जन करिल्या तन पैल्या (ननु नाटक )
(लोक कथा से रूपांतरित )
(ननि -ननि नाटिका श्रृंखला, Short Skits )
नौटंकी रूपांतर – भीष्म कुकरेती
स्थल – स्टेज
पात्र –
सूत्रधार
सारस
स्याळ
–
सूत्रधार – एक समय की बात च एक बौणम चालाक धूर्त स्याळ छौ। तैकि मित्रता एक सीधो साधो सारस से ह्वे गे। एक दिन स्याळन सारस तैं अपर ड्यार भोजन क न्योता दे।
स्याळ – मित्र क्या तू भोळ म्यार इख भोजन पर ऐली ? सारस – अरे वह ! मित्र बुलाल अर मि नि जौलु ! इन ह्वे नि सकुद।
स्याळ – ठीक च त दुफरा क भोजन म ऐ जै।
सारस – भोजन म क्या च ?
स्याळ – यु एक रहस्य च। भोळ भोजन समय इ रहस्य खुलल।
सारस -ठीक च ठीक। मी ठीक दुफरा म त्यार ड्यार पौंच जौलु।
स्याळ – भलो भलो। मि जग्वाळ म रौलू।
सूत्रधार – दुसर दिन दुफरा हूंदी सारस स्याळ क ड्यार पौंच गे।
स्याळ – अहो भाग्य म्यरा कि म्यार मित्र म्यार ड्यार आयी। म्यार ड्यार पवित्र ह्वे गे।
सारस – भलो भलो ! इन बता भोजनम क्या च।
स्याळ – चल मेज म बैठि खौला। आज मीन झोळ पकायुं च। मसालादार झोल।
सूत्रधार – धूर्त स्याळन उथली तस्तरियों म झोळ संवोरिक (परोसिक ) धर्युं छौ।
स्याळ – अरे मित्र सारस ! क्या बात तू भोजन नि छे करणु ? झोळ त भौत स्वादि च।
सारस (रुवंसा ) – मेरी चोच से इन भोजन नि खये सक्यांद।
स्याळ – प्रयत्न त कौर।
सारस – भौत प्रयत्न कौर आल ।
स्याळ – तो इन कौर चोच त भिगायी दे। निथर लोगुं तैं कन बतैल कि तीन म्यार इख पौणै खाइ।
सारस -ठीक च। अच्छा हम सारस जाति म एक प्रचलन च कि यदि कैक पौणै खावो तो बौड़ाण भौत आवश्यक हूंद। तो तू म्यार ड्यार भोजन कुण ऐली ?
स्याळ – किलै न अवश्य औलु।
सारस -तो भोळ इ ठीक रालो। तू दुफरा भोजन वास्ता म्यार ड्यार ऐजा।
स्याळ – भलो भलो ! मि दुफरा म पौंच जौलु।
सारस – मि जग्वाळ म रोलु
सूत्रधार – दुसर दिन दुफरा म स्याळ सारस क घर पौणै खाणो समय पर पौंच गे।
सारस – सुस्वागतम ! सुस्वागतम। हमर समाज म बुले जांद कि पौण तैं भोजन कहलाओतो सोराग मिल्दो।
स्याळ -म्यार भाग्य। अच्छा इन बता भोजन म क्या च पकायुं ?
सारस – छुट छुट कीड़ों सवादी झोळ।
स्याळ – ब्वा !
सारस – चल भितर भोजन करला।
सूत्रधार – भितर भोजन लम्बो गौळ वळ घड़ों म झोळ संवोर्यूं (परोस्यूं ) छौ। सारस त अपण चोंच से सरोड़ सरोड़ी झोळ पीणु छौ किन्तु स्याळ क मुख घौड़ क मुख तक बि नई पौंछणो छौ।
सारस – मित्र झोळ कन च ?
स्याळ – खन्नु च। म्यार त मुख इ नि पौंचणु च।
सारस – प्रयत्न कौर ले।
स्याळ – कुछ नि ह्वे सकद।
सारस – मित्र मि तैं बुलण म क्वी बुरु नि लगणु च कि जन करिल्या तन इ पैल्या।