240 से बिंडी कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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बच्चूलाल शाह क भौं तण गेन , रोषन आँख लाल ह्वे गेन , नसों पर तनाव बढ़ गे , अवश्य इ रक्त चाप दुगण ह्वे गे व्हाल, हथ खूट बेज्जती अनुभव से कमण लग गेन । बच्चूलाल तै बड़ी बेज्जती अनुभव ह्वे कि सरा दुन्या पर आग लगै द्यावो। पुटुकुंद मरोड़ उठणी छे। जनि जखणिवाळ न जाण कि बच्चू लाल शाह देसी शाह नि बल्कण म गढ़वळि शिल्पकार सुनार च तो तनि जखणिवाळन कमरा किराया पर दीणों साफ़ ना बोल दे बल तुम तै भवन किराया पर द्योला त हमकुण त बेटी ब्वारी नि बिवाणन ? कुछ समय पैल कमरों किराया , पाणी , बिजली , सफाई वळ सब्युंक वयवय क बारा म पूरी चर्चा इ नि ह्वे अपितु सब कुछ निर्णय बि ह्वे गे छौ। द्वी कमरा , एक रुस्वड़ अर आठ बाई आठ क चौक को भाड़ा आठ हजार , बिजली क मीटर लग्युं छौ , पाणी सौ रुप्या अर सफाई वळी क पचास रुपया पक्को ह्वे गे छौ।
तबारी इ जखणीवाळ क घरवळि आयी अर गढ़वळि टन म बुन्न लग गे ,” भाई साब बुरा मानो या भला पण तुम देसी शाह तो नई लग रयो हो !”
बच्चूलाल न बि स्वाच कि अब तो सब कुछ पक्को ह्वे गे तो बताण म बुराई क्या च। बच्चू लाल न उत्तर दे , ” मि तो गढ़वाल क गढ़पुर गौं क सुनार जाति क छौ। आर्य। “
अर जन बुल्यां द्वी झणों पर बरजात पड़ गे हो। दुयुं क लाल काखड़ जन लाल मुख फक्क सफेद ह्वे गे। कुछ समय उपरान्त संबळिक जखणीवाळन साफ़ ना बोल दे कि हम शिल्पकारों तैं भवन भाड़ा पर नि दींदा। गांवक इ ना दिल्ली बॉम्बे वळ रिस्तेदार बि छी छी करण लग जांदन। जखणीवाळ न बोल कि ऋषिकेश श्यामपुर म हमर गांवक एक काका न एक लोहार तै कमरा भाड़ा पर दे तो बेटिक संबंध ही नी हूणू बल नौन वळ कनि कनि छ्वीं लगैक संबंध कुण ना बोल दींदन बल लिस्ट बिस्ट तो ह्वे हि जांद कि ना।
बच्चू लाल न आठ नौ घर देखि आलीन , किराया व अलिखित नियम सियम सब स्वीकृत हूणो उपरान्त भवन स्वामी जनि पुछद कि कखक छा व के जाति क छा तो जनि भवन स्वामी तै पता चल दो कि बच्चू लाल गढ़वळि शिल्पकार च तो सब ना बोल दींद छा। इख तक कि सिंधी , पंजाबी अर अग्रवाल बणिया बि जात -पात क कारण गढ़वळि शिल्पकारों तै भवन भाड़ा पर नि दींदन।
जातीय संघर्ष बचपन म गाँव कार किन्तु झांसी व हौर शहरों म आवश्यकता नि पोड़ जख गढ़वाल्युं से सम्पर्क नि हूंद बिंडी।
बच्चूलाल झांसी म क्या सुंदर केंद्रीय शासकीय आजीविका म प्रसन्न छौ कि प्रमोशन क चक्कर म ट्रांसफर कोटद्वार ह्वे गे। किन्तु भवन कमरा भाड़ा पर नि मिलणो बड़ी समस्या ह्वे गे। कुछ समय पैल बच्चूलाल उत्तराखंड म भवन निर्माण क योजना बणान वळ छौ कि वैक कक्याससुर न मना कर दे कि उत्तराखंड म बिट्ठ अबि बि वै मानसिकता क छन जो सन सैंतालीस तक गाँवों म छे। उत्तराखंड म अब बि हमर पहचान ‘शिल्पकारों ‘ से ही हूंद। हमर गुण , पढ़ाई व पद से नि हूंद। अरे भौत सा बामण चपड़ासी शिल्पकार बॉस क भिड्युं पाणि नि पींदो अबि बि। कक्या ससुर जी न रोस म ब्वाल , ” स्साले ये उत्तराखंड में ये भटड़े -खस्या अभी भी हमें लोहार टमटा ही समझते हैं। ये नहीं बदले। नहीं बनानी कोठी उत्तराखंड में। “
अब समज म आयी बच्चू लाल की कि कक्या ससुर जी किलै उत्तराखंड म बसणो ना बुलणा छा। जातिगत भेदभाव अबि बि उत्तराखंड क गाँव ही ना अपितु शहरों म बि बच्युं इ नी अपितु खूब फलणु फुलणु च।
बच्चू क भाई बीरु नजीबाबाद म छौ अर इन निश्चय ह्वे छौ कि वो बि कोटद्वार म दगड़ म रै जालो व डेली बस या ट्रेन से अप -डाऊन कर ल्यालो। किन्तु कोटद्वार म शिल्पकारों तै भाड़ा पर भवन मिलणों कठिनाई हूणी छे। बिंडी से बिंडी भवन तो बामण -जजमान व पंजाबी सिंधियों क ही छन अर वो जातिभेद क कारण भवन भाड़ा म ना बुलणा छन। स्याम दे बच्चू नजीबाबाद भुला क घर गे। दुयुं न चर्चा कार कि नेता गिरी म तो सि जै नि सकदन कि लोगों तै प्रेरित करे जाय। बच्चू क भुला बीरु न निर्णय ले।
बीरु न ब्वाल – यी जखणीवाळ अरे साधारण बामण तो यूंकि बेटि बिवेक नि लांदन अर हम तैं ?
बीरु जब दस म छौ तो गांवक सहृदय व भविष्य दिख्वा डाक्टर बडोला न बीरु तै सलाह दे कि तू अपर जाट सर्टिफिकेट म शाह नि लिखवा अपितु नागार , सागर आदि लिखवा। डाक्टर बडोला लखनऊ म किंग जॉर्ज हॉस्पिटल म डाक्टर छा व गाँव क लोगों तै महत्वपूर्ण सलाह दींदा छह।
बीरु अर्थात बीरेंद्र लाल क सर नेम नागर छौ। स्यु जखणीवाळ से कमरा भाड़ा हेतु गे कि म्यार भैजी , भौज , एक लड़की व मि भाड़ा पर रौंला। नागर से अर्थ कायस्थ निकळ्द तो जाति विषय म कुछ चर्चा नि ह्वे। पुलिस चौकी म भाड़ा व भवन स्वामी क मध्य क कागज पूर ह्वेन। बीरु न छै मैना क भाड़ा एडवांस बि दे दे।
बीरु अर बीरु क भोज व भतीजी सामान क दगड़ ऐन। जब सब सामान भितर चल गे तो अंतम बच्चूलाल भितर आयी। जखणीवाळ अर वैकि घरवळि मुख दिखण लैक छौ।