चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद ३४३ बिटेन ३५० तक
अनुवाद भाग – २४९
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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मनिख तैं चयेंद कि मात्रा , काल क विचार कौरि हितकारी खान पान रूपी समिधाओं से अंतराग्नि म नित्य संयमित हवन करण चयेंद। जु आहिताग्नि हवन करण वळ नित्य प्रति द्वी समय अंतराग्नि म हितकारी हितकारी हवन की आहुति देकि ब्रह्म क जाप करदो अर यथाशक्ति दान करदो स्यु सामन्य खान पान क ग्यानी हूंद। इन पुण्यवान तै बिन कारणो रोग नई हूंद। इनि संचित धर्म क प्रभाव से जन्मांतर म बि रोग नि हूंद। हितकर आहार करण वळ व्यक्ति ३६००० रात्रि (१०० वर्ष) तक निरोग , जितेन्द्रिय , सजनों से पुषिट ह्वे जीवित रौंद। ३४३ -३४६।
अन्न सब प्राणियों प्राण च। सरा संसार ये अन्न की याचना करदो। अन्न म इ वर्ण ,शरीर की प्रसन्नता , सुस्वरता , जीवन , प्रतिभा , सुख , तुष्टि हर्ष , पोषण , बल , मेधा , यी सब स्थिर छन। सांसारिक कर्म व स्वर्ग प्राप्ति हेतु यज्ञादि वैदिक यज्ञ तप आदि कर्म छन यी सब अन्न म प्रतिष्ठित छन। ३४७-३४८।
ये अन्नपान अध्याय म अन्नपान क गुण बारे बर्गों म बुले गेन। अनुपान का गुण गुरु व लघु विषय क निरूपण करे गे। यिं विधि पर विचार कौरि प्रयोग करण चयेंद। ३४९-३५०।
अब २७ वां अध्याय समाप्त ह्वे। . २७।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३७३ -३७५
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