदगि मा भौत अणबूझ पहेली छन,
एक भि नी मि यकीन दिलांदु।
खाणक बाद अन्द्रेई अन्द्रेईच न वायलिन बजै संगत मा नीना न पियानो बजै। अन्द्रेई न दस साल पैल भाषाविज्ञान म डिग्री ले छै पर ना वु नौकरी करदु छा ना क्वी धंधा, बस कभि कभि संगीत कार्यक्रमों मा वायलिन बजै दींद छा, शहर मा वु एक संगीतज्ञ क रूप मा मशहूर छा।अन्द्रेई वाद्य बजाणु छा और सब चुपचाप सुनणा छाया, और साशा चा पींणु छा जनि बारा बजिन वायलिन क एक तार टुटि ग्या। सब्या हैंसण लगिन और जांणा कि हडबडी शुरू ह्वै ग्या। अपण मंगेतर थै शुभ रात्रि बोलिक नाद्या मथि चल ग्या ,जख वा अपणि मां दगड रैंद छै, (ताल क हिस्सा म ददि रैंद छै,) हाॅल कि बत्ती बझये जांण लगिन, पर साशा चा पींण लगयूं छा, वु सदनि देर तलक चा पींदु छाई, मास्को का रिवाज क मुताबिक एक क बाद एक छै सात गिलास चा। लत्ता उतारिक बिस्तर मा लेटण क नाद्या थै नौकरो कि मेज साफ कनकि अवाज और ददि कि डांट-फटकार भौत देर तक सुणै द्या, फिर शान्ति ह्वै ग्या।
द्वि बजणां ह्वला नाद्या कि निंद खुल गे, दूर कखि चौकीदार कि लाठी कि अवाज आंणी छै, नाद्या थै निंद नि आणी छै, बिस्तरा जरूरत से ज्यादा मुलैम लगणु छा, पिछल कै रात जन वा बिस्तरा मा हि बैठ ग्या और विचारों म ख्वै ग्या, ई विचार भि पिछल रात क जना हि निरर्थक छा,पर वींका पीछा नि छ्वणा छाया। अन्द्रेई अन्द्रेईच क ख्याल ऐ कि वु कन वु वींसे मिलण जुलण लगि और कन वैन ब्यो कु इच्छा जतै, और कन नाद्या न स्वीकार करि। और बाद मा ऐ अच्छा और चतुर आदिम कि कदर कन लगि,पर जब ब्यो क एक मैना रै ग्या त वा डैर और घबराट महसूस कन लगि, जनकि क्वी बोझ पव्ड़णु ह्वाल वीं पर।
ठक ठक ठक…चौकीदार कि अवाज सुणै द्या।
पुरणि बड़ि खिड़की से बग्यचा दिखेंणु छा, और एक घैंणु कुहासु झाड़ियो मा छाण लगयूं छा ,जनकि अफमा समेटणु ह्वा, दूर डालों मा कौवों कि अवाज सुनेणी छै।
हे भगवान म्यांर मन इतगा भारी किलै हूणु च?क्या ब्यो से पैल सब्या नौनियों क हूंद ह्वल?कुजांण?या यु साशा क प्रभाव च?पर साशा त बरसों बटिक इन्नी बथा करद, जनकि रटीं ह्वा, और जब भि कुछ ब्वलद त भौत सीधू और अजीब लगद, पर वा साशा कि बथा दिमाग न किलै नि निकाल पाणी च,?किलै?
चौकीदार कि गश्त खत्म ह्वै गै,
डालों मा चखुलों कि चहचहाहट शुरू ह्वै ग्या। बग्यचा क कुहासु भि दूर ह्वै ग्या, सब्या चीज बसन्त कि धूप मा चमकण लगीं ,बग्यचा धूप सूरज कि गुनगुनी गर्मी न सजीव ह्वै गया,पुरण उपेक्षित बग्यचा आज जवान और उल्लासित ह्वै ग्या। ददि जगि गै, साशा अपणि रूखि खांसि खंसण लगि।ताल नौकर समोवर ल्याण और कुर्सी हटाण कि अवाज आणी छै।
नाद्या उठिक बग्यचा मा टहलणी छै अभि सुबेर ही छै,।
नीना इवानोव्ना, आंखो मा आंसू भ्वरीं, हथमा मिनरल वाटर क गिलास लियां ऐ।वीं स्पिरिट्ज्म और होम्योपैथी म दिलचस्पि छै, वा काफि पढदि छै, और वीं मन मा उठणवलि शंकाओं क बारा म बात कनकु शौक छा।और नाद्या क ख्याल छा कि यूं सबमा क्वी रहस्यमय गूढ़ महत्व च। वींन ब्वै कि भुक्की प्या और बगल म चलण लगि।
तु कै बात मा रूंदि छै मां?वींन पूछि।
मिन ब्यालि रात बुढया आदिम और वैकि नौनि कि किताब पड़ि।बुडया कै दफ्तर मा नौकरी करदु छा और वैकु अफसर वैकि नौनि से प्रेम कन लगि, मिन अभि किताब खत्म नि करि पर एक जगा मि रूलै नि रोकि सकि, नीना इवानोव्ना न बोलि और पाणि क घूँट भरि, मी सुबेर याद ऐ और फिर रूलै ऐ गै।
मि आजकल भौत उदास छौं, नाद्या न बोलि मी आजकल निंद किलै नि आंदि?
मी नि पता छोरी जब मि से नि सकदु त अपणा आंखा जोर से बंद कैर दिंदु।,और कल्पना करदु कि आन्ना कारेनिना कन चलदि छै, और कन बोलदि छै, या मि कै ऐतिहासिक बात कि कल्पना कनकि कोशिश करदु कै पुरण जमना कि बात कि कल्पना…नाद्या थैं महसूस ह्वै कि वींक ब्वै वीं नि समझ पै वीं समझाण मा वा असमर्थ और अयोग्य छै, ऐ से पैल वींन कभि या बात महसूस नि करि। ऐ एहसास न वा डर गै और अपणा कमरा मा चल गै।
द्वि बजि खाण खाणक बैठीं। आज बुद्ध यानि कि ब्रत क दिन छा, ददि क खाण मा बिन गोश्त क शोरबा छा और दलिया क दगड़ माछा परोसे ग्या, ददि थै चिणाण कु साशा बिना गोश्त कु और गोश्त क शुरा द्विया खाणु छा, वु सरया टैम मजाक कनु रै, पर वैका लतीफा नैतिकता गर्भित हूंद छा मजाक जन नि लगदा छा,हैंसि कि बात करद दा वु अपणि हडका जन द्वि उंगलि उठांद छा त लगदु छा कि वू भौत बीमार च।शैद ज्यादा दिन जींदु नि राल यु,ई सोचिक इतगा दुख हूंद छा कि रूंण ऐ जा। खाणक बाद ददि अपण कमरा मा चलि ग्या, नीना थ्वड़ा देर पियानो बजै कि भैर चल ग्या। ओह प्यारी नाद्या काश तु मेरी बात सुणदि!वा एक पुरण जमना कि आराम कुर्सी मा धंसी छै, आंखा बंद कैरिक बैठीं छै, और साशा कमरा म घुमणु छा, काश तु चल जा और पढ़ै कैर, वैन बोलि सुविज्ञ और सन्त लोग हि दिलचस्प हुंदिन। जतगा ज्यादा इन लोग ह्वाला उतगा जल्दी हि धरती म स्वर्ग ऐ जालु। तब त्यार ऐ शहर मा भि धीरे धीरे हरेक चीज उलट पलट ह्वै जालि, सब बदल जालु जन कि जादू ह्वै ह्वल। और फिर यख शानदार मकान, सुन्दर बग्यचा बड़िया फव्वारा, और भि अच्छा और असाधारण लोग ह्वाला,…..पर या मुख्य बात नि, मुख्य बात या च कि भीड़ नि होलि, मौजूदा बुरै गैब ह्वै जालि किलैकि हर क्वी आस्थावान होलु, वै पता राल कि जीवन म वैन क्या करण, और क्वी भीड़ से समर्थन नि चालु।प्यारी भली नाद्या चल जा!सबथै दिखै दे कि ऐ आलस, पापी और गतिरूद्ध जीवन से तू ऊब गे, कम से कम अपथैं साबित कर!
असम्भव, साशा, मि ब्यो कनू छौं!
रण दे क्या जरूरत च ऐ ब्यो कि?वु बग्यचा मा चलि गैं और घूमण लगीं, कुछ भि ह्वा प्रिय त्वै सोचण चैंद, समझण चैंद, कि तुम लोगों कि जिंदगि कतगा बेकार,अनैतिक और घृणास्पद च साशा ब्वलणु ही रै,।तु, तेरी ब्वै, और ददि एक आलसी जीवन बितै सका ये खुण कतगा लोग कमरतोड़ काम करदिन, तुम जना लोग दुसरों कि जिंदगी नष्ट कना छा, क्या ई ठीक च, क्या ई हेय नी च?
नाद्या बोलण चांदि छै कि हां तुम ठीक बुना छा बतांण चैंद छै कि वा वै थैं समझदि च पर वींका आँखों मा पाणि भ्वरे ग्या, वा चुप ह्वै ग्या, अफु मा हि सिमटि क रै ग्या, और अपण कमरा म चलि ग्या।
बय्खुन दा अन्द्रेई अन्द्रेईच ऐ, सदनि जन वायलिन बजांण लगि वु चुप रैंण वल यानि कि कम बोलण वल नौन छा वायलिन बजांण शैद इलै हि पसंद छा वै, किलैकि बजांण दा कै से बोलण नि पव्ड़द छा,दस बजण क बाद घौर जाणकु वैन अपण कोट पैरि और नाद्या कि अंजवाल भोरि और भुक्की प्या,मेरी प्यारी ,मेरी सुंदरी!मि कतगा खुश छौं खुशी न मि पागल नि ह्वै जौं!
नाद्या थै लग जनकि यी बथा वींन पैल भि कतगा दा सुणी छन या कै पुरण उपन्यास म पढ़ ह्वा।
हाॅल म साशा चा पींणु छा ददि यखुली यखुली ताश खेलणी छै, नीना पढ़णी छै,दिवा क उज्यल थिरकणु छा, और सब कुछ सुरक्षित और स्थिर लगणु छा। नाद्या न शुभ रात्री बोलि और अपण कमरा म चलि ग्या, और लिटदा ही वीं निंद ऐ ग्या, और सुबेर सुबेर निंद खुल ग्या वींकि फिर वा से नि सकि दिल मा बेचैनी और बोझ जन छा। वा उठिक बैठ ग्या और घुंडौ मा मुंड देकि अपणा मंगेतर क बारा म सोचण लगि, अपण ब्यो क बारा मा…वीं याद ऐ ब्वै अपणा स्वर्गीय पति थैं प्रेम नि करदि छै, अब वींक पास अपण ब्वनकु कुछ भि छा, और वा ददि पर ही निर्भर छै। और नाद्या सोचि कि भि नि सोच पै कि वा अपण ब्वै थैं किलै अलग समझदि छै,वा त एक मामूली दुखी ब्यठुल च ।ताल साशा भि उठ गे वैकि खंसण कि अवाज आणी छै, वु एक अजीब सीधु साधु आदिम च नाद्या न सोचि, और वैका सुपिन भि बेतुका छन, शानदार बड़िया उद्यान और फव्वारों का सुपिन,पर वैका भोलापन मा और बेतुकापन मा इतगा सुन्दरता च कि नाद्या सोचण लगि वींथै सचमा पढ़ण चैंद, सोचिक हि वींक मन मा ठंडक और ताजगी क अहसास ह्वै और वा आल्हादित ह्वै ग्या, पर ना येका बारा म सोचण ठीक नी….ठक ठक…दूर बटिक चौकीदार कि अवाज ऐ…
जून मा साशा अचानक ऊब ग्या और मास्को वापस जाण कि बथा करण लगि।
मि ऐ शहर मा नि रै सकदु वैन रूखै से बोलि, न नल च न परनला क इंतजाम!मी खाण खाणम भि घींण आंद, रस्वड़ मा कतगा गंदगी च….
थ्वड़ा इंतजार कैर आवारा नौना!ददि झणि किलै बुदबुदांद बोलदि सात तारीख त ब्यो च!
मि नि रूकण चांदु, तु त यख सितंबर तक रूकण चांदु छै,
पर अब नि चांदु मी काम च!
गर्मी ठण्डी और भिगीं (बरसाती) निकल ग्या ,डाला टपकणां रैं बग्यचा उदास और अप्रिय लगणु छा, ताल,मथि अजांण ब्यठुलों कि अवाज सुनेणी छै ।ददि क कमरा से सिलै मशीन कि खटखट ई सब दहेज कि तैयारि क शोरगुल छा। नाद्या खुण जड्डो खुण छै ओवरकोट ही बनणा छा, वैमा सबसे सस्तू ददि क ब्वलयां अनुसार-तीन सौ रूबल कु छाई। ऐ शोरगुल से साशा थैं चिढ़ हूणी छै वु अपण कमरा मा मुख फुलैकि बैठयूं रैंद छा, वै रैणा कु राजी करै ग्या, और वैन जुलाई से पैल नि जांण क वचन दे द्या।
वक्त गुजर ग्या। सेन्ट प्योत्र क दिन खाण खाणक बाद अन्द्रेई अन्द्रेईच नाद्या दगड़ मोस्कोव्स्काया सड़क म ग्या एक दा फिर वु मकान द्यखण कु जु नवदंपति न किराया म ल्या ,ई दुमंजिल मकान छा पर अभि माथा कि मंजिल हि सजै गै। चमकदार फर्श वला हाॅल मा मुणीं लकड़ी कि कुर्सीयां और प्यानो स्वरलिपि लिखण कु एक स्टैंड छा ।ताजा रंग कि बास आणी छै, दिवाल मा सुनैरा रंग क चौखटा मा नग्न ब्यठुल कि और वैक पास एक बैंगणि फूलदान छा।
भौत सुंदर तस्वीर च!अन्द्रेई अन्द्रेईच न बोलि या शिश्माचेव्स्की कि कृति च।अगनै बैठक छै, जैमा गोल मेज सोफा, नीला रंग क कपड़ा मा मढीं आरामकुर्सी छै, सोफा क मथि पादरी अन्द्रेई क एक चित्र छा। फिर खाण का कमरा और फिर सींणा क कमरा म। यख मध्यम उज्यल मा अगल-बगल द्वी बिस्तरा लगयां छा, इन लगणू छा जनकि कमरा सजाण वलों थैं पता ह्वा कि ई सदनि सुखी राला। अन्द्रेई अन्द्रेईच नाद्या थैं कमरा दिखाणु छा और सरया बगत वींक कमर मा हथ डलयूं रै, वा अफथैं कमजोर और दोषी समझणी छै वीं तमाम कमरों बिस्तरों, कुर्सियों से घृणा हूंण लगि। नंग ब्यठुल से वीं क मन कच्चू ह्वै ग्या, अब वा साफ तौर से समझ ग्या कि अन्द्रेई अन्द्रेईच से वीं प्रेम नी, शैद वा कभि वै से प्रेम हि नि करदि छै। हालांकि वा रात दिन वैका बारा म सोचदि छै पर वा समझ नि पै और समझ भि नि सकदि छै कैसे मन कि बात बोल और किलै?वु वींक कमर म हथ डालिक भौत नम्रता से बात कनु छा अपण ऐ घौर मा घुमदा वु भौत खुश छाई, और नाद्या थैं ओछू, जाहिल, असह्य, भुंडु दिखेंणु छा, और वैक हथ वीं लोहा जन ठंडु और सख्त लगणु छा,कै भि क्षण वा भगणा कि, सिसकि भ्वरणा कि और खिड़कि क भैर कूदणा कु तैयार छै ।अन्द्रेई अन्द्रेईच वीं गुसलखना म ली ग्या, दिवाल म जडयूं एक नल क बटन दबै वैसे पाणि बगण लगि,
देख याल?वैन हैंसिक बोलि मिन सौ बल्टियों कि टंकी बणवै ताकि हमेशा पाणी आणु रावु थोड़ा देर आंगन म टहलणा रैं फिर सड़क म ऐकि किराये कि घोड़ागाड़ी मे बैठ ग्यें, इन लगणु छा बरखा आंणवलि ह्वा,
त्वै सरदि त नि लगणी?अन्द्रेई अन्द्रेईच न पूछि।वींन जवाब नि द्या, याद च ब्यालि साशा मेरी काम न करण कि आदत कि भर्त्सना कनु छा?थोडि देर रूकिक बोलि!एकदम ठीक छा!मि कुछ नि करदु और न कैर सकदु। इन किलै च प्रिय, क्या कारण च टोपी म बैज लगैकि दफ्तर जांण क विचार से ही मी मितली आंण लगद?क्या कारण होलु कै वकील थैं लैटिन शिक्षा परिषद क सदस्य देखिक म्यांर मन खराब ह्वै जांद। हे रूस माता तु अपणि छाति मा कतगा आलसी और बेकार लोगों थैं वहन करदि!म्यांर जना कतगा लोगों थैं,!अपणि निष्क्रियता थैं वु सर्वव्यापी परिघटना बतांणु छा।
जब हमर ब्यो ह्वै जाल, वु बुनू छा हम गौं मा चल जौंला, वख हम काम करला। हम एक छ्वट जमीन क टुकड़ा खरीद लयूंला जै म झरणा होलु, हम मेहनत करला और जीवन यापन करला….आह,कतगा सुन्दर। होलु ई!
वैन टोपला उतार द्या वैका लटला हवा मा लैराणा छा, नाद्या वैकि बथा सुणिक सोचणि छै हे भगवान मि घौर जांण चंदु!घौर क पास हि घोड़ागाड़ी पादरी अन्द्रेई क पास से गुजरि, अरे द्याख म्यांर बुबा जी जांणा छन, अपण टोपला हिलै। मि अपण बुबा से भौत प्रेम करदु वैन घोड़ागाड़ी क किरया देकि बोलि।
परेशानि और खराब तबीयत महसूस करदि नाद्या घौर मा गै। वा सोचणी कि सरया बयखुन मेहमान राला और वूंकि खातिर कन पोड़ली,मुस्कराण भि ह्वाल और वायलिन भि सुनण पोड़लि, सरया बेवकूफो जन बथा भि सुनणि पोड़लि और सिर्फ ब्यो कि बथा कन होली।
ददि फुलीं पोशाक पैरिक शान से समोवार क नजदीक बैठीं च और वा भौत घमंडी लगणी च जनकि वा हमेशा लगद, मेहमानो क आण मा,पादरी चलाकि भ्वरीं मुस्कान लेकि कमरा म ऐ, मि आपथै स्वस्थ देखिक अपार संतोष और प्रसन्नता ह्वै वैन ददि से बोलि। समझण मुश्किल छा वैन गम्भीरता से बोलि या मजाक मा।खिड़कियो का शीशों और छत से हवा टकराणी छै। सीटियों जन अवाज आंणी छै,रात क एक बजणवल छा, घौर का सब्या लोग अपण अपण बिस्तरा मा पोड़ ग्या छा पर से क्वी नि छा, और नाद्या थै लगणु छा कि ताल क्वी वायलिन बजाणु, भैर खड़ खड़ हूणी छै, एक मिनट बाद सिर्फ शमीज पैरिक नीना मोमबत्ती लेकि कमरा म ऐ,वींन पूछि ई अवाज कन छै नाद्या?
नाद्या कि ब्वै चोटि बांधिक झेंप वलि मुस्कान से ऐ तूफानि रात मा ज्यादा बुढ्ड़ी ,मामूली शक्ल कि छवट कद काठी कि लगणीं छै। नाद्या थै याद ऐ कि वा अभि अपणि ब्वै थै अद्भुत ब्यठुल समझदि छै और वींकि बथा मा गर्व महसूस करदि छै, और अब वीं याद हि नि आंणु कि क्या बोलदी छै!वीं