गढ़वाली -कुमाऊंनी नाटक मंचन में पटकथा उपलब्ध न होने की समस्या
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गढ़वाली -कुमाऊंनी नाटकों की चुनौतियां – 1
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भीष्म कुकरेती (भारतीय साहित्य इतिहासकार )
गढ़वाली-कुमाऊंनी नाटक मंचन कई चुनौतियों से जूझ रहा है। नाट्य मंचन ही नहीं लोक नाट्य मंचन भी कई समयों से जूथ रहा है। गढ़वाल में व्यवसायिक जाति बादी -बादण , हुडक्या आदि गढ़वाल से लोप हो गए हैं कि लोक नाटकों की रचना बंद हो गए हैं। यहां तक कि अब आम जनता /लोक लोक गीत भी नहीं उतपन्न हो रही हैं। रामलीला मंचन भी गढ़वाली गाँव व शहरों में लगभग बंद ही है तो बच्चपन व युवा अवस्था में युवाों को जो स्वयं समाज द्वारा स्वयं ही युवाओं को प्रशिक्षण रमिला व बादी -बादण से मिलता था। वः रामलीला व लोक नाटकों के मंचन न होने से प्रशिक्षण बंद हो गया है।
इन्ही समस्याओं में एक समस्या है गढ़वाली -कुमाऊंनी नाटकों हेतु है और वह समस्या है पटकथाओं का सर्वत्र सुलभ होना।
मेरे लिए विदेशों से प्रवासियों का निम्न कार्यकर्मों हेतु टेलीफोन आते हैं –
१- सांस्कृतिक कार्य कर्म (गीत संगीत आदि ) हेतु स्क्रीनप्ले या डिजाइन (कैसे कार्यकर्म हो का स्केलटन ) दूं
२- लघु नाटक (स्किट )
३- नाटक
इसके अतिरिक्त भारत व गाँवों में कई लोग गढ़वाली नाटकों के पटकथा व स्क्रीनप्ले न होने शिकायत करते पाए जाते हैं।
मेरे सर्वेक्षण अनुसार २३० से अधिक गढ़वाली नाटक मंचित हो चुके हैं। और दिल्ली को छोड़ अन्य स्थानों में एक मस्ट गढ़वाली नाटकों के स्क्रिप्ट नहीं मिलती हैं। तो जो सामर्थ्यवान संस्था या व्यक्ति गढ़वाली नाटक मंचन करना चाहते हैं उन्हें अनुकूल स्क्रिप्ट नहीं मिलते हैं। जो नाट्य पुस्तकें छप भी चुके हैं वे अनुपलब्ध हैं। जैसे भक्त प्रह्लाद नाटक की स्किप्ट सब जगह नहीं उपलब्ध है। जित सिंह नेगी के जो भी नाटक प्रकाशित हुए हैं वे भी सर्वत्र उपलब्ध नहीं हैं।
एक समस्या है नए व आकर्षक नाटक ही कम लिखे जा रहे हैं और उसके ऊपर स्क्रिप्ट ही नहीं मिलते हैं।
सबसे मुख्य समस्या है सब नाटक प्रकाशित नहीं होते हैं। दूसरे पहले हुए प्रकाशित नाटकों की प्रतिलिपि नहीं उपलब्ध हैं।
समाज द्वारा स्क्रिप्ट के मूल्य भी नहीं देना – मेरे पास कम से कम २५ नाटकों की हस्तलिखित या टाइप्ड स्क्रिप्ट हैं। मैंने जन सूचित किया की जीरोक्स व परिहवन /कुरियर की कीमत भेज दीजिये तो मैं स्क्रिप्ट भेज सकूंगा किन्तु मुझे स्क्रिप्ट भेजने का आदेश तो मिले किन्तु अग्रिम धन नहीं मिला। वास्तव में हमारा समाज का मनोविज्ञान ही ऐसा है कि गढ़वाली पुस्तकें निशुल्क मिलना चाहिए। इस ढब को तोडना पड़ेगा व गढ़वाली पुस्तकें ढ देकर क्रय का ढब समाज को बनाना पड़ेगा।
पुस्तक या स्क्रिप्ट का वितरण – पुस्तक /स्क्रिप्ट /पत्रिका वितरण तो गढ़वाली साहित्य की १०० वर्ष समस्या रही है। वितरण की समस्या में समाज द्वारा गढ़वाली साहित्य को क्रय कर न पढ़ना मुख्य केंद्र है। आज इंटरनेट का युग है तो वितरण की समस्या कुछ सीमा तक हीन किया जा सकता है। जिन जिन के पास स्क्रिप्ट (प्रकाशित /हस्तलिखित /टाइप्ड ) हैं वे इनका डिजिटलाइजेशन करें व इन्हे इंटरनेट पर उपलब्ध कराएं कि विदेशों में भी नाटक पटकथा उपलब्ध हो सके।
लगभग प्रत्येक शहरों में सामाजिक संस्थाएं है उनके पास यदि कार्यालय है तो वहां स्क्रिप्ट की प्रतिलिपियाँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। संस्थाओं को स्क्रिप्ट का मूल्य देने में हिचक कदापि नहीं करनी चाहिए। लेख तो पहले पहल निशुल्क पुस्तक बांटते रहते हैं। उनसे मेरा निवेदन है कि वे इधर उधर के स्थान पर निशुल्क पुस्तकें न भेजें अपितु १० -२० संस्थाओं को नाटक भेजें। दिली , मुंबई , देहरादून , जयपुर की संथाओं में तो पुस्तकालय भी हैं तो वहां भी पुस्तकें /स्क्रिप्ट भेजी जा सकती हैं। गढ़वाल के कई सार्वजनिक पुस्तकालयों जैसे खुशीराम लाइब्रेरी या दूँ लाइब्रेरी में भी स्किप्ट उपलब्ध कराने से स्क्रिप्ट की उपलब्धता की समय का निदान हो सकता है।
लेखकों को गाँवों में अध्यापकों से सम्पर्क करना चाहिए कि वे आपके नाटक मसंहित करें।